Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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मंगल ग्रह की दुर्दशा से हम सबक लें
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सौर परिवार के ग्रहों और उपग्रहों में से केवल मंगल ही एक ऐसा है जिसकी परिस्थितियों की बहुत अंशों तक पृथ्वी से तुलना की जा सकती है। खोजी उपग्रहों ने जो सूचनायें एकत्रित की हैं, उनसे प्रतीत होता है कि चिर अतीत में वहाँ जलाशयों की भरमार थी। नदियाँ बहती थीं और झरने झरते थे। वहाँ ऐसी प्राण वायु भी थी, जिसके सहारे प्राणी उत्पन्न हो सकें और जी सकें।
इस प्रकार के प्रमाण वहाँ बड़ी संख्या में पाये गये हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि किसी जमाने में मंगल पर प्राणियों और वनस्पतियों की अच्छी खासी विद्यमानता थी। ग्रह सुहावना था। उसकी स्थिति भी वैसी ही थी, जैसी कि उस जमाने में पृथ्वी की रही होगी। सम्भवतः मनुष्य स्तर के बुद्धिमान प्राणी भी वहाँ रहे हों। वे खाद्य उत्पादन करते थे। वनस्पतियों का लाभ लेते थे और प्रकृति सम्पदा का उपयोग करते थे।
मंगल के ऊपर वैसा ही कवच आच्छादन भी था जैसा कि इन दिनों पृथ्वी के ऊपर है और ब्रह्मांडीय किरणों के घातक प्रभाव से उसे बचाता है। पृथ्वी की सतही हलचलें भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। उन्हें सुरक्षित रखने में यह कवच आवरण सहायता करते हैं। अन्यथा पृथ्वी अपनी विशेषतायें गँवा बैठे। अपने सीमित दायरे में वह गर्भवती के भ्रूण की तरह सुरक्षित है। आवरण, आच्छादन उसे सुविधा भरे वस्त्रों की तरह अपने अंचल में आश्रय दिए हुए हैं। गर्मी, वर्षा से जैसे मनुष्य को छुड़ाता बचाता है उसी प्रकार भूपिण्ड भी आकाश में घेरा डाले हुए आयनॉस्फियर के आच्छादनों के कारण ब्रह्मांडीय घातक किरणों से अपनी रक्षा कर पाता है। चमड़ी के थैले में जिस प्रकार भीतर अंग अवयव दबे ढके रहते हैं, उसी में भीतरी व्यवस्था सुरक्षित है। अन्यथा फटे थैले में से जिस प्रकार मूँगफली के दाने बिखर पड़ते हैं उसी प्रकार हमारे अंतरंग अवयवों को भी उलट-पुलट करने में देर न लगेगी।
पृथ्वी के कवच को इन दिनों बुरी तरह छेड़ा, झकझोरा जा रहा है। आणविक हलचलें ऊपर जाकर छाते में छेद कर सकती हैं। बढ़ता जा रहा तापमान भी उस झिल्ली को दुर्बल कर सकता है। ‘स्टार वार’ का जो घातक खेल खेला जा रहा है उसका प्रभाव धरातल पर ही नहीं बल्कि आच्छादन पर भी पड़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अन्तरिक्षीय आदान-प्रदान में ऐसा व्यतिरेक उत्पन्न हो सकता है कि पृथ्वी पर भरा हुआ जल भाप बनकर ऊपर उड़ जाय और यहाँ वैसी ही स्थिति बन जाय जैसी कि वर्तमान मंगल ग्रह की है। पानी उड़ जाने पर न वनस्पतियाँ रहेंगी और न प्राणियों के लिए जीवित रह सकना संभव होगा।
मंगल का आवरण, आच्छादन किस कारण फटा यह तो अभी नहीं जाना जा सका, पर इतना निश्चित है कि उस सुरम्य ग्रह की दुर्दशा जीवधारियों द्वारा किए गए हस्तक्षेप से आवरण में टूट-फूट हो जाने के कारण ही हुई। वहाँ की जमीन के गर्भ में गहराई पर अभी भी बड़ी मात्रा में पानी का संग्रह है उसे ऊपरी परत ने किसी प्रकार बचा रखा है।
संभव है, मंगल को किसी अन्तरिक्षीय दुर्घटना का शिकार होना पड़ा हो, पर यहाँ तो शासक और वैज्ञानिक मिलकर शस्त्र सज्जा जुटाने में स्टार-वार के माध्यम से ऐसी भयावह खिलवाड़ करने में लगे हुए हैं, जिससे न केवल वे, वरन् अपने इस सुन्दर भूलोक को भी ले डूबेंगे। हमें आशा रखनी और विश्वास करना चाहिए कि मंगल ग्रह की दुर्दशा जैसी भूल पृथ्वी-वासी नहीं करेंगे। समय रहते सद्बुद्धि जागेगी एवं सृष्टि संतुलन करने वाली व्यवस्था से और छेड़खानी नहीं की जाएगी।