Magazine - Year 1989 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
प्रचलनों को तर्क की कसौटी पर कसें!
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सम्पूर्ण विश्व में पाँच हजार से भी अधिक भाषाएँ और बोलियां है। इनमें से 845 तो केवल भारत में बोली जाती हैं। जब विश्व इतना बड़ा है और बालियाँ एवं भाषाएँ इतनी हैं, तो स्वाभाविक है कि प्रथा-परम्पराएँ भी असंख्यों होगी जरा एक दृष्टि इन विविध परम्पराओं पर भी डालें पुर्तगाल के टिमोर द्वीपवासी आदिवासी महिलाओं में अपने कानों को खाँचे के रूप में काट लेने की प्रथा है। इस प्रकार कटे हुए वे कान सुन्दर मानते हैं।
कहीं मोटापा और फील-पाँव को खराब माना जाता है और उससे बचने के लिए तरह तरह के उपाय-उपचार किये जाते हैं, पर अफ्रीका की मुरुण्डी जनजाति में मोटी टाँग बावी लड़कियाँ सुन्दर एवं सौभाग्यशाली मानी जाती है।
थल प्रदेश में निवास करना सुविधाजनक और आरामदेह माना जाता हैं, इसलिए लोग प्रायः भूतल पर ही घर-मकान बनाते हैं, किन्तु मिश्र में आदिवासियों का एक विशेष समुदाय है, जो जल पर रहना ही पसंद करता है। वहाँ जमीन की कमी है, ऐसी बात नहीं है, पर वे जो आनन्द जल पर निवास कर ले पाते हैं, उस आनन्द से जमीन पर वंचित हो जाते हैं ऐसा उनका मत है। वहाँ एक विशाल झील है। वे उसी झील पर बाँस के सहारे जल सतह के ऊपर झोंपड़ी बनाते और रहते हैं। खेती के लिए वे पुआल और मिट्टी से बनी तैरती सतह का इस्तेमाल करते हैं। उस समुदाय में जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो वे शिशु के दानों और दो तुम्बी बाँध कर उसे जल में तैरने के लिए छोड़ देते हैं। बच्चा खो न जाये, इसलिए उसे गले में एक छोटी घण्टी बाँध दी जाती है।
भारतीय मान्यता के अनुसार मृत शरीर का दाह-संस्कार कर देने पर शरीर के प्रति आत्मा की आसक्ति समाप्त हो जाती है और उसे शान्ति मिलती है। किन्तु अफ्रीका के सियरा लियोन जनजाति में अवधारणा ठीक इसके विपरीत है। उनका विश्वास है, कि मृत व्यक्ति की हड्डियों को विभिन्न अंग-अवयवों में बाँध कर नृत्य करने से मृतात्मा प्रसन्न होती है और अपना आशीर्वाद-वरदान प्रदान करती है।
पेड़-पौधे चूँकि मूक-योनि के होते हैं, अतः वे अपनी आयु का परिचय अपने “एनुवल रिंग” द्वारा देते हैं। आयु-प्रदर्शन की लगभग ऐसी ही प्रथा दक्षिण भारत की बन्दों जनजातियों में प्रचलित है। वहाँ लड़कियों की आयु बताने के लिए प्रति माह एक नया ‘वलय’ उनके गले में पहना दिया जाता है यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि उसका विवाह न हो जाय। कभी कभी यह इतना बड़ा हो जाता है कि गर्दन सुराहीदार वस्तुतः नजर आती है। अलग-अलग प्रदेशों में सुन्दरता का अलग-अलग मापदण्ड है, मगर विश्व के प्राय’ हर हिस्से में आकर्षण बढ़ाने के लिए महिलाएँ सौंदर्य-प्रसाधनों का ही इस्तेमाल करती हैं। विचित्र बात यह है कि आस्ट्रेलिया की जनजाति महिलाओं में सुन्दर बनने और दीखने का अलग ही ढंग है वहाँ की महिलाएँ स्वयं को आकर्षक बनाने के लिए अपने होठों में सलाई घुसा लेती है।
मान्यता है कि स्थूल शरीर द्वारा ही भौतिक वस्तुओं का भोग कर सकना संभव है। सूक्ष्म शरीर को इनकी आवश्यकता नहीं पड़ती। प्राचीन मिश्रियों का विश्वास था कि मरने के बाद भी व्यक्ति को भोग-सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। इसी कारण वे मृत व्यक्ति के साथ भोज्य पदार्थ, धन-दौलत, नौकर-चाकर सब कुछ दफना देते थे, ताकि मृतात्मा को किसी प्रकार की तकलीफ न हो।
जो भी शाश्वत सत्य है, वह तो अपनी जगह अक्षुण्य बना रहता है, किन्तु प्रथा-परंपराएं- प्रचलन सतत् बदलते रहते हैं। इसलिए कभी भी किन्हीं परम्पराओं को जो कभी किसी कारण अपनाई गई, समझदार व्यक्तियों द्वारा विवेक की कसौटी पर कस कर नकार दिया जाता हैं यह तथ्य अध्यात्म विधा में घुसी हर अवांछनियता, मूढ मान्यता पर लागू होता है।