Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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अंतरिक्षीय रहस्यों का एक नया दौर
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अपनी इस विशाल धरती पर कई स्थान ऐसे हैं जो उनसे जुड़े रहस्यमय घटनाक्रमों के कारण सुर्खियों के विषय बनते रहे हैं। इन घटनाओं के पीछे वैज्ञानिकों ने अटकलबाजियाँ लगाकर विद्युत चुम्बकीय अथवा क्वान्टम भौतिकी, गुरुत्वबल कारण बताकर छुट्टी पाली है, पर सच पूछा जाय तो ये सभी रहस्य अभी भी “अविज्ञात” नामक फाइल में बन्द हैं। ये सभी यह सोचने पर विवश करते हैं कि मानवी बुद्धि अभी विकास की चरम अवस्था तक नहीं पहुँच पाई है। बहुत कुछ जानना समझना अभी शेष है।
भारत में आसाम प्रान्त के जटिंगा घाटी स्थान पर हर वर्ष एक विशेष मौसम में रात की बत्तियाँ जलते ही पक्षियों का उड़-उड़ कर आकर आत्म हत्या कर लेना साथ ही अन्य छोटे कीट-जीव जंतुओं की सामूहिक आत्म हत्या अभी भी एक अचम्भा बनी हुई है। अभी तक साइबेरिया के तुंगुस्का प्रान्त में एवं अमेरिका के एरीजोना में उल्कापात के प्रमाण रूप में दो विशाल गड्ढे पाए गए थे। अब महाराष्ट्र के चन्द्रपुर के समीप एक अत्यन्त विशाल गर्त्त मिला है जो बताता है कि एक बहुत बड़ी उल्का यहाँ कभी गिरी होगी। इसका आकार पहले पाए गए दोनों गढ्ढों से दुगुना बड़ा है एवं भूगर्भ विशेषज्ञों के अनुसार उल्का गिरने की अवधि भी हजारों वर्षों में गिनी जा सकती है। हो सकता है कि ऐसे और भी कोई चिन्ह हों जो बताते हों कि अन्तरिक्षीय रहस्यों के उद्घाटन का दौर अभी चल ही रहा है।
अमेरिका के दक्षिण पूर्व तट पर उत्तर में बरमूडा द्वीप, दक्षिण में फलोरिडा तथा पूर्व में बहामा द्वीप के बीच का लगभग 40 अक्षांश पश्चिमी देशान्तर तक फैला इलाका, जो बरमूडा त्रिकोण कहलाता है, अपनी रहस्यमयी घटनाओं की शृंखला के कारण काफी समय से शोध का केन्द्र बना हुआ है। इस क्षेत्र में प्रविष्ट होने वाले वायुयान तथा जलयानों के अदृश्य होने का सिलसिला चलाता ही रहा है किन्तु न तो जहाजों के अवशेष ही मिल पाए हैं, न ही वायुयानों का मलबा। सारे आधुनिक यंत्रों को शोध प्रक्रिया में झोंक देने पर भी यह ज्ञात न हो सका कि वे सभी कहाँ, किस लोक में विलुप्त हो गए?
सन् 1745 के नवम्बर माह की घटना है। एक जलयान वायुसेना का नीचे चल रहा था और उसका सही मार्गदर्शन करने के लिए विमान ऊपर उड़ रहे थे कि अचानक अमेरिकी कन्ट्रोल टावर से उनका सम्बन्ध टूट गया। कप्तान की घबराई-सी आवाज जरूर सुनाई दी। इसके बाद संपर्क पूरी तरह समाप्त हो गया। वायुयान “मार्टिन मेसन्स” का कप्तान इतना ही बता सका कि “हमारे सभी यंत्र बेकाबू हैं और हम नहीं जानते कि अगले क्षणों में हमारा क्या होने जा रहा है।”
विभिन्न दिशाओं में इस सारे क्षेत्र को खोजने के लिए 218 नौकाएं भेजी गईं और 19 वायुयानों की एक टुकड़ी। खोजी विमानों में से एक का अन्तिम सन्देश था। हम अपने को असहाय अनुभव कर रहे हैं। कोई भी मशीन हमारा साथ नहीं दे रही है। लगता है हम किसी अज्ञात लोक की ओर उड़े जा रहे हैं। हमारे पीछे मत आओ खतरा है.......। फिर कोई संकेत न मिला। इसके बाद ऐसी ही दुर्घटनाओं का सिलसिला उस क्षेत्र में लगातार चल पड़ा।
सन् 1960 में चार वायुयान और 10 जलयान उसी क्षेत्र में गायब हुए। इनमें से एक के बारे में भी अनुमान तक नहीं लगाया जा सका कि आखिर इनका क्या हुआ? सन 1961 के अन्तिम माह में एक जलयान अमेरिका से इंग्लैण्ड के लिए रवाना हुआ इसमें 290 व्यक्ति सवार थे। मशीनों की भली प्रकार जाँच पड़ताल कर ली गई थी। फिर भी उस यान की भी दुर्गति हुई। वह रहस्य के गर्त में समा गया और सभी संभव खोजें कोई भी संकेत न दे सकीं।
उस क्षेत्र में थोड़ी दूर रहकर दुर्घटना का स्वरूप देखने वालों ने पाया है कि पहले उस क्षेत्र में कुहासा सा छाने लगता है। फिर ऐसा लगता है कि यान किसी चुम्बकीय तूफान में फँस गया और भँवर में फँसने जैसी स्थिति में चक्कर काटता हुआ वह गायब हो गया। अन्वेषकों में से कुछ ने उन यात्रियों को आकाश में पक्षी की तरह एक दिशा विशेष में उड़ते देखा। फिर वे दृष्टि से ओझल हो गए।
वस्तुतः बारमूडा त्रिकोण वैज्ञानिकों, रहस्यवादियों और अन्तरिक्षवेत्ताओं के लिए बहुत समय तक रहस्य का विषय बना रहा। सभी अपनी-अपनी समझ के अनुसार अनुमान लगाते रहे। इस संदर्भ में अनेक पत्र पत्रिकाओं में लेख छपे पर उनमें से किसी ने भी दावे के साथ अपने मत की पुष्टि न की। मात्र अनुमान ही लगाये जाते रहे। इनमें से सभी खोजियों का मत यही था कि यह रहस्य अभी भी ऐसा है जिसके सम्बन्ध में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।
‘हेराल्ड कनाडा’ पत्रिका में प्रकाशित एक लेख अधिक प्रामाणिक माना गया कि किसी अन्य लोक के बुद्धिमान प्राणी मनुष्य की संरचना और प्रगति के बारे में खोज बीन कर रहे हैं और वे अन्वेषण के लिए यहाँ से विभिन्न स्तर के यात्रा साधनों एवं बुद्धिमान मनुष्यों को अपने लोक में किसी विशेष आकर्षण शक्ति के सहारे घसीट ले जाते हैं। पृथ्वी पर अन्य लोकवासियों का अन्तरिक्ष से कुछ हजार वर्षों पूर्व से विशेष रूप से आवागमन रहा भी है।
बारमूडा त्रिकोण की घटनाओं के बारे में बहुत समय तक यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि वहाँ कोई “ब्लैक होल” स्तर का अन्तरिक्षीय चुम्बकत्व होना चाहिए, पर आधुनिक अन्वेषणों के बाद वह मान्यता भी गलत ठहराई गई है, क्योंकि ब्लैक होल अत्यन्त शक्तिशाली और अधिक दायरे में फैले हुए होते हैं। वह इधर आ पहुँचे तो समूची पृथ्वी को उदरस्थ कर सकते हैं। तब यह पता भी न चलेगा कि पृथ्वी नाम का ग्रह इस क्षेत्र में कोई था भी या नहीं। इस कमी के कारण सौर-मण्डल के अन्य ग्रह भी डगमगाने लगेंगे और एक अन्तरिक्षीय विनाशी क्रान्ति का सामना करना पड़ेगा। “ब्लैक होल” इतने दुर्बल या छोटे नहीं हो सकते कि वे कुछ यानों को उदरस्थ करने के उपरान्त शान्त हो चलें।
प्रायः सौ वर्ष से उस क्षेत्र में यानों के गायब होने की घटनाएँ प्रकाश में आयी हैं। इन घटनाओं के बाद उस क्षेत्र में चुम्बकीय हलचलें की दृष्टिगोचर होती हैं। पिछले वर्षों से उधर से निकलने वाले जहाजों की मशीनें भी गड़बड़ाती हैं पर ऐसा कुछ नहीं होता कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए। अब थोड़ा अधिक घेरा बढ़ा कर ऐसा रास्ता निकाल लिया गया है, जिससे बिना जोखिम के यात्रा की जा सके।
ब्लैक होल के होने का अनुमान रद्द हो जाने के बाद यह सोचा जा रहा है कि किसी बुद्धिमान लोक के निवासी पृथ्वी के मनुष्यों और उनके साधनों में जो प्रगति हुई है, उसका पता लगाने आते हैं। यह मान्यता तो अनेक प्रमाणों से सिद्ध है कि हजारों वर्ष पूर्व अन्य लोकों के बुद्धिमानी निवासी इस पृथ्वी पर आते रहे हैं और यहाँ की प्रगति में अनेक प्रकार के विशेषता वैज्ञानिक स्तर के योगदान देते रहे हैं। एक हवाई अनुमान यह भी है कि अन्तर्ग्रही आत्माओं के द्वारा धरती पर उनकी संतानें भी उत्पन्न हुई हैं और वे अपेक्षा कृत अधिक बुद्धिमान एवं सामर्थ्यवान रही हैं। जापानी अभी भी अपने को सूर्य की संतान कहते हैं और अन्यत्र निवासियों की तुलना में अपने को हर दृष्टि से समर्थ एवं सक्षम मानते हैं। कुन्ती ने सभी बच्चे देवताओं का आह्वान करके उनके अनुग्रह से उत्पन्न किए थे। उन सभी का पराक्रम पृथ्वी निवासी अन्य लोकों की तुलना में बढ़ा-चढ़ा था। मिश्र पिरामिडों की समस्या अभी तक नहीं सुलझी है कि इतने भारी पत्थर इतनी ऊँचाई तक कैसे पहुँचाए जा सके, जब कि उस देश में कहीं भी वैसे पत्थरों की खदान नहीं है। ऐसी ‘क्रेन’ होने का भी प्रमाण नहीं मिलता। यही बात ईस्टर द्वीप की विशालकाय मूर्तियों पर भी लागू होती है। मनुष्य के बलबूते की बात वैसा निर्माण करने की अभी भी नहीं है। कुतुबमीनार की लाट जैसा बढ़िया लोहा अभी तक मनुष्य की सामर्थ्य के बाहर माना जाता है। इन कृतियों के पीछे अन्तरिक्षीय देवमानवों के प्रयासों को सोचा जाता है जो उन दिनों पृथ्वी के साथ घनिष्ठता बनाये हुए है।
एक लम्बी अवधि बीत जाने के उपरान्त विगत एक शताब्दी से उड़न तश्तरियों के आवागमन का पृथ्वी पर नया सिलसिला आरम्भ हुआ है। कुछ दिनों इन्हें अन्तरिक्षीय भ्रम-जंजाल माना गया था। पर उनके छोड़े अवशेष तथा यहाँ से उठाकर ले जाई गई वस्तुओं की बात प्रमाणित हुई है तो ऐसा सोचा जाता है कि वे अंतर्ग्रही देवमानव फिर से पृथ्वी के साथ आवागमन संपर्क जोड़ रहे हैं, ताकि यहाँ की वैज्ञानिक प्रगति का मानवी बुद्धिमता का वे पर्यवेक्षण कर सकें और इससे आगे का प्रसंग या तो मनुष्यों को सिखा सकें या उनसे सीख सकें। संभवतः इसी प्रसंग में उन्हें बारमूडा क्षेत्र आदान-प्रदान के लिए उपयुक्त जँचा हो।
उड़न तश्तरियों को बहुत समय तक दृष्टिदोष, विभ्रम मात्र माना जाता रहा और यह भी कहा जाता रहा कि वे अन्तरिक्ष में पहुँचने वाले चुम्बकीय भँवर जैसे कुछ हो सकते हैं। इन अटकलों के उपरान्त जब उनका पीछा करना शुरू किया गया तो ऐसी हरकतें सामने आईं जिनसे सिद्ध हुआ कि उनके साथ कोई बुद्धिमान प्राणी भी होना चाहिए और उनका पृथ्वी पर आना भटकाव नहीं सोद्देश्य होना चाहिए।
इस संदर्भ में कई खोज करने वालों को अदृश्य चेतावनियाँ मिलती रही हैं कि वे यह प्रयास बन्द करें अन्यथा जोखिम उठाएंगे। समझा गया कि यह किसी मनुष्य द्वारा की गई मखौल है। किन्तु खोज जारी रखने नया तथ्य सामने आया कि वे खोजी अदृश्य हो गए और किसी प्रकार यह पता न चल सका कि उनका कहाँ, कब कैसे अदृश्य हो जाना घटित हुआ।
जिनने उड़न तश्तरियों को बिना घबराए और गौर से देखा उनने बताया है कि जिस प्रकार पृथ्वी से चन्द्रमा जाने वाले अन्तरिक्षीय सूट पहनकर गये थे, प्रायः वैसी ही पोशाक वे यात्री भी पहने हुए थे। वे भूमि के समीप आये और यहाँ से कई धातु पात्र तथा जीवित प्राणी अपने यान में लेकर वापस लौट गए। संभवतः वे उन पर जैव प्रौद्योगिकी का कोई अनुसंधान करना चाहते हों।
इन अजूबों का वास्तविक कारण क्या है? यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। सम्पत्ति की हानि एवं जन हानि हो, ऐसा रास्ता भी मनुष्य ने निकाल लिया है। पर वे घटना क्रम भिन्न-भिन्न रूपों में भौतिकी के सारे सिद्धान्त काटते हुए घटित होते रहे हैं। फिर भी यह आशा की जाती है कि अन्ततः बारमूडा त्रिकोण जटिंगा घाटी, उड़नतश्तरियों जैसे अनेकानेक रहस्यों का जब भी उद्घाटन होगा, तो मनुष्य को ऐसी कई नयी जानकारियाँ मिलेंगी जो उसे अब तक उपलब्ध नहीं हुईं।