Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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अन्तराल में निहित सिद्धि वैभव
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बीज में प्राण तत्त्व होता है। वही नमी और आरंभिक पोषक अनुकूलता प्राप्त करके अंकुरित होने लगता है। उसके उपरान्त वह बढ़ता, पौधा बनता और वृक्ष की शकल पकड़ता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर है कि उसे जड़ें माने का आवश्यक खाद पानी व पोषण प्राप्त हुआ या नहीं। यदि उसकी आवश्यकताएँ पूरी होती चले तो बढ़वार कती नहीं, किन्तु यदि बीज अपने स्थान पर बोरे में ही बन्द रखा रहे, उसे सुखाया ओर कीड़ों से बचाया जाता रहे तो वह मुद्दतों तक यथा स्थिति अपनाये रहेगा। बहुत पुराना हो जाने पर काल के प्रभाव से वह हतवीर्य हो जायगा अथवा जैसे कीड़े लगकर उसे नष्ट कर देंगे।
बीज में उगने की शक्ति होती है यदि वह पका हुआ हो। यदि उसे कच्ची स्थिति में ही तोड़ लिया गया है तो वह खाने के काम भले ही आ सके, बोने और उगने की क्षमता विकसित न होगी। वह देखने में तो अन्य बीजों के समान ही होगा, पर परखने पर प्रतीत होगा कि उसमें वह गुण नहीं है जो परिपक्व स्थिति वाले बीजों में पाया जाता है।
हर मनुष्य में प्राणशक्ति होती है, पर उसकी मात्रा में नाधिकता बनी रहती है। यह इस बात पर निर्भर रहता है कि प्राण रूपी बीज को प्रौढ़ बनाने के लिए जानकारी अथवा गैर जानकारी में परिपक्वता लाने वाले प्रयत्न होते है या नहीं।
मानवी प्राणशक्ति का विकास और परिपाक इस बात पर निर्भर है कि उसमें पूर्व संचित संस्कारों का समूह था या नहीं। गर्भधारण करते समय माता-पिता के रज-वीर्य में भीष्ट उत्कृष्टता या परिपक्वता थी या नहीं? प्राण प्रक्रिया के अनुदान समुचित मात्रा में मिले य नहीं? यह सब भ्रूणावस्था में पूरी हो जाने वाली आवश्यकताएँ है। इसके बाद जब परिपक्व बालक संसार के खुले वातावरण में साँस लेता है और समीपवर्ती लोगों द्वारा विनिर्मित वातावरण का प्रभाव ग्रहण करता है, तब भी उस स्थिति में मनुष्य प्रभाव ग्रहण करता है। खान-पान से, जलवायु से स्थूल शरीर के स्तर का निर्माण होता है, किन्तु प्राण प्रभाव समीपवर्ती लोगों की चेतना से ही उपलब्ध होता है। खोटे ओर ओछे लोगों के संपर्क से व्यक्ति स्तर की दृष्टि से वह मोटा, पतला या सुन्दर, कुरूप हो सकता है, पर व्यक्ति में जो प्रतिभा पाई जाती है, विशिष्ट स्तर की विशेषता देखी जाती है। वह इस बात पर निर्भर रहती है कि संपर्क-वातावरण में किस स्तर की जीवट एवं क्षमता विद्यमान थी। अन्न-जल से रक्त माँस बनता है किन्तु व्यक्तित्व विकसित करने की क्षमता उन लोगों में होती है जो अपने बड़प्पन के कारण छोटों पर प्रभाव छोड़ते है। मनुष्य का स्वयं का चिन्तन, मनन भी इस संदर्भ में काम करता है। वह अपनी इच्छा शक्ति और संकल्प शक्ति से भी अपने आप को प्रभावित करता है। पूर्व संचित संस्कार भी ऐसा वातावरण पाकर स्वतः उभरते हैं। ग्रीष्म ऋतु में घास सूख जाती है फिर भी जमीन के अन्दर उसकी जड़ों में किसी प्रकार नमी बनी रहती है। वर्षा होते ही वह जड़े अनायास ही अंकुरित हो चलती हैं और तेजी से अपना विस्तार करती हुई जमीन पर फैलकर हरीतिमा बिखेरती हैं।
यह सब वे कारण हैं जिनके बलबूते विशेष साधन न बन पड़ने पर भी मनुष्य का आत्मबल विकसित स्थिति में देखा जा सकता है और उसे भी सिद्ध पुरुषों जैसी विभूतियाँ अनायास ही प्रकट होती हुई प्रकाश में आती दृष्टिगोचर हो सकती हैं। कई व्यक्ति योग, तप, साधना, अनुष्ठान जैसे कृत्य प्रयास न करने पर भी सूक्ष्म विशेषताओं से सम्पन्न पाये जाते है। यह उपहार उन्हें जन्मजात रूप में भी मिलता है अथवा नितान्त बचपन से आगे बढ़ती हुई दृष्टिगोचर होने लगती है। यह अनायास का प्रकटीकरण भी संयोगवश होता। उसके पीछे ऐसे कारण सन्निहित होते हैं जिन्हें घटनाएँ या प्रयास तो नहीं कहा जा सकता, पर अदृश्य और, अविज्ञान कारण ऐसे होते हैं जिनके कारण कुछ विशेष व्यक्ति अपने में चमत्कारी क्षमताएँ प्रकट करते हैं किन्तु उनके साथी पड़ोसी उन विशेषताओं से वंचित बने रहते हैं।
प्रयत्न करने पर तो उसका लाभ कोई भी उठा सकता है। साहित्यकार, संगीतज्ञ, शिल्पकार, चिकित्सक, इंजीनियर आदि विशेषज्ञ अपने में यह विशेषताएँ अभ्यास द्वारा अर्जित करते हैं। पहलवान व्यायामशालाओं में, विद्वान पाठशालाओं में, शिल्पी कारखाने में, आवश्यक अभ्यास करते हुए समयानुसार सुयोग्य बनते हैं। किन्तु आश्चर्य तब होता है जब प्रशिक्षण के अभाव में अथवा स्वल्प प्रशिक्षण के सहारे किसी-किसी की प्रतिभा अनायास ही फूट पड़ती है। उदाहरण के लिए मोजार्ट 9 वर्ष की अल्पायु में ही संगीतज्ञ बन गये थे। पास्कल 12 वर्ष की उम्र में प्रख्यात गणितज्ञों की श्रेणी में गिने जाने लगे थे। 13 वर्ष की किशोरावस्था में वुडरर प्रसिद्ध कलाकार बन गये थे। संत ज्ञानेश्वर ने 16 वर्ष की आयु में गीता का भाष्य किया था तो सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव 10 वर्ष की छोटी अवस्था से ही भावपूर्ण शब्द की रचना करने लगे थे। इन प्रतिभाओं को देखने पर मोटी दृष्टि से सुयोग, संयोग, भाग्य, वरदान आदि समझा जाता है, पर वस्तुतः उस अनायास के पीछे भी कारण होते हैं। भले ही यह प्रत्यक्ष घटनाक्रम सामने आया हो या न आया हो।
प्रयास अभ्यास तो कई लोगों का सफल होता है। मनोयोगपूर्वक कड़ा परिश्रम करने पर तो कालिदास और वरदराज जैसे मूर्ख समझे जाने वाले व्यक्ति भी उच्चकोटि के विद्वान बन गये थे। सेंडो और चाँदगी राम ने अपने गये गुजरे स्वास्थ्य को ऐसा बना लिया था कि उनकी गणना विश्व के मूर्धन्य पहलवानों में होने लगी। अमेरिका का जैक ब्लाटिन पिछले दिनों कई वर्ष तक कैंसर से पीड़ित रहने के उपरान्त जब किसी तरह रोगमुक्त हुआ तो वह पहलवानी पर उतर आया। संकल्प, साहस और अभ्यास के सहारे उसने अपना शरीर बल इस स्तर तक बढ़ा लिया कि ओलंपिक कुश्ती के सुपर हैवीवेट का खिताब जीतकर न केवल अपने राष्ट्रीय गौरव को ऊँचा उठाया वरन् समूची मानव जाति के लिए एक अनूठा और प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत किया। यह प्रयास का प्रत्यक्ष प्रभव हैं।
किन्तु आश्चर्य तब होता है जब प्रत्यक्ष घटनाक्रमों के रूप में अभ्यास न किये जाने पर भी दिव्य क्षमताएँ विकसित हो जाती हैं। विश्व में ऐसे अनेकों व्यक्ति हुए है जिनमें यह प्रतिभा जन्मजात रूप में विकसित पाई गई है। हालैण्ड का क्रोसेट नामक एक बालक बचपन से ही भविष्यवाणियाँ करने के लिए विख्यात था उसके द्वारा किये गये भविष्य कथन शत प्रतिशत सही उतरते थे। इजराइल का यूरीगेलर अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध है। भविष्य दर्शन की विशेषता के कारण संसार भर में जिन लोगों ने विशेष ख्याति अर्जित की है उनमें एण्डरसन, सेमवैंजोन, पीटर हरकौस, हेंसक्रेजर आदि के नाम प्रमुख हैं। नौस्ट्राडोमस तो अपनी भविष्यवाणियों के लिए विश्वविख्यात ही है। प्लोरेंस र्स्टन फेल्स नामक 9 वर्षीय बालिका में दिव्य दर्शन की क्षमता अनायास ही फूट पड़ी थी। इसका पता लोगों को तब लगा जब उसने सदियों पुरानी टूटी फूटी एक कब्र के खोदे जाने की न केवल तिथि व समय बता दिया था वरन् उसमें सोये हुये व्यक्ति का नाम भी बता दिया था। वह कब्र विलियम जान्सन की थी, जिस पर किसी का नाम तक नहीं खोदा गया था और न किसी को उसकी जानकारी थी। रजिस्टर के पुराने पन्नों को पलटने पर फ्लोरेंस द्वारा दी गई जानकारी सही निकली।
वस्तुतः इस संसार में अनायास कुछ भी नहीं होता है। हाँ इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस असाधारण प्रक्रिया के पीछे कोई अविज्ञात कारण रहे हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप में नहीं देखा जा सकता।