Magazine - Year 1991 - Version 2
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Language: HINDI
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मंगलदीप जलाओ साथी (Kavita)
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चलो, गुरु-ज्ञान का दीपक, हमें घर-घर जलाना है।
अँधेरे से डरे हैं जो, उन्हें हिम्मत बँधाना है॥
अँधेरी रात पाकर के, निराशा ने जिन्हें घेरा।
निराशा में जमाना चाहते पीड़ा-पतन डेरा॥
नहीं वे सोच पाते हैं, लड़ें कैसे अँधेरे से।
निकल पाते निराशा के, न जब तक क्रूर घेरे से ॥
उन्हें आशा-किरण का करिश्मा, जाकर बताना है ॥
अरे! क्यों हारते हिम्मत, अँधेरा कब सदा रहता।
सुबह की ही प्रतीक्षा में, इसे संसार सह लेता॥
कहीं सूरज निकलने की, सुनिश्चित तैयारी में है।
अँधेरा हमेशा को ही, न किस्मत तुम्हारी में है॥
तिमिर से जूझने की, भोर तक हिम्मत दिखाना है॥
न घबराओ, पतन, पीड़ा पराभव से तनिक भाई।
समय इतना निकट है, अन्त होने की घड़ी आई॥
कि युग-ऋषि ने पुनः देवत्व मानव का जगाया है॥
दनुजता को मिटाने का, अरे! बीड़ा उठाया है॥
निराशा छोड़ दो, मन में तुम्हें आशा जगाना है॥
नया युग आ रहा है, फिर निराशा टिक न पाएगी।
नगर में, गाँव में, घर में, अँधेरी दिख न पाएगी॥
उदय होगा नये दिनमान का, पथ जगमगाएगा।
यही दीपक हमें गुरु-ज्ञान सूरज से मिलाएगा॥
यही है सूर्य का प्रतिनिधि, इसे साथी बनाना है॥
-मंगल विजय