Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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समाचार डायरी क्या हो रहा हैं, इन दिनों विश्व में?
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21 वीं सदी में कैसी होगी संचार व्यवस्था?
पिछले दिनों पी.टी.आय के हवाले से प्रकाशित एक समाचार के अनुसार “ वर्ल्ड फ्यूचर सोसायटी” की एम्पोकिया कन्सास (यू.एस.ए.) में एक सेमीनार में बताया गय कि अगले दिनों मानवीय मस्तिष्क की प्रसुप्त क्षमताओं का इतनी तेजी से विकास होगा की व्यक्ति-व्यक्ति के बीच संपर्क का माध्यम तार नहीं मस्तिष्कीय न्यूरान्स से प्रवाहित होने वाली अल्फा तरंगें होगी। क्रमशः तनाव उद्विग्नता के शमन हेतु अधिक से अधिक पाश्चात्य संस्कृति के लोग प्राच्य आध्यात्म की योग साधनाओं का आश्रय लेकर अपनी मस्तिष्कीय क्षमताओं को और प्रखर बनायेंगे ताक ब्रेन्वेव्स की परस्पर ट्यूनिंग हो सके। यह असंभव कपोल कल्पना प्रतीत होने वाली कार्य शैली इस तेजी से जनसाधारण द्वारा क्रिया रूप में परिणत की जाने लगेगी कि सम्प्रेषण माध्यम विकसित अतीन्द्रिय सामर्थ्य के रूप में बिना के रूप में बिना तारों के जंजाल, सेटेलाइट्स आदि के ऐसा भी होता है इस पर सभी आश्चर्य करने लगेंगे उपस्थित सभी भविष्य विज्ञानियों ने वक्ताओं के मन्तव्यों का अनुमोदन ही किया।
भारत एक उभरती हुई महाशक्ति
- ‘टाइम’ पत्रिका 6 अप्रैल 1989
“टाइम” पत्रिका को विश्वभर में एक प्रामाणिक न्यूमेग्जीन के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। शीघ्र ही अपने 100 वर्ष पूरे करने जा रहीं यह पत्रिका अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का विहंगावलोकन कर एक संतुलित, निष्पक्ष विवेचना प्रस्तुतकर उनके भविष्य पर प्रभावों का भी विश्लेषण करती हैं अभी पिछले दिनों 3 अप्रैल 89 को प्रकाशित इस अंक भारत पर विवेचना के लिए हुए आया हैं व इसने मुख्य शीर्षक दिया हैं - “सुपर इण्डिया, द नेक्सट मिलिट्र पाँवर।”
इस लेख के लेखक एस.एच.मुनरे लिखते है कि “ पिछले कुछ वर्षा में भारतवर्ष इतनी तेजी से एक महाशक्ति के रूप में उभर के आया है कि अब रूस,चीन, अमेरिका, फ्राँस जैसी महाशक्तियाँ इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती। सिचाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान को पीछे धकेलना, श्रींलंकर में प्रवेश कर आतंक से मुक्ति दिलाना मालदीव में हुई क्रांति को निरस्त कर अब्दुलगयूम की सरकार को पुनः प्रतिष्ठित कर देना इस महाशक्ति की इस चेतावनी का द्योतक है कि अब भारत को अविकसित पिछड़ा कहकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता। भारत सैन्य शक्ति के आधार पर अब विश्व के चौथे नम्बर पर हैं - क्रमशः सोवियत रूस (50 लाख) चीन (बत्तीस लाख) अमेरिका (29 लाख) ट्रुप्स के बाद भारत है। जिसके पास 14 लाख प्रशिक्षित सुसज्जित सैन्य शक्ति हैं। वे कहते हैं कि प्रमुख यह नहीं की संख्या बल के आधार पर भारत को महाशक्ति माना जाय, बल्कि प्रधानता इस तथ्य को दी जानी चाहिए कक पूरे विश्व में हर 6 व्यक्ति के पीछे एक भारतीय हैं, चिकित्सा-सेना- इंजीनियरिंग -अंतरिक्ष विज्ञान हर क्षेत्र में भारतीय ही भारत में या विदेशों में अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आगे है तथा अपनी गहरी सांस्कृतिक जड़ों के कारण भारत अभी भी विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अपनी आँतरिक समस्याओं से जूझते हुए भी उसने खाद्यान्न उत्पन्न, उपकरणों के निर्यात तथा स्वावलम्बन के क्षेत्र में गत दो दशकों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विश्व शांति के लिए पहल करने वाली यही एक महाशक्ति है जो अन्यान्य शक्तियों में टकराव को रोके हुए है।”
पश्चिम में तो भारत की एक ही छवि है- अंधविश्वासों से, रूढ़ियों से भरा, घिचपिच, समस्याग्रस्त भारत, किन्तु अपनी कव्हरस्टोरी में श्री मुनरो लिखते हैं कि ‘इस भारत के अंदर से एक और महाशक्ति उभर रही है जो क्रमशः समस्याओं से जूझती हुई अपनी आध्यात्मिक विरासत एवं कुशाग्र बुद्धिबल के सहारे यदि अगले दिनों विश्व का नेतृत्व करने वाली शक्ति बन जाय तो किसी का आश्चर्य नहीं करना चाहिए। “इसे दैवी चेतना का -महाकाल का प्रवाह ही कहना चाहिए जो यह युगान्तरकारी परिवर्तन ला रहा है एवं संगठित जनशक्ति के सहारे दो हजार वर्ष की गुलामी से आजाद होने के बाद अब पुनः भारतवर्ष को महाशक्ति का रूप दे रहा है। जो इक्कीसवीं सदी में प्रमुख शक्ति का रूप ले लेगा।
विश्वशांति की ओर अग्रसर
‘द गर्जियन वकली” जो इंग्लैण्ड से प्रकाशित एक मान्यता प्राप्त प्रख्यात समाचार पत्र है, अपने 2 अप्रैल 1989 के अंक में लिख है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 वर्ष गुजर गये एवं छुटपुट लड़ाइयों के अतिरिक्त विश्वस्तर पर कोई महायुद्ध अभी नहीं हुआ है अपितु विश्व शाँति का माहौल पूरी धरित्री पर तेजी से बढ़ा है। जॉन गुलर की पुस्तक ‘रिट्रीट फ्राँम डँम्स डे” की समीक्षा करते हुए मैक्जार्ज बण्डी लिखते हैं कि ‘रामेन एम्पायर के बाद यह सबसे लम्बी अवधि हैं जब हम विश्वव्यापी तनाव शेथिल्य (देतान्ते) की स्थिति देख रहे है। वे लिखते है कि मानव जाति ने समझ लिया है कि युद्ध ही उनका सबसे बड़ा शत्रु है जो मनुष्य की नस्ल को ही खत्म कर सकता है अतः अब विश्व को शान्ति की ही जरूरत है। अब कोई मुसोलिनी, हिटलर या जापनी एम्पायर जन्म नहीं लेगा। इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल संभावनाएँ लेकर आएगी।
तनाव कम होगा, शाँति आएगी á-हुआन जियाँग
-बीजिंग (चीन) में अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र के निदेशक हुआन जियाँग ने पिछले दिनों कहा कि भविष्य में विश्व स्तर पर दीर्घकालिक शाँति व्यात रहने की संभावना है। अब रूस व अमेरिका दोनों महाशक्तियाँ हथियारों के जखीरे के जमाव की चरम सीमा पर पहुँच कर संधि कर चुकी है, रूस ने अपनी मिसाइलों को नष्ट भी किया है तथा आर्थिक मजबूती पर-गरीबी उन्मूलन पर ध्यान देना आरंभ कर दिया है। मौजूद युग सहप्रतिस्पर्धा का युग है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति शाँतिव्यवस्था कायम करने में जुटा हुआ है। सभी अब यह बात समझने लगे हैं कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है।
अध्यात्म मात्र भारत के कारण जीवित है-
स्वा. आत्मानन्द
रामकृष्ण मिशन रायपुर के स्वामी आत्मानन्दजी ने पिछले दिनों इन्दौर में एक प्रवचन माला में कहा कि भारत के लोगों में रोम रोम में धर्म संव्याप्त है। दुनिया का हर देश आज सच्चे अध्यात्म की तलाश में है। नैतिक मूल्यों में ह्रास के कारण वे शाँति भारतीय अध्यात्म में पाते हैं इसीलिए सभी धर्म की वकालत करने लगे हैं। अगले दिनों भारत ही विश्व का मार्गदर्शक राष्ट्र होगा।
परिवर्तन- प्रकृति की एक नियमित प्रक्रिया
पिछले दिनों अमेरिकन स्पेस शटल से खींचे गये धरती के चित्रों में पूर्व के नक्शों से महत्वपूर्ण अंतर पाया गया। वैज्ञानिकों का कहना था कि 1966 में खींचे गए चित्र को सामने रखकर सेंट्रल अफ्रीका का नक्शा बनाया जाय तो वैज्ञानिक यह देखकर हतप्रभ रह जायेंगे कि जिस चाड झील को 200 ममील लम्बी बताया जाता रहा है, उसकी सतह 95 प्रतिशत घटकर नगण्य रह गयी है एवं यह परिवर्तन मात्र विगत 22 वर्षों में ही हुआ है कभी जिस झील की सतह 26500 वर्ग किलों मीटर थी, 240 वर्ग किलों मीटर तक ही सीमित होकर रह गयी थी। चूँकि दक्षिणपूर्व एशिया के ऊपर सतत् बादल छाये रहते हैं, वे यहाँ का स्पष्ट चित्र नहीं ले सके पर अपने सम्मिलित कम्प्यूटराइज्ड निष्कर्षों के आधार पर उनने पाया कि हिमालय क्रमशः ऊपर खिसक रहा है व भारतीय भू भाग बढ़ रहा है। यू.एन.आई. के हवाले से हवाले से 39 मार्च को प्रकाशित यह समाचार एक तथ्य तक हमें ले जाता है कि परिवर्तन एक सतत् शाश्वत प्रक्रिया है व इसमें हजारों लाखों नहीं कुछ ही वर्ष लगते है। सोचा जा सकता है कि अगले 13 वर्षे में विश्व का न केवल भौगोलिक नक्शा बदलेगा अपितु समग्र स्वरूप में ही व्यापक परिवर्तन देखा जा सकेगा। इसी के युग परिवर्तन प्रक्रिया कहा जाता है।
*समाप्त*