Magazine - Year 1988 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
छः घड़े सोना!
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
श्मशान घाट के पीपल पर एक यक्ष रहता था। उसकी आदत थी कि धन का प्रलोभन देकर लोगों को अपने चुँगल में फँसाना। लालच के वशीभूत होकर लोग अपने सभी कर्त्तव्य भूल जाते। दिन-रात धन बढ़ाने के लोभ में लगे रहते। चिन्ता इतनी सवार रहती कि सभी व्यवस्थाएँ,जिम्मेदारियाँ त्याग कर शरीर तक को घुला डालते। अकाल मृत्यु मरते और जल्दी ही श्मशान पहुँच कर यक्ष की चाकरी करते हुए नरक जैसा त्रास सहते।
एक दिन उस देश के राजा का मंत्री किसी काम से उस रास्ते निकला। पेड़ के ऊपर से कोई अदृश्य आत्मा बोली-”छै घड़ों में भरी स्वर्ण मुद्राएँ लोगे।”
मंत्री को लालच आ गया। मुफ्त का धन पाने के लिए बहुतों के मन में ललक उठती है। मंत्री भी ललचाया। पीपल के नीचे बैठ गया और उस अदृश्य बोलने वाले से प्रार्थना करना शुरू किया। देव! वह धन कहाँ है मुझे दे दीजिए।
अदृश्य यक्ष ने कहा, “इसी पीपल की जड़ में दाहिनी ओर वे घड़े गढ़े हैं तुम प्रसन्नतापूर्वक खोद ले जाओ। पर रात को ले जाना ठीक पड़ेगा। अन्यथा किसी को पता चल जाने पर वह उसे छीनने के लिए घात लगायेगा। मंत्री को यह सलाह रुची। घर लौट गया। रात को फावड़ा लेकर आया। सब घड़े खोद लिये। सभी भारी थे। वे इन्हें ले जाने के लिए एक-एक करके घर पहुँचाता रहा। रात भर इसी प्रकार चक्कर लगाता रहा।
घर जाकर घड़े खोले तो उनमें स्वर्ण मुद्राएँ भरी देख कर भारी प्रसन्नता हुई। आधा घड़ा खाली था। पत्नी को जगाया। वह सम्पत्ति उसे दिखाई और पूछा क्या करना चाहिए? पत्नी ने भी सलाह दी कि जो आधा घड़ा कम है उसे जल्दी भरने का उपाय करना चाहिए। इसी की पूर्ति में जो बन पड़े सो करना चाहिए।
पत्नी ने घर खर्चे में कटौती आरम्भ कर दी। भोजन का स्तर घटिया कर लिया, पुराने कपड़े सीकर परिवार के तन ढके। बच्चों को पढ़ाई करने से बिठा लिया। उधर मंत्री ने अपने खर्च में तो कमी की ही साथ ही राज-काज में से पैसे चुराने लगा। इतने पर भी चिन्ता और उदासी से उसका चहरा मुरझाने लगा। समझ भी कम हो गई। प्रतिभा पलायन करने लगी।
मंत्री का यह हाल देखकर राजा को चिन्ता हुई। उसकी चोरी बेईमानियाँ भी प्रकट होने लगीं। शरीर सुख कर काँटा होने लगा। समझ में फर्क पड़ जाने से उसके मित्र भी शत्रु बनने लगे। राजा को सलाह भी उल्टी सीधी मिलने लगी। राज-काज में भारी हर्ज होने लगा।
इस मुसीबत का क्या कारण हो सकता है, राजा उसकी तलाश में लगा रहता पर कुछ पता न चलता। एक दिन एक ताँत्रिक से राजा की भेंट हुई। उसने पीपल वाले यक्ष की करतूत का ब्यौरा बताया और कहा, “हो सकता है मंत्री उसी के फेर में पड़ गया हो।”
एक दिन राजा ने मंत्री को एकान्त में बुलाया और पूछा कि कहीं आप यक्ष वाले छैः घड़े के फेर में तो नहीं पड़ गये। मंत्री पहले तो सकपकाया। पीछे उसने वास्तविकता स्वीकार करली।
राजा ने उसे परामर्श दिया कि धन को जहाँ से लाये हो वहाँ गाड़ आओ, अन्यथा तुम्हारा शरीर और परिवार बुरी तरह-बरबाद हो जायगा। मंत्री ने उस नेक सलाह को मान लिया और छहों घड़े उसी पीपल के नीचे गाढ़ दिये।
लालच का कुचक्र सिर से हटा वैसे ही मंत्री की सारी चिन्ताएँ चली गई घर का-राजपाट का-सारा काम यथावत चलने लगा। राजा ने वेतन बढ़ा दिया। सुविधाओं में वृद्धि हुई और निश्चिंतता सहित हँसी खुशी के दिन कटने लगे। अनीति के- बिना मूल्य धन पाने के-लालच में जो विपत्ति सिर पर सवार हुई थी वह चली गई और चैन के दिन कटने लगे।