Magazine - Year 1991 - Version 2
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Language: HINDI
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वेदना निवारण में योग की प्रभावी भूमिका
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गीता में योग को दुखों से मुक्ति दिलाने वाला कहा गया है- “योगो भवति दुःखहा।” महाभारत युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन की स्थिति वेदना से परिपूर्ण थी,उसका वह अन्तर्विषाद ही योग का प्रथम चरण बना था। आज भी योगाभ्यासों से वेदना से मुक्ति पाना असंदिग्ध है। योगासनों के अभ्यास से रोगों पर नियंत्रण ही नहीं, वरन् उन पर विजय भी प्राप्त की जा सकती है। विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों में अधिकाँश का उपचार योगासनों से संभव है।
आपाधापी भरे इस युग में तनावों से ग्रस्त आज का मानव अकारण चिन्ता,भय एवं अनिद्रा रोग को आमंत्रित कर लेता है। नींद लाने के लिए नशीली दवाओं का प्रयोग करता है जिनसे क्षणिक आराम भर मिलता है। पीछे शारीरिक,मानसिक दर्द एवं वेदना और अधिक बढ़े हुए प्रतीत होते हैं। तनाव तो दूर होता नहीं, शरीर एवं मन को विश्राम भी नहीं मिल पाता, उलटे विषैली-नशीली दवाओं के दुष्प्रभाव परिलक्षित होने लगते हैं। तीव्र औषधियों की प्रतिक्रिया स्वरूप अनेक अन्यान्य छोटे-बड़े रोगों का जन्म हो जाता है। फलतः व्यक्ति का वेदना से मुक्ति पाने के लिए इन दवाइयों की शरण जाना मृगतृष्णा ही सिद्ध होता है।
वस्तुतः वेदना का स्वरूप उतना हानिकारक एवं दुखद नहीं होता जितनी कि उसकी कल्पना कर ली जाती है। वेदना के अभाव में सुख की अनुभूतियाँ भी फीकी पड़ जाती हैं। दुख-दर्द आदि से मुक्त होने, वेदना से त्राण पाने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी मिथ्या काल्पनिक भयंकरता भरी मनोभूमि न बनायी जाय। शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्तर पर जीवन में दुख, द्वन्द्व वेदना आदि को सहजता से स्वीकार करते चले जाने जैसी योगियों जैसी मनोभूमि बना लेने से उनसे मुक्ति ही नहीं मिलती, वरन् मानवी चेतना भी विकसित होती है।
योग विद्या विशारदों का कहना है कि योग के माध्यम से विभिन्न प्रकार की शारीरिक, मनोकायिक, मानसिक एवं भावनात्मक पीड़ाओं पर काफी हद तक नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। शारीरिक, मानसिक तनावों को तो साधारण योगाभ्यास से ही दूर किया जा सकता है। आसनों के नियमित अभ्यास से शारीरिक तनाव दूर होते हैं। आंतरिक वेदनाओं को कम करने में प्राणायाम, शिथिलीकरण, ध्यान, सम्मोहन आदि की प्रक्रियायें बहुत कारगर सिद्ध होती हैं। योगाभ्यासपरक इन सामान्य सी दिखने वाली प्रक्रियाओं द्वारा मस्तिष्कीय स्नायु तंतु इस प्रकार व्यवस्थित हो जाते हैं कि पीड़ायें-व्यथायें दूर हो जाती हैं।
यौगिक क्रियाओं जैसा ही प्रभाव बायोफीडबैक आदि का होता है। यंत्रों द्वारा यौगिक प्रक्रिया सीखकर भी वेदना से मुक्ति पायी जा सकती है। इस संदर्भ में अनुसंधान कर रहे न्यूयार्क के माटेफाय हास्पिटल के मूर्धन्य चिकित्सा विज्ञानी डॉ. एन.जे. मारकास का कहना है कि बायोफीडबैक पद्धति के साथ-साथ शिथिलीकरण अभ्यास बहुत शीघ्र परिणाम प्रस्तुत करता है। इसी तरह के प्रयोग-परीक्षण शिकागो का ‘द डायमंड हेडेकक्लीनिक’ के शोधकर्मियों ने किया है। उनने लगभग 500 रोगियों पर बायोफीडबैक का उपयोग करके उनके स्नायुविक बीमारियों, सिरदर्द आदि को दूर करने में सफलता प्राप्त की है। बायोफीडबैक पद्धति में चेतना को किसी अंग विशेष या क्रम से शरीर के विभिन्न अंगों पर केन्द्रित करते चले जाते हैं। स्व संकेत परक यह प्रक्रिया अपने प्रति सजग होने का अभ्यास सिखाना है। भौतिक उपकरणों की सहायता से लोगों को ऐसा करने में सुविधा भी होती है। स्नायुविक दर्द, वेदना आदि विषयों पर पिछले दिनों मोंट्रियल में चिकित्सा विशेषज्ञों एवं मनोवैज्ञानिकों का सम्मेलन हुआ। उसमें विचार मंथन के उपरान्त यही निष्कर्ष निकला कि अपने प्रति अधिकाधिक सजग हो जाने से पीड़ा बहुत कम हो जाती है। योगाभ्यास, बायोफीडबैक, सम्मोहन आदि पर हुए अनुसंधानों का सार संक्षेप प्रस्तुत करते हुए, इन्हें वेदनायें दूर करने में उपयोगी बताया गया है।
मास्को के इन्स्टीट्यूट आफ जनरल साइकोलॉजी के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जी.एन. क्राइजेन्पेन्सकी का कहना है कि योगाभ्यासपरक प्रक्रियायें आन्तरिक ऊर्जा की अभिवृद्धि करने एवं चेतना के विकास के लिए बहुत उपयोगी हैं। योगासनों द्वारा मस्तिष्क सहित समूचे तंत्रिकातंत्र पर नियंत्रण साधा और उन्हें सुव्यवस्थित किया जा सकता है। उनके अनुसार वेदना का मुख्य कारण निराशा एवं आत्म विश्वास की कमी है। अपनी आन्तरिक क्षमता पर विश्वास न होने के कारण ही व्यथा-वेदनाओं की उत्पत्ति होती है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में अनुसंधानरत वैज्ञानिक डॉ. जे.एस. लिफ्टन एवं डॉ. जे.जे. मारकैन ने भी इसी तरह के निष्कर्ष एक सौ रोगियों का अध्ययन करके प्रस्तुत किये हैं। इन रोगियों में अधिकाँश निराशा से पीड़ित थे। इनका कथन है कि योग के अभ्यास से आत्मविश्वास उत्पन्न होकर जीवनी शक्ति का विकास होता जाता है जिसके फलस्वरूप निराशा,दुख एवं अंतर्वेदना पर नियंत्रण पा सकना शक्य हो जाता है।
विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों में मानसिक खिन्नता भी एक प्रकार का रोग है, जो व्यक्तियों में दो तरह से देखने को मिलती है। पहले प्रकार का रोगी कभी बैठा रहता है, कभी रोता है,कभी हँसता है तो कभी चिल्लाता है। उसकी मनःस्थिति में असामान्य रूप से परिवर्तन होने से उसकी मनःस्थिति उसके नियंत्रण से बाहर हो जाती है। दूसरे प्रकार के रोगी जिन्हें अपनी खिन्नता के बारे में खुद पता नहीं रहता वे ऊँची-ऊँची कल्पनायें करते रहते हैं और प्रायः विभ्रम में पड़ जाते हैं। इस प्रकार के रोगों में प्रायः जो उपचार काम में लाये जाते हैं, उनमें बिजली के शाक एवं ट्रैंक्यूलाइजर्स प्रमुख हैं। लेकिन इनसे शरीर के अन्दर पाये जाने वाले रासायनिक असंतुलन जो खिन्नता के प्रमुख कारण हैं, ठीक नहीं होते। उलटे रोगी की स्मरणशक्ति तक समाप्त होती देखी गयी है। दोनों प्रकार की खिन्नता के रोगियों का उपचार योगासनों से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। योगासनों से अंतःस्रावी ग्रंथियों से स्रवित होने वाले हारमोन रसायनों का असन्तुलन दूर हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप मानसिक खिन्नता आसानी से दूर हो जाती है।
मानसिक रोगों के शमन में ध्यान योग को बहुत लाभकारी पाया गया है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने ध्यान का शरीर और मन पर पड़ने वाले प्रभावों पर गंभीरतापूर्वक अध्ययन अनुसंधान किया है। उनका निष्कर्ष है कि मानसिक विकारों,तनावों से मुक्ति पाने-शान्ति प्राप्त करने के लिये दवाओं की अपेक्षा ध्यान अधिक उपयोगी एवं प्रभावी है। फ्राँस के सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. बैर्थेलेयर ने भी योगाभ्यासियों पर किये गये परीक्षणों से निष्कर्ष निकाला है कि ध्यान एवं अन्यान्य यौगिक प्रक्रियाओं के नियमित अभ्यास से वेदनाओं का निराकरण होता एवं मानसिक शक्ति का विकास होता है। पाया गया है कि योगाभ्यासी व्यक्ति आशावादी दृष्टिकोण से सम्पन्न होता जाता है। उसकी श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया सुसंतुलित हो जाती है। फलतः प्राणशक्ति के अभिवर्धन के साथ ही व्यक्ति दर्द से, वेदना से छुटकारा पा लेता है। वृद्धों में भी नवीन शक्ति, स्फूर्ति, आशा और उत्साह परिलक्षित होने लगता है। शारीरिक रोगों के साथ-साथ लोगों को मानसिक रोगों से छुटकारा पाने में भी योगाभ्यास बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। इसे नियमिततापूर्वक अपनाकर मनुष्य बुढ़ापे में भी शारीरिक-मानसिक आरोग्य का भरपूर लाभ उठा सकता है।