Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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काया में समाया- ऊर्जा का जखीरा
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मानवी चेतना के विकास में विद्युत चुम्बकीय शक्ति- प्राण ऊर्जा की जीवन भूमिका होती है। इसमें घट-बढ़ होने पर शारीरिक और मानसिक सन्तुलन गड़बड़ा जाता है और व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। परामनोविज्ञानियों के अनुसार विश्व ब्रह्मांड के निर्माण में भाग लेने वाले तत्वों के सूक्ष्म एवं दिव्य परमाणुओं से मनुष्य का शरीर विनिर्मित होती है। सृष्टि का हर कण विद्युत आवेशित अणु-परमाणुओं से बना होता है जिनमें सतत् प्रकंपन होता रहता है। परमशून्य तापमान से ऊपर की अवस्था में एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती रहती हैं जिसे रेडिएण्ट-एनर्जी कहते हैं। इस ऊर्जा की तरंग लम्बाई 0.0001 से लेकर 3×10¹⁴ एंग्स्टार्म और इनकी आवृत्तियाँ 1×10¹¹ से लेकर अनन्त तक होती हैं। मनुष्य का शरीर भी इन आवेशित तरंगों को छोड़ता और ग्रहण करता रहता है।
“इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी आफ लाइफ” के पुरोगामी मूर्धन्य शरीर शास्त्री एवं वैज्ञानिक प्रो. एस. बर्र एवं मनः चिकित्साशास्त्री लियोनार्ड जे. राविज के अनुसार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड मनुष्य के विकास की गति को तेज करती है और जीवित प्रोटोप्लाज्म के टूट-फूट की मरम्मत का दिशा-निर्देशन करती है। वैज्ञानिक द्वय ने इस प्राण विद्युत को ‘लाइफ-फील्ड’ नाम से सम्बोधित किया है। इनका कहना है कि यही वह तत्व है जिसका अपने में अधिकाधिक विकास करके विश्व समाज की दिशाधारा को श्रेष्ठता की ओर मोड़ देने वाले महामानवों ने अपने जीवनकाल में प्रत्यक्ष चमत्कार कर दिखाया। हिटलर, नैपोलियन एवं सिकन्दर जैसे व्यक्तियों ने प्राण ऊर्जा का दुरुपयोग अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में किया और विनष्ट हुए।
मूर्धन्य वैज्ञानिकों ग्लिफोरो सी. फर्नास ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “नेक्स्ट हण्ड्रेड ईयर्स” में लिखा है कि मनुष्य शरीर का निर्माण जटिल प्रोटीन अणुओं से बने एक निषेचित अंडे से आरम्भ होता है, जिसके विभाजन और विकास से विभिन्न ऊतकों का निर्माण होता है। ऊतकों से अंग अवयवों एवं शारीरिक ढाँचे का निर्माण होता है। प्रत्येक कोशिका की संरचना में कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर जैसे अनेकों तत्व भाग लेते हैं। प्रत्येक कोशिका की उत्पत्ति विद्युत इकाई- वेव पॉकेट के रूप में होती है। एक स्वस्थ युवा मनुष्य का शरीर 10 शंख कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। इस प्रकार हर व्यक्ति का शरीर 10×10²⁸ वेव पैकेट्स विद्युत ऊर्जा का समूह होता है। शरीर के समस्त अंग अवयवों एवं क्रिया-कलापों का संचालन तथा नियंत्रण तंत्रिका तंत्र के केन्द्र संस्थान मस्तिष्क द्वारा होता है जिसके निर्माण में लगभग 10 अरब न्यूरॉन्स भाग लेते हैं। प्रत्येक न्यूरान का अपना विद्युत आवेश होता है और प्रत्येक कोशिका अपने आप में पूर्णतया चार्ज की हुई एक छोटी विद्युत बैटरी होती है। तंत्रिका तंत्र विशेषज्ञ डॉ. एस. क्लोज के अनुसार केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की तुलना डायनेमो से की जा सकती है जिससे विद्युत का उत्पादन होता है।
न्यूयार्क सिटी के बेल टेलीफोन लैबोरेटरी में अनुसंधानरत वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि मनुष्य के शरीर के निर्माण में भाग लेने वाले घटक सतत् प्रकंपित होते रहते हैं और उनसे 80 अरब साइकल्स प्रति सेकेंड की दर से प्राण विद्युत- विद्युत चुम्बकीय तरंगों का विकिरण होता रहता है।
सुविख्यात चिकित्सक डॉ. मार्टन हवाइटले ने अपनी पुस्तक “थ्योरी आफ लाइफ, डिजीज एण्ड हेल्थ” में कहा है कि मनुष्य का जीवन तभी तक दिखाई देता और क्रियाशील रहता है जब तक शरीर के समस्त ऊतकों की समष्टिगत ऊर्जा वैद्युतीय ऊर्जा के रूप में विद्यमान रहती है। यही ऊर्जा विद्युत तरंगों के रूप में शरीर के नस-नस में दौड़ती है जिसे वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से मापा जा सकता है।
ग्लासगो के प्रख्यात चिकित्सा विज्ञानी डॉ. विलियम ई. ब्यायड ने मानव मस्तिष्क और शरीर के अंतः संबंधों पर कई वर्षों तक गहन अनुसंधान किया और पाया कि प्रत्येक व्यक्ति का शरीर एक प्रकार की इलेक्ट्रिकल फील्ड द्वारा घिरा रहता है। त्वचा में अन्तर्निहित विद्युतीय ऊर्जा को मापा जा सकता है। मस्तिष्क की कार्यक्षमता विद्युतीय शक्ति पर निर्भर करती है। इसमें कमी आने पर मनुष्य अनेक बीमारियों से घिर जाता है। मस्तिष्कीय विद्युत ऊर्जा को इनसे फैलोग्राफी (ईईजी) के माध्यम से जाना और मापा जाता है। शरीर से निसृत होने वाली वैद्युतीय तरंगों के मापन के लिए ब्यायड ने ‘इमैनोमीटर’ नामक एक विशेष उपकरण का आविष्कार किया और उसके माध्यम से शरीर में रोगों की उपस्थिति से निकलने वाले विकिरणों और दवाइयों के प्रयोग के बाद के विकिरणों का अध्ययन किया। विभिन्न रोगियों के मस्तिष्क और शरीर के मध्य चलने वाले परिसंवादों का अध्ययन भी उन्होंने कैथोड रे ओसिलोग्राफ उपकरण के माध्यम से किया और पाया कि मनुष्य का शरीर उसकी इच्छाओं, भावनाओं और विचारणाओं द्वारा संचालित है। इनकी ऊर्ध्वगामिता होने पर मस्तिष्कीय एवं शारीरिक विद्युत ऊर्जा के भण्डार में अभिवृद्धि होती है। इच्छा विचारणा और भावना की निम्नगामिता पर प्राण ऊर्जा की संचित पूँजी भी समाप्त हो जाती है और मनुष्य दीन-हीन दयनीय एवं रुग्णावस्था में जा पहुँचता है।
चिकित्सा विज्ञानियों ने अपना ध्यान अब मनुष्य शरीर से विसर्जित होने वाली विद्युत ऊर्जा की ओर केन्द्रित किया है और इसका उपयोग रोग निवारण में करने लगे हैं। सुविख्यात वैज्ञानिक श्री एल. ई. ईमान ने अनेक रोगियों को इस विधि से रोगमुक्त कराया है। अपनी पुस्तक “कोआपरेटिव हीलिंग- द क्यूरेटिव प्रापर्टीज ऑफ ह्यूमन रेडिएशन” में श्री ईमान ने बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति का सिर तथा दाँया हाथ और दाँया पैर वाला शरीर का आधा भाग विद्युत चुम्बकीय धनात्मक होता है। तथा मेरुदण्ड एवं बाँये हाथ और पैर की ओर से ऋणात्मक आवेश युक्त होता है। विशेष प्रकार के ताम्र तार और कापर गॉज से शरीर के विपरीत ध्रुवों को जोड़ देने से एक पूर्ण विद्युत सर्किट बन जाता है। एक व्यक्ति के शरीर पर अथवा सामूहिक रूप से कई व्यक्तियों के शरीरों के मध्य विद्युत सर्किट कायम करके एक दूसरे को लाभ पहुँचाया जा सकता है। काया के विपरीत ध्रुवों को विद्युत सुचालक तारों से किसी भी सर्किट में जोड़ने पर लाभकारी परिणाम न केवल स्वास्थ्य संवर्धन के रूप में अपितु बायोफीड बैक द्वारा प्रसुप्त के जागरण के रूप में मिल सकते हैं।
काया की विद्युतीय क्षमता का विश्लेषण और विवेचन तभी सार्थक है, जब उस ऊर्जा का सदुपयोग सुनियोजन किया जाय। अपार संपदा में से थोड़ा-सा भाग काम में आता है तो विलक्षण मेधा, वैज्ञानिक गवेषणात्मक बुद्धि एवं असीम जिजीविषा के रूप में दिखाई देता है। यदि शेष बची संपदा, जो हिमखण्ड की तरह जल के नीचे छिपी पड़ी है, को योग साधनाओं अध्यात्म उपचारों द्वारा प्रभावित किया जा सके तो मानव उन अगणित विभूतियों से संपन्न हो सकता है, जिन्हें हम सिद्धियों के रूप में जानते हैं।