Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
जिन्दगी का कारवाँ (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक बार अरब लोगों का एक काफिला रेगिस्तान से होकर गुजर रहा था। दिन में आग बरसती तो वे सुस्ताते और रात को थोड़ी ठंडक होने पर चल पड़ते।
एक रात वे देवताओं के इलाके से होकर गुजर रहे थे। सुनसान अंधेरी रात में देवताओं की गरजन भरी आवाज सुनाई पड़ी। वे डरे , बहुत पर देवताओं की बात सुनने और आए हुए आदेशों को पालने में ही खैर मनाने लगे।
पहली आवाज आई- ‘रुको’ वे सब रुक गए। दूसरी आवाज थी- ‘मुझे’ वे झुक गए। तीसरा आदेश मिला- ‘जमीन पर बिखरे कंकड़ बीनो और जेबें भरकर चल पड़ो।’ उनने वैसा ही किया। अन्तिम निर्देश था- ‘सवेरा होने तक कहीं ठहरना मत। बस जब सूरज निकलेगा। तो तुम सुखी भी बहुत होगे पर दुःख भी कम न होगा।’
कारवाँ के राहगीर डर के मारे काँप रहे थे। देवताओं के आदेश मानने के अतिरिक्त और कोई चारा न था। किसी प्रकार रात पूरी की।
सवेरा होते ही देखा तो, उनकी जेबों में कीमती हीरे, मोती भरे थे। सो वे सचमुच बहुत सुखी हुए। पर जब यह ख्याल आया कि वस्तुस्थिति का उस समय पता क्यों न लगा- इस बात पर दुख भी कम नहीं हुआ। उस क्षेत्र में हीरे की खान थी। यह पता चलता तो ऊंटों का असबाब उढ़ेल कर वे हीरों से बोरे भर सकते थे।
जिन्दगी का कारवाँ देवताओं के इलाके से गुजरता है पर हम स्तब्ध, भयभीत कुछ सुखी और बहुत दुःखी होकर मंजिल पार करते हैं।