Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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लानत है ऐसी दौलत पर
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एक बार लक्ष्मी पृथ्वी पर आई। उन्होंने समीपवर्ती क्षेत्रों के लोगों को बुलाया और कहा,”मैं लक्ष्मी हूँ। तुम लोगों में से जिसे जैसा माँगना हो माँग लो” वरदान किस दिन मिलेगा, इसकी जानकारी भी दे दी गई। समय इसलिए दिया गया कि सूचना अधिक लोगों को मिल सके। वे समय रहते पहुँच सके’और अभीष्ट लाभ उठा सकें।
उस क्षेत्र में सब लोग कृषि का व्यवसाय करते थे। धरती को भी यह समाचार मिला। उसने अपने सभी कृषक पुत्रों को एकत्र कर समझाया कि तुम मुफ्त की दौलत पाने के फेर में न पड़ो। पूरा परिश्रम करते रहो। मैं तुम्हें कोई अभाव न रहने दूँगी।
पर इस परामर्श को किसी ने न माना। सभी विपुल धन बिना परिश्रम किये पाने के लिए आतुर थे। वे रुके नहीं। नियत समय पर लाखों की संख्या में लक्ष्मी जी के सामने उपस्थिति हुए आगंतुक मनमाना धन प्राप्त करते गये। लक्ष्मीजी ने हर माँगने वाले की मुराद पूरी की।
वे एक दिन के लिए आई थीं। उपस्थित लोगों में से जितनों की अभिलाषाएँ पूरी हो सकती थीं वे करके स्वर्ग वापस लौट गई।
विपुल धन पाकर लोग फूले न समाये। वे उस सम्पदा का स्वच्छंद उपभोग करने लगे, अनेक व्यसनों से ग्रस्त हो गये। बिना परिश्रम की सम्पदा का अनैतिक अपव्यय में ही तो उपयोग होता है।
किसानों के प्राप्त धन की कमी थी। वे उसका मन माना उपभोग करने लगे। खेती-बाड़ी करना बन्द कर दिया हल बैल बेच दिये। परिश्रम के झंझट में क्यों पड़ा जाय? सभी को अपने व्यवसाय से अरुचि हो गई। जब हाथ में विपुल दौलत हैं तो मेहनत करने की क्या जरूरत?
सभी ने खेती-बाड़ी बन्द कर दी। अन्न के संचित गोदाम समाप्त होने लग। महँगाई बढ़ने लगी और कुछ ही वर्षों में स्थिति यह आ गई कि महँगाई चरम सीमा पर पहुँच गई। पैसा खर्चने पर भी खाद्य पदार्थ न मिलते। दुर्भिक्ष जैसी स्थिति उत्पन्न हो गईं। दौलत के बक्से भरे पड़े थे पर अनाज नहीं मिल रहा था। भूख-बुझाने के साधन न रहने से लोग भूखे मरने लगे। दुर्बल होकर रोगों से ग्रसित होकर प्राण त्यागने लगे। कुछ ही समय में उस क्षेत्र के अधिकाँश लोग भूखे मर गये। जो बचे वे अच्छी स्थिति वाले क्षेत्र के लिए पलायन कर गये। इलाका खाली हो गया। पशु तो पहले ही मर चुके थे। मनुष्यों से भी क्षेत्र खाली हो गया। दौलत को चोर लूट ले गये।
जन शून्य पृथ्वी ने एक दिन अपने हरे-भरे और सुख चैन वाले क्षेत्र को घूम-घूम कर देखा वह श्मशान जैसा बन गया था सर्वत्र निस्तब्धता संव्याप्त थी।
धरती लक्ष्मी को कोसने लगी। उसी ने आकर मुफ्त की दौलत पाने की लालसा जगाई और मेरे भोले पुत्र परिश्रम भरे कृषि कार्य को छोड़ कर मुफ्त की दौलत के फेर में पड़ गया। उसी का यह प्रतिफल है कि समूचा समुदाय और क्षेत्र बरबाद हो गया।
क्या यह कथा आज की परिस्थितियों में यथारूप लागू नहीं होती? लक्ष्मी की लालसा ने व्यक्ति को उपभोगवादी बना दिया है। जमीन को मुँह माँगे दामों में भवन अट्टालिकाओं के निर्माण हेतु खरीदा जा रहा है। कृषि योग्य जमीन को जनसाधारण पृथ्वी माता की उपेक्षा करके क्रमशः खोता चला जा रहा है। हो सकता है, धरित्री की स्थिति अगले दिनों वही हो।