Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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खतरों से डरे या उनसे जूझें?
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सन् 1783 की घटना है गर्मी के चार बैंक एक साथ दिवालिया हुये। बैंकों ने सरकार से सहायता करने की अपील की पर सरकार ने स्पष्ट इन्कार कर दिया। दिवालिया होने के समाचार से हर हिसाब वाला अपना पैसा वापस लेने की उतावली में था। चलते कारोबार में तो लेन देन का पहिया लुढ़कता रहता है, पर जब जमा करने वाला एक भी न हो और सब के सब निकालने में अपना नम्बर सबसे पहला रखना चाहते हों तो ऐसी स्थिति को सरकार भी कैसे सम्भाले? इतना पैसा देना उसके बस में भी नहीं था। देश में हाहाकार मचा हुआ था। व्यापार ठप हो रहे थे और आगे क्या करना, यह रास्ता किसी को सूझ नहीं रहा था। इस परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए चारों बैंकों के संचालकों ने एक गुप्त मीटिंग की और एक ऐसी योजना बनाई, जिसके अनुसार इतना पैसा मिल सकता था, जिससे कि चारों बैंक चलने लगती। योजना थी तो बहुत जोखिम भरी, पर डायरेक्टर दिलेर था। उसने बैंक बन्द होने के जोखिम जितना ही यहाँ दूसरा जोखिम उठाना मंजूर कर लिया। कोई दूसरा विकल्प सूझ भी तो नहीं पड़ रहा था। योजना थी कि गुब्बारों से उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर एक मिशन भेजा जाय और उसके समाचार तथा चित्र संसार भर के प्रमुख अखबारों में एक साथ छपाये जायें। इसका कॉपीराइट पहले से ही तय कर लिया जाय। इन दिनों यह दोनों ही बातें बिल्कुल नहीं थीं तब एक हवाई जहाजों का प्रचलन नहीं हुआ था। गुब्बारों के बारे में प्रयोग चल रहा था। पर वह छोटा मोटा शौकिया था। वे छोटी यात्रायें कर सकते थे। इतनी लम्बी यात्रा गुब्बारों से करने की किसी ने सोची भी न थी। सबेरे घर से निकल कर दोपहर यह शाम तक घर लौट आना एक बात है और जिसमें पूरा एक सप्ताह लगे, उसके लिये कई आदमियों की एक टीम चाहिए। रात को सोना जरूरी था। इसके लिये पालिया बदलनी पड़ती फिर गैस एक बार में ही इतनी नहीं भरी जा सकती थी। वहाँ खर्च होती चले और नयी बनती चले ऐसा प्रबन्ध करना था। फोटोग्राफर और कैमरे ऊँचे दर्जे के चाहिए थे। लोग इतने उतावले थे कि छपने से पहले उसके रेडियो-समाचार भी सुनना चाहते थे। सब मिलाकर इतना सरंजाम जुटाना था, जिसके लिये टैक्नीशियन ही नहीं गुब्बारा भी बड़ा चाहिए था और साजो समान भी।
गुब्बारा बनकर तैयार हुआ, तो वह इतना बड़ा था जितना फुटबाल खेलने का एक अच्छा खासा मैदान। ऊंचा इतना कि गिरजाघर। यान्त्रिक उपकरणों के शिवाय एक दर्जन आदमियों के बैठने काम करने और सोने का इन्तजाम किया गया। इसके लिए काम चलाऊ कमरे थे। उत्तरी ध्रुव पर ठण्डक शून्य से बहुत नीचे रहती है और सदा बर्फ जमी रहती है। ऐसे मौसम में अनभ्यस्त लोगों को काम करने और जान बचाने के लिए आवश्यक गर्मी भी तो चाहिए। गुब्बारा ठीक तरह चल रहा है या नहीं, इसकी जानकारी लगातार प्राप्त करते रहे अमेरिकी सरकार से एक पनडुब्बी स्तर के छोटे बर्फ पर भी चल सकने वाले जलयान की व्यवस्था कर ली गयी। संसार में अपने दम का यह अनोखा प्रयोग था इसकी चर्चा एक महीने पहले सारे संसार में होने लगी थी। कौतूहल का ठिकाना न था।
जो अखबार तब निकलते थे उन सबसे खर्चा की जा चुकी थी। इतना पैसा तय किया गया था, जिससे बैंकों की रुकी हुयी गाड़ी चल पड़ती। रकम बड़ी थी, पर इस अद्भुत-अपूर्व घटना का हाथोंहाथ विवरण पढ़ने के लिये जनता इतनी आतुर थी कि उसकी कॉपीराइट राशि भी कम नहीं थी। छपना एक साथ था। जो पीछे रह जाते, उन्हें सदा के लिए वंचित रहना पड़ता। इस लिये अखबारों ने भी इसके परिशिष्ट अंक छापने और उनके अतिरिक्त मूल्य रखने की भी घोषणा की। खरीददारों की माँग पहले से इतनी आ गयी थी कि संयोजकों को उतना पैसा मिलने की आशा बंध गयी जितना की बैंकों को चलाने के लिये आवश्यक था।
इन दिनों तक उत्तरी ध्रुव सम्बन्ध किंवदंतियां ही प्रचलित थी। उसे भूतों का प्रदेश कहा जाता था। उस क्षेत्र की बारे में तब तक कोई प्रमाणिक जानकारी न थी। जो थी उसे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर और डरावने ढंग से कहा जाता था। उसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए सारे संसार में उत्सुकता की चरम सीमा थी। छः महीने का दिन महीने की रात एक कल्पनातीत बात थी। वस्तुतः वहाँ का वातावरण था भी ऐसा जिसमें इन्द्रधनुषों की भरमार ध्रुवीय प्रकाश अरोरा बोरयेलिस उड़ते हिम पर्वत आवाजों का कहीं से कही पहुँचना प्रतिध्वनियों का जादू जीव जन्तुओं के नाम पर सफेद रीछ बर्फ के नीचे रहने वाली विचित्र मछलियाँ आदि एक से एक बढ़कर अजूबे थे। समाचार जैसे ही रेडियो में पहुँचने लगे सुनने वालों को ऐसा लगा मानो वे किसी दूसरे की बातें सुन रहे थे।
यात्रा में सप्ताह भर का समय लगा। गुब्बारा दिन-रात चलता रहा। बर्फ के नीचे साथ-साथ चलने वाले अमेरिका जलयान ने ऐसी सहायता की जिससे भटकने का खतरा कम से कम होता गया। कुछ टैक्नीशियन ठण्ड से बीमार जरूरी पड़े पर यात्रा योजना के अनुसार उत्तरी ध्रुव तक तो नहीं समीप तक ठीक प्रकार पूरी हो गयी।
उत्तरी ध्रुव की यात्रा गुब्बारे से करना कितना कठिन है, इसका अनुमान आज के तेज वायुयानों और राकेटों के जमाने में लगाना कठिन है, पर जो लो उस यात्रा पर उन दिनों गये होंगे उन्हें चन्द्रलोक की यात्रा से कम गौरव प्राप्त न हुआ होगा। थोड़े से साहसी कोई कदम उठाते हैं, तो उन्हें देखकर कितनों के हौंसले बुलंद होते हैं। साहस के आधार पर मनुष्य की साहसिकता और वरिष्ठता का अनुमान लगता है। इस प्रेरणा से कई लोग कई तरह के काम कर गुजरते हैं।
जर्मनी की चार दिवालिया बैंकों को इस यात्रा से भी अधिक प्रतिष्ठा दिलायी और उनका ठप्प कारोबार फिर से आसमान पर जा पहुंचा। जिनने इस योजना को बनाया, जो इस दहलाने वाली यात्रा पर जाने के लिए तैयार हुए उनकी चर्चा संसार के कोने-कोने में होती रही। पढ़ने और सुनने मात्र से लाखों करोड़ों ने इतना उत्साह प्राप्त किया कि उन्हें मुद्दतों सराहा जाता रहा। जिन पत्रिकाओं में वे समाचार छपे, वे भी प्रख्यात हो गई।
उत्तरी ध्रुव की दुनिया एक अनोखी दुनिया है। ठंडक की दृष्टि से ही नहीं, दृश्यों दृष्टि से भी। ऐसे अनोखे वातावरण में जाने पर मनुष्य का एक नवीनता के साथ ही संपर्क नहीं बनता, वरन् नये साहस का उदय भी होता है। बढ़ा हुआ साहस मानवी प्रगति के हजार काम साधता है। डरपोकों की बात दूसरी हैं, पर साहसी लोग सदा खतरों से जूझते हैं और ऐसी परिस्थितियों में पदार्पण करते हैं, जो दूसरों को चकित कर देती है।
भीरु मनोवृत्ति के लोग इसलिए ऐसे छोटे-मोटे कार्यों की तलाश में रहते हैं, जिनसे लोगों को आश्चर्यचकित किया और यश कमाया जा सके, पर जो वास्तव में साहसी प्रकृति के हैं, उन्हें इस प्रकार के चयन की आवश्यकता नहीं पड़ती, कारण कि खतरों से खेलना उनका स्वभाव ही होता है, अतः जिस भी कार्य में वे हाथ डालते हैं, वही उनके साहस का परिचय देने लगता है। जहाँ अद्भुत और अभूतपूर्व स्तर के कार्य संपन्न हो रहे हों, वहाँ कर्ता और कार्य की प्रसिद्धि भी आ जुड़ती है। प्रसिद्धि से कीर्ति का बढ़ना और यश मिलना स्वाभाविक है। यह एक सहज प्रक्रिया है, जिसमें यश लिप्सा तो नहीं होती, पर कार्य की अद्भुतता के कारण ख्याति मिलती चली जाती है। इस ख्याति से व्यक्ति की शोभा बढ़ती है, सो बात नहीं अपितु असाधारण व्यक्तित्व के साथ मिलकर कर्तव्य की शोभा पाने लगता है। यह विशिष्ट विभूतियों की विशिष्टता का प्रभाव है। जहाँ ऐसी विशिष्टताएं होंगी, वहाँ खतरों की उपस्थिति मात्र से कोई कार्य रुका न रह सकेगा, प्रतिभा संपन्नों को यही पहचान है।
खतरों की प्रकृति यह है कि वह डरपोकों को दूर से अधिक लगता है, पर साहसी लोग जैसे-जैसे उसके समीप पहुँचते हैं, वैसे-वैसे नया साहस और नया उत्साह मिलता जाता है। गुब्बारे से उत्तरी-ध्रुव की यात्रा करने वाले यात्रियों को जो अनुभव हुए, उन्हें सुनकर दाँतों तले उँगली तो दबानी पड़ती है, पर यात्रियों ने उस नवीनता के साथ जुड़ी हुई प्रसन्नता को जो वर्णन किया, उसे सुनकर लगता ऐसा ही है, वस्तुतः वैसा होता नहीं। वस्तुतः इस विश्व का इतिहास लिखा ही उनने हैं, जिनने खतरे उठाये हैं। भले ही उपरोक्त प्रयोग सामयिक रूप से दिवालिये होते व्यवसाय को रोकने के लिए किया गया हो, किंतु इसने संभावनाओं के अनेकानेक द्वार खोल दिये। बाद में लोग स्की की मदद से, पैदल भी गए जो अधिक खतरे से भरा काम था। किंतु इस पहले दल ने जो दुःसाहस किया वह अध्यात्म जगत में जिजीविषा-शौर्य रूपी विभूति के नाम से जाना जाता है व जब भी संपन्न किया जाता है बदले में ढेरों यश-कीर्ति साथ लेकर आता है। यह मार्ग सबके लिए खुला है।