Magazine - Year 1985 - Version2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अर्जुन का असमंजस
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अर्जुन ने उर्वशी के काम प्रस्ताव को अमान्य किया उसे मातृ भाव से देखा। आहत कामिनी उर्वशी ने शाप दिया ‘‘तुम्हें एक वर्ष पुरुषत्वहीन वृहन्नला बनकर रहना होगा। अर्जुन ने यह शाप भी उसी सहज भाव से स्वीकार करके उर्वशी को नमन किया।
कौरवों से हुई शर्त के अनुसार बारह वर्ष वनवास के बाद एक वर्ष अज्ञातवास के समय अर्जुन उसी वृहन्नला स्थिति में राजा विराट् के यहाँ रहे। परन्तु उसी बीच उन्हें अकेले ही कर्ण, द्रोण, भीम सहित कौरव सेना से युद्ध करना पड़ा। राजा विराट् का साला और सेनापति कीचक द्रौपदी पर कुदृष्टि डालने के कारण भीम के हाथों मारा गया। कौरव कीचक से डरते थे। उसके मरने की सूचना पाकर उन्होंने विराट पर चढ़ाई कर दी। ऐसी विषम स्थिति में वृहन्नला अर्जुन विराट की ओर से लड़े। पुरुषत्वहीनता के शाप के बीच भी उन्होंने ऐसा पुरुषार्थ दिखाया कि कौरव तो परास्त हुए ही, स्वयं उन्हें भी आश्चर्य हुआ।
बाद में भगवान कृष्ण से उस संदर्भ में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा- ‘पुरुषत्वहीनता के शाप के बीच ऐसा प्रचण्ड पुरुषार्थ आपके ही आशीर्वाद से बन पड़ा।’
अर्जुन का यह कथन सुनकर कृष्ण थोड़े गम्भीर हुये; बोले- ‘‘पार्थ! यह ठीक है कि मैं तुम्हारे हित के लिए प्रयत्नशील रहता हूँ। परन्तु इस प्रसंग में तो तुम देवी उर्वशी के आशीर्वाद से ही विजयी हुए थे।’’
अर्जुन चौंके बोले- “प्रभु परिहास कर रहे हैं। उर्वशी ने तो मुझे पुरुषत्वहीन होने का शाप दिया था; उनके आशीर्वाद का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
भगवान थोड़ा मुस्कराये बोले- “धनंजय! ऐसा कहकर तुम अपनी ही मान्यता के साथ अन्याय कर रहे हो। क्या तुम सोचते हो कि जिस उर्वशी के प्रणय को तुमने अस्वीकार कर दिया था, वही सब कुछ थी? जिस उर्वशी के प्रति तुमने निष्ठा दिखाई, मातृ भाव से देखा ही नहीं, उसका शाप भी स्वीकार किया, वह मातृरूपा उर्वशी क्या कुछ भी नहीं थी। यदि मातृरूपा उर्वशी कुछ नहीं थी तो तुमने उसके लिए कामिनी उर्वशी की उपेक्षा क्यों की?
अर्जुन असमंजस की स्थिति में प्रभु का मुख देखते रह गये। श्री कृष्ण ने अपने कथन को स्पष्ट करते हुए कहा- “अर्जुन! तुमने कामिनी उर्वशी की उपेक्षा की थी, उसने क्रोधित होकर तुम्हें काम शक्तिहीन होने का शाप दे दिया परन्तु तुमने जिस मातृ शक्ति का सम्मान किया जिसके प्रति आस्था अडिग रखते हुए तुमने शाप भी शिरोधार्य किया उसने तुम्हें हृदय से आशीर्वाद दिया था ‘‘मेरा यह अजेय पुत्र जो वासना के सामने अजेय रहा, हे प्रभु, उसे कभी पुरुषार्थ क्षेत्र में पराजित न होना पड़े।’’
‘‘हे वीर! शाप या आशीर्वाद के लिए वाणी का प्रयोग किया जाय न किया जाय, जब तक वह अन्तःकरण की गहराई से निकलता है फलित होता है। शाप देने वाली उर्वशी से आशीर्वाद देने वाली उर्वशी अधिक सक्षम थी। उसका आशीर्वाद कैसे खाली जा सकता था।’’
अर्जुन हर्षित हुए बोले- ‘‘आज आपने मेरा एक भारी भ्रम दूर कर दिया। मुझे देवी उर्वशी के प्रति किंचित् मात्र भी रोष नहीं था, और न अपने किए पर कोई पश्चाताप ही। परन्तु मातृ भाव का स्नेह प्रसाद मिलने का रहस्य समझ में नहीं आ रहा था।”
भगवान बोले ‘‘हे पार्थ! नारी का एक पक्ष कामिनी पक्ष है उस पर ‘काम’ का प्रभाव होता है। दूसरा लक्ष्मी पक्ष मातृ पक्ष है, उसमें परमात्म शक्ति का प्रत्यक्ष निवास होता है। तुम जैसे श्रेष्ठ नर नारी की उस दुर्धर्ष मातृ चेतना को भी अपने पुरुषार्थ से पा लेते हैं। तुमने वही किया है।’’