Magazine - Year 1991 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
दिव्य चेतना के शक्तिशाली गुच्छक मंत्र
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मंत्र को शब्द ब्रह्म कहा गया है। जिसकी रचना शब्द विज्ञान के रहस्यों के आधार पर होती है। किस शब्द के बाद कौन सा शब्द रखने से किस प्रकार का, किस विद्युत शक्ति का प्रवाह उत्पन्न होता है, इस रहस्य को अभी पाश्चात्य विज्ञान नहीं जान पाया है। किन्तु शब्द की इस महान शक्ति से हमारे ऋषि परिचित थे। अमुक क्रम से शब्दों को रखने से, मुख से अमुक-अमुक अंगों का अमुक क्रम से संचालन होता है और उनके कारण शरीर के अमुक ज्ञान तन्तुओं, चक्रों, शक्ति संस्थानों, ग्रंथि-गुच्छकों एवं उपत्यिकाओं में अमुक प्रकार की हलचल उत्पन्न हो जाती है। उस हलचल की क्रिया-प्रतिक्रिया की उथल-पुथल से एक विशेष प्रकार का विद्युत प्रवाह आकाश में उत्पन्न होता है जो लोक-लोकान्तरों तक आसानी से पहुँच जाता है। उसकी पहुँच देवों तक, देवलोकों तक देव शक्तियों तक भली प्रकार हो जाती है। मंत्र बल से परम पद को प्राप्त करने तथा आत्मा को परमात्मा बना देने तक की सफलता ऋषियों ने प्राप्त की थी। आज भी वह हर किसी के लिए देवशक्तियों से जीवन का सान्निध्य करा देने वाला रहस्यपूर्ण माध्यम है।
आधुनिक विज्ञानवेत्ता ध्वनि की शक्ति-सामर्थ्य से भली भाँति परिचित हैं। उनने ध्वनि तरंगों के द्रुतगति से आकाश में भ्रमण करने की गतिविधि का पता लगाकर बेतार के तार एवं राडार जैसे यंत्रों का अविष्कार किया। यह यंत्र विद्युत प्रवाह की प्रेरणा से स्वच्छन्द आकाश में दौड़ रही तरंगों को पकड़ने और प्रेरक की इच्छानुसार उनकी गति, दिशा एवं दूरी का विश्लेषण आज्ञाकारी दूत की तरह करते हैं। मन्त्र को भी “आध्यात्मिक राडार” की संज्ञा दी जा सकती है। जब सामान्य शब्दों में ध्वनि तरंगों में इतनी क्षमता है, तो फिर वेद मंत्रों में जिस वैज्ञानिक ढंग से शब्दों का गुन्थन हुआ है, उसकी महत्ता तो अनिवर्चनीय ही है। इन शब्दों का मर्म एवं रहस्य कोई ठीक प्रकार समझ ले, इनकी शिक्षाओं के अनुसार आचरण करे अथवा इन शब्दों में छिपी हुई विद्याओं एवं शक्तियों से अवगत हो जाये, तो उसके लिए यह मंत्र कामधेनु के समान सब कुछ दे सकने वाले बन जाते हैं। महर्षि पतंजलि ने ऐसा ही अभिमत प्रकट करते हुए कहा है “एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुग्भवति।” अर्थात्-एक शब्द के अर्थ का सम्यक् ज्ञान होने और उसका उचित रीति से प्रयोग करने से स्वर्गलोक और समस्त मनोरथों की पूर्ति होती है। “मंत्र परम लघु” कह कर उसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सभी देव शक्तियों को बताकर मानसकार ने भी मंत्र की महिमा महत्ता का प्रतिपादन किया है।
वस्तुतः मंत्र विज्ञान महामाया प्रकृति की मूल उपादान शक्ति ध्वनि-ऊर्जा के विशिष्ट व्यवस्थित प्रयोगों की विद्या है। इसके प्रयोग का आधार उपासक का संकल्प और श्रद्धा बनती है। श्रद्धा समन्वित संकल्प ही मंत्र को जीवन्त और गतिशील बनाता है। शास्त्र का कथन है- “मन्त्राश्चिन्मरीचय” अर्थात्-मंत्र चिद्रश्मिमय हैं, चेतना की किरणों से मंत्र ओतप्रोत होते हैं। इसीलिए इन्हें संकल्प और श्रद्धा से समन्वित कर अति समर्थ बनाया जाता है। मंत्र जप में संकल्पयुक्त श्रद्धा की जितनी भी मात्रा बढ़ी चढ़ी होगी, उत्पन्न प्राण प्रवाह भी उतना ही प्रचण्ड एवं चेतनामय होगा।
मंत्र ध्वनि तरंगों के एक विशेष समुच्चय हैं। ये तरंगें अंतर्दृष्ट ऋतम्भरा प्रज्ञा द्वारा देखी जानी गयी है। पाया गया है कि मंत्र में उच्चारित ध्वनि तरंगों की एक निश्चित आकृति होती है। इसी आकृति के आधार पर मंत्रों के देवता आदि शास्त्रों में निर्धारित किये गये हैं। ध्वनि तरंगों के आधुनिक अनुसंधानों ने भी इन शास्त्रीय प्रतिपादनों के पक्ष में सामग्री जुटायी है। आज तो ध्वनि कंपनों से बनने वाले रूप-आकारों का अध्ययन करने वाली विज्ञान की एक नयी शाखा ही विकसित हो चुकी है जिसे “साइमेटिक्स” कहते है । इस क्षेत्र में अनुसंधानरत वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि हर स्वर, हर नाद, हर कम्पन एक विशेष आकार को जन्म देता है। मूर्धन्य वैज्ञानिक हंटिंग्टन और ड्यूवी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ब्रह्माण्ड के प्रत्येक घटक का अपना एक वाद्यमण्ड होता है और अपना इलेक्ट्रॉनिक नाद होता है।
साइमेटिक्स द्वारा ध्वनि कम्पनों की आकृति देखने का जो तरीका ढूँढ़ निकाला गया है उसमें जर्मनी के सुप्रसिद्ध भौतिक शास्त्रवेत्ता अरनेस्ट क्लाडनी को विशेष सफलता मिली है। वायलिन वादन के माध्यम से उनने बालुई सतह पर सुन्दर आकृतियाँ उभारने में सफलता पायी है। इन आकृतियों को ‘क्लाडनी के चित्र’ कहा जाता है। इसी से मिलता-जुलता प्रयोग स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित भौतिकीविद् डॉ. हेन्स जेनी ने ‘टोनोस्कोप’ नामक स्वनिर्मित यन्त्र के माध्यम से किया है। इस उपकरण से मनुष्य आवाज को या उच्चारित मंत्र ध्वनि को जड़ वस्तुओं पर केन्द्रित करके उसकी तरंगों को त्रिआयामीय स्वरूप में क्रमबद्ध रूप से सजते देखा जा सकता है। उनने अपने अनेकों प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया है कि ध्वनि तरंगों का वस्तु के आकार से गहरा सम्बन्ध है। एक प्रयोग में देखा गया कि ‘ओऽम्’ की ध्वनि माइक्रोफोन द्वारा करने पर गोल आकार विनिर्मित होता है।
मंत्र विज्ञान के ज्ञाताओं के अनुसार ‘ॐ’ का शुद्ध उच्चारण ‘आ’ से आरंभ होकर गुँजन करता हुआ ‘ओ’ से होता हुआ ‘म’ तक चला जाता है। ‘म’ का गुँजन स्वयं में ध्वनि न होकर अन्त के स्वर का विस्तार है। यह ध्वनि सभी याँत्रिक ध्वनियों से शक्तिशाली है। इसका वैज्ञानिक रीति से उपयोग करके चेतना को समुन्नत बनाया जा सकता है। कुछ विशेष ध्वनियों के योग से बने मंत्रों के उच्चारण से शरीर, चेतना एवं ब्रह्माण्ड में एक निश्चित प्रकार की ध्वनि तरंगें प्रवाहित होने लगती हैं जो प्रयोगकर्ता को, वातावरण को एवं समीपवर्ती व्यक्तियों को भी प्रभावित करती हैं। मन्त्रोपासना जिस स्थान पर होती है वहाँ से एक निश्चित आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगें सतत् प्रवाहित होती रहती हैं जिसका अनुभव एवं लाभ वहाँ रहने वाले व्यक्तियों को भी अनायास ही मिलता रहता है। भारत भूमि में अभी भी ऐसे अनेकों पवित्र स्थान है जहाँ कभी प्राचीन ऋषियों ने दीर्घकाल तक तपस्या एवं मंत्रोपासना की थी। कालान्तर में उसकी विशिष्टता को जानकर परवर्ती साधकों, संतों ने भी उसे तपस्थली के रूप में चुना और आत्मोत्कर्ष को प्राप्त हुए। इसी तरह देवात्मा हिमालय में कितनी ही गुफाएं ऐसी है जहाँ यदि शाँतचित्त होकर बैठा जाय तो मंत्रोच्चार की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। उन स्थानों में कभी ऋषि-मुनियों ने लम्बे समय तक मंत्र जप किया था, जिनके कंपन अभी भी वहाँ के वातावरण में सघनता से छाये हुए हैं। उन्हें न केवल सुना व अनुभव किया जा सकता है, वरन् साधक उनसे लाभाँवित भी हो सकते हैं।
ध्वनि एक प्रत्यक्ष शक्ति है और अणु शक्ति, विद्युत शक्ति, ताप शक्ति लेजर आदि की तरह ही इसका भी कई प्रकार से प्रयोग होता है। इसके सृजनात्मक एवं ध्वंसात्मक दोनों ही प्रयोग विख्यात हैं। ध्वनि के कम्पनों से उत्पन्न ऊर्जा का व्यवस्थित उपयोग मंत्र विज्ञान में किया जाता है। मंत्र शक्ति में ध्वनि प्रवाह के सही होने की विशेष भूमिका है। इसीलिए मंत्रों में महत्व मात्र शब्दार्थ का नहीं, वरन् निश्चित ताल लययुक्त शुद्ध उच्चारण का भी होता है। मनुष्य के मुख की तार-तंत्रिकायें शरीरस्थ षट्चक्रों, दिव्य ग्रन्थियों से जुड़े रहते हैं। मंत्रोच्चारण द्वारा ये चक्र ग्रन्थियाँ, उपत्यिकायें वैसे ही प्रभावित होती हैं जैसे वाद्य यंत्रों के एक तार को छेड़ देने पर संलग्न सभी तार झंकृत हो उठते हैं। शरीर के विभिन्न स्थानों पर छिपे सूक्ष्म शक्ति भण्डारों पर श्रद्धा एवं संकल्पयुक्त मंत्रोच्चार का प्रेरक प्रभाव पड़ता है और जो मंत्र जिस प्रयोजन के लिए निर्धारित हैं, उस स्तर की ध्वनि ऊर्जा उत्पन्न करता है।
मंत्रवेत्ताओं के अनुसार मंत्रोच्चारण के समय सम्पूर्ण शरीर संस्थान-शक्ति संस्थान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ध्वनि की शक्ति के साथ ही मंत्र में गति के विज्ञान का भी अपना महत्व है। मंत्र जप के साथ ध्वनि ऊर्जा का एक निश्चित घुमाव बार-बार होता है। यह घुमाव अपकेन्द्री शक्ति ‘सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स’ को जन्म देता है, जो चक्रवात की तरह प्रचण्ड परिपोषण शक्ति से युक्त होता है। मंत्रजप से उत्पन्न शब्द शक्ति का प्रचण्ड तूफानी चक्रवात संकल्प, बल तथा श्रद्धाबल से अंतरिक्ष में संव्याप्त दैवी चेतन ऊर्जा के संपर्क से अनेक गुनी शक्ति अर्जित करता है और साधक के लिए सिद्धियों का द्वार खोलता है।
इस प्रकार मंत्र को चेतना रश्मियों के शक्तिशाली गुच्छक-या शब्द तरंगों के विशेष समुच्चय कहा जा सकता है, जो अपने इष्ट चेतन प्रवाह से सघन संपर्क का माध्यम बनते हैं। इनके जप विधान में इसीलिए भाव श्रद्धा, जप, विधि, ऊर्जा तथा उपासना से जुड़े अन्य व्रत सभी का अपना महत्व है। इन सबके अनुशीलन से ही साधक का व्यक्तित्व मंत्र जप से उत्पन्न दिव्य चेतन ऊर्जा के धारण और उपयोग में समर्थ होता है।