Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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परोक्ष दर्शन पर आधारित प्रामाणिक भविष्य कथन
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अदृश्य दर्शन की दिव्य दृष्टि भविष्य के गर्भ में पक रही गतिविधियों की गंध लेकर यह बताने में सक्षम है कि वर्तमान क्रियाकलाप जिस प्रकार चल रहे हैं, भविष्य उस आधार पर कैसा होगा? जितने भी मूर्धन्य, तत्ववेत्ता, दिव्यदर्शी मनीषी हुए हैं उन सभी में दिव्य क्षमता विद्यमान थी; इसी कारण जो कुछ भी उन्होंने कहा- वह शत प्रतिशत सही निकला।
प्रकृति के भी अपने कुछ नियम होते हैं। मानव मात्र को इन अनुशासनों में आबद्ध होकर अपने क्रियाकलाप चलाने पड़ते हैं। कभी-कभी प्रकृति के नियमों में भी अपवाद प्रतीत होने वाले घटनाक्रम देखने को मिलते हैं, जिनसे लगता है कि अचिन्त्य, अगोचर, अगम्य सत्ता के क्रियाकलापों को एक परिधि में बाँध सकना संभव नहीं है। दिव्य दर्शन के रूप में भविष्य कथन इसी श्रेणी में आते है। इन्हें अन्धविश्वास या सनक कहकर भी नहीं टाला जा सकता, क्योंकि विगत का सर्वेक्षण करने पर अधिकाँश भविष्य कथन सत्य निकलते हैं।
इन दिनों विश्व मानवता ‘अगले दिनों क्या होगा’? इसी असमंजस में उलझी पड़ी है। भविष्य को जानने की जिज्ञासा न केवल साधारण व्यक्तियों बल्कि पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्तियों, यहाँ तक कि वैज्ञानिकों में भी उठती है। ज्योतिर्विज्ञान पर, फलित ज्योतिष पर चाहे कितनी ही उँगली उठाई जाती रहे, यह एक अटल सत्य रहेगा कि अपना भविष्य जानने की जिज्ञासा हर व्यक्ति के अंतर्मन में दबी पड़ी है। ज्यों ज्यों हम इस शताब्दी के समापन के पास आ रहे हैं त्यों त्यों चिंतकों, सर्वसाधारण की व्यग्रता बढ़ती ही चली जा रही है, क्योंकि माहौल कुछ अनिश्चित सा हो गया है। सम्भवतः मनुष्य की इसी व्यग्रता से जुड़ी प्रकृति को मध्य नजर रख विधाता ने भविष्य के रहस्यों की पिटारी बंद रखी है। हर किसी को आगत के सम्बन्ध में स्फुरणा नहीं होती, क्योंकि यदि ऐसा होता तो सबका कर्म पर से विश्वास उठ जाता। कर्म का परिपाक ही भविष्य बनाता है। किये जाने वाले कृत्यों की परिणति ही भविष्य का खाका बनाती है। क्रिया की प्रतिक्रिया एक सुनिश्चित सिद्धान्त है जिसे न्यूटन ने तीसरे नियम के रूप में प्रतिपादित किया है।
पूर्वानुमान एवं अन्तःस्फुरणा जिन किन्हीं मनीषियों को होती है वह प्रायः समष्टिगत होती है। एक व्यापक परिकर पर उसका प्रभाव पड़ता है। शास्त्रकारों ने इसीलिए साधना पुरुषार्थ से इस प्रसुप्त क्षमता को जगाने का विधान बताया है, ताकि भविष्य को जानकर अशुभ सम्भावनाओं को निरस्त करने के लिए वर्तमान के क्रियाकलापों में ही तत्परता पूर्वक कटिबद्ध हुआ जा सके एवं शुभ सम्भावनाओं से लाभ उठाने लिए अपनी एवं औरों की पात्रता विकसित की जा सके। वे महामानव जिन्हें इतिहास में अपनी भविष्य दर्शन की क्षमता के कारण अच्छी खासी ख्याति मिली हुई है, एक मत से कहते हैं कि आने वाली सदी आशाभरी, उमंग और उल्लास से भरी, उज्ज्वल संभावनायें लेकर आ रही हे। आज की परिस्थितियाँ हमें विचलित न करने पायें, सम्भवतः इसीलिए उन्होंने भविष्य के उज्ज्वल पक्ष को पहले से ही लिखकर सामने रख दिया है। ऐसे मनीषियों में सोलहवीं सदी में जन्मे नास्ट्राँडेमस, महायोगी अरविन्द, स्वामी विवेकानन्द एवं प्रो. हरार की चर्चा पिछले अंकों में की जा चुकी है। क्रिस्टल बॉल के माध्यम से भविष्य की झलक झाँकी देखने और दिखाने वाली जीन-.... की आँशिक चर्चा भी हम पहले कर चुके हैं। इसी श्रृंखला में पीटर हरकौस, जॉन सैवेज, एण्डरसन, काउन्ट लुई हैमन (कीरा), जोसेफ डी.लुई, एडगर कैसी, एडवर्ड पिअर्सन, एलेक्सटेनस फ्रेडरिक डेविस, मेरी डी लाँग, मदर ...., आयरिन हयूजेज, जेन्डोलीन मार्क्स कैथी सोत्का, इसाक एसिमोव, थियोडोर-गार्डन, माल्टन डेविस, हर्मन कान, ब्लादीमीर एलेक्सन ड्रोविच काटेलनी कोव, गार्डन मक्डोनाल्ड, फ्रीट्जाफ कापरा, एल्विनटाफ्लर, जेराल्ड ओनेरी, जूल्स बर्न, इत्यादि का नाम आता है।
जीनडिक्सन जब छोटी बच्ची थीं, तब उन्हें एक जिप्सी महिला ने उनकी अंतर्दृष्टि की क्षमता को पहचानते हुए एक क्रिस्टल बॉल दी थी। यह जिप्सी महिला भारतीय मूल की थी। इसने जीनडिक्सन का पूर्व जन्म का वृतान्त उनके माता पिता को बताते हुए कहा कि यह भारतवर्ष में हिमालयवासी एक प्रसिद्ध योगी के साथ साधना कर चुकी हैं। प्रारब्धवश पुनः इन्हें जन्म लेना पड़ा और वह भी अमेरिका में। फिर भी इनकी अन्तर्चेतना सदैव भारत से जुड़ी रहेगी। वह भारत जो साँस्कृतिक विरासत का धनी है और अगले दिनों विश्व का नेतृत्व करेगा। जीन के माता-पिता ने हँसते हुए क्रिस्टल बॉल खिलौने के रूप में खेलने के लिए उन्हें दे दी। पर जब 14 वर्ष की आयु में वे शत-प्रतिशत सही भविष्यवाणी करने लगीं तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। तबसे ही जीन डिक्सन चर्चा का विषय बनी हुई हैं। उन्होंने तीन पुस्तकें भी लिखी हैं ‘माइ लाइफ एण्ड प्रोफेसिज’ ‘ए गिफ्ट आफ प्रोफेसी’ एवं ‘द काल टू द ग्लोरी’। उनकी सही प्रमाणित हो चुकीं भविष्यवाणियों में से कुछ इस प्रकार है।
--1945 में फ्रेंकलिन रूजवेल्ट (तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति) की मृत्यु की पूर्व घोषणा।
--1945 में ही उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री श्री विंस्टन चर्चिल को कहा था कि वे उस वर्ष चुनाव नहीं जीत पायेंगे किन्तु इस हार के कुछ वर्षों बाद पुनः प्रधानमंत्री चुने जायेंगे। यह सब सही निकला।
--1947 में भारत के विभाजन, स्वतंत्रता प्राप्ति एवं 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या की पूर्व घोषणा।
--1953 में जीन ने जोसेफ स्टालिन की मृत्यु की पूर्व घोषणा तब की, जब वे चरम शिखर पर थे। उनकी मृत्यु के बाद जार्जी मेलेनकोब तथा उनके दो साल बाद मार्शल निकोलाई बुल्गानिन के उनका स्थान लेने की पूर्ण रूपेण सत्य घोषणा भी वे तब ही कर चुकी थी।
--1961 में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव डेग हेमर शल्ड के प्लेन क्रेश में अकाल मृत्यु का ग्रास बनने की घोषणा भी वह महिला पहले कर चुकी थी।
--न केवल प्रसिद्ध अमेरिकन राजनेता जॉन एफ. कैनेडी की 1963 में हत्या किए जाने की उन्होंने पूर्व घोषणा की, अपितु हत्यारे का नाम “ओसवाल्ड” बताकर एफ.डी.आई. की परोक्ष रूप से मदद भी की। जॉन कैनेडी के हत्या के पूर्व वे तीन बार राष्ट्रपति भवन तक चेतावनियाँ भेज चुकी थीं किन्तु भवितव्यता होकर ही रही।
--उन्हें जॉन कैनेडी के छोटे भाई सिनेटर राबर्ट कैनेडी की 1968 में हुई हत्या का भी पूर्वानुमान हो चुका था एवं इसकी घोषणा समाचार पत्रों में वे कर चुकीं थी।
--1971 में आरम्भ हुए वाटर गेट काँड की पूर्व चेतावनी प्रेसीडेन्ट निक्सन को वे 1968 में ही दे चुकी थीं। इसके अतिरिक्त अमेरिका और चीन में शान्ति सन्धि होने, 1974 और 1988 के बीच प्रकृति विक्षोभों के प्रकोप विश्व भर में तेजी से बढ़ने की पूर्व चेतावनियाँ भी उनकी सत्य निकली हैं।
अब से आने वाले बारह वर्षों के बारे में उनकी कुछ भविष्यवाणियाँ इस प्रकार हैं।
(1) अमेरिका का व्यापक स्तर पर मध्य पूर्व के युद्ध में उलझ जाना एवं स्वयं अपने राष्ट्र में गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाना।
(2) वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों का प्रचुर परिणाम में उपलब्ध होने लगना ताकि विश्व की ईंधन आपूर्ति होती रह सके एवं मनुष्य प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ न करे।
(3) पूरे विश्व भर के उच्चकोटि के वैज्ञानिक एक मंच पर एकत्रित होकर विश्व मानवता के भविष्य के लिए नये नये आविष्कार रचेंगे।
(4) यूरोपीय सभ्यता को अन्ततः युद्ध की नीति एवं भोगवादी जीवन पद्धति छोड़कर पूर्व का अनुकरण कर भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों को अपनाना होगा।
(5)मनुष्यों का मानसिक विकास एवं अतीन्द्रिय क्षमताओं का जागरण इस सीमा तक हो जायेगा कि वे विचार सम्प्रेषण के माध्यम से परस्पर संपर्क किया करेंगे एवं इस प्रकार विश्व एक सूत्र में आबद्ध हो जायेगा।
(6) शिक्षा की वर्तमान पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन हो जायेगा एवं बच्चे बाल-संस्कार-शालाओं में सुसंस्कारिता की संस्कार शिक्षा लेने लगेंगे।
जीन डिक्सन कहती हैं “अनीति और नीति की लड़ाई सन् दो हजार तक चलती रहेगी, किन्तु अन्ततः सत्प्रवृत्तियों को अपनाने वाली शक्तियों की ही विजय होगी। सन् 2020 तक धरती पर स्वर्ग जैसी परिस्थितियाँ विनिर्मित हो जायेंगी। न किसी को व्याधि होगी न भुखमरी से मरना पड़ेगा। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति इस सीमा तक हो जायगी कि अंग विच्छेद होने पर तुरंत नये कृत्रिम अंग उपलब्ध करा दिये जाऐंगे। सारा विश्व प्रदूषण रहित हो जायगा एवं लोग बड़े शहरों की तुलना में छोटे कस्बों में रहना पसंद करेंगे। अन्तरिक्षीय यात्रायें प्रकाश से भी तीव्र गति से चलने वाले यानों के माध्यम से होंगी एवं विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक यात्री कुछ ही क्षणों में पहुँच जायेंगे। एक विश्व सत्ता के अधीन सारे मानवजाति का क्रिया व्यापार चलेगा एवं यह सब सन् 2020 तक पूरा हो जायेगा।
जीन डिक्सन के उपरोक्त भविष्य कथन पर किसी को भी सन्देह नहीं करना चाहिए क्योंकि परिस्थितियाँ वैसा ही मोड़ ले रही हैं, जैसा कि वे ऊपर कह गई हैं।
अधिकतर भविष्यवाणियाँ “ट्राँस” की स्थिति में अथवा पूर्वाभ्यास के रूप में अपने हाथ में ली हुई क्रिस्टल बॉल को घूरते हुए उसमें घटती हुई घटनाओं के रूप में उन्हें प्रत्यक्ष दिखी। ऐसी ही क्राँतिकारी भविष्यवाणी उनने पूर्व में उदित हुए एक शक्तिशाली विचार प्रवाह के रूप में की है, जिसे वे ‘चाइल्ड फ्राम द इस्ट’ कहती हैं। वे बताती हैं कि 5 फरवरी 1962 में जब वे ध्यान साधना में निरत थीं, तब उन्होंने पूर्व दिशा से एक कौंधती हुई बिजली की लहर देखी एवं उसमें एक भारतीय वेशभूषाधारी महिला के गोद में एक सुन्दर गौरवर्ण बच्चा देखा। उस बालक के मस्तक पर अर्धचन्द्र बना हुआ था। इस अलंकारिक भविष्यवाणी की व्याख्या करते हुए कहती हैं कि यह बालक आने वाले युग के क्रान्तिकारी विचार प्रवाह का प्रतीक है जो संघशक्ति का समन्वित रूप भी हो सकता है अथवा संस्कृति .... करने वाला एक देवदूत .... वह आशय नहीं लिया जाना चाहिए कि वह बालक रूप में उन क्षणों में ही जन्मा है जिनमें ध्यानरत जीन डिक्सन ने उसकी झलक देखी। बालक से आशय है उसका निश्छल, भोलाभाला, निष्कलंक सत्ता के रूप में होना, चाहे शारीरिक आयु कितनी ही क्यों न हो।
यह सुनिश्चित है कि युग परिवर्तनकारी सत्ता का प्राकट्य हो चुका है, एवं वह अपना कार्य अपनी आचार संहिता के अनुसार यथाविधि सम्पन्न कर रही है। चाहे हम उसे बालमति होने के कारण तलाश पाने में असफल रहे हों, अथवा चिन्तन के निषेधात्मक होने के कारण युग परिवर्तन असंभव मानते हों। यह तथ्य सुनिश्चित रूप से समझ लिया जाना चाहिए कि दैवी प्रवाह से जुड़ने वाला हर व्यक्ति आने वाले दिनों में श्रेय सम्मान का श्रेयाधिकारी बन सकेगा साथ ही नवयुग की आधारशिला रखने वाला नींव का पत्थर बनने का यश भी अर्जित करेगा।