Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
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गायत्री महामंत्र सर्वविदित है इसका प्रयोग जिस भी क्षेत्र में किया जाता है, उधर ही सफलता प्राप्त होती चली जाती है। एक ओर जहाँ इस छोटे से आदि मंत्र में वह ज्ञान और प्रकाश-प्रेरणा भरी पड़ी है जिससे अज्ञान, अंधकार और अभाव को दूर किया जा सकता है और अंतर्निहित सूक्ष्म शक्ति के केन्द्रों को जाग्रत कर एक ऐसी मनोभूमि तैयार की जा सकती है जिस पर ईश्वरीय सत्ता केंद्रीभूत होने के लिए अपना आसन लगाने की स्वीकृति प्रदान करती है वहीं दूसरी यह वह विज्ञान और विद्या है जिससे शक्ति का उद्भव होता है, प्राण शक्ति बढ़ती है और दीर्घायुष्य प्राप्त होता है। अथर्ववेद 19/1/71 में गायत्री महिमा गान करते हुये स्पष्ट उल्लेख है कि यह आयु, प्राण-शक्ति कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली है। मन्त्र जप का लाभ मानसिक ओजस्विता, बौद्धिक प्रखरता, आत्मिक वर्चस् के रूप में मिलता ही है, अरोग्य प्राप्ति, आयुवृद्धि, विपत्ति निवारण जैसी अगणित भौतिक उपलब्धियां भी इसकी विशेषता है।
गायत्री महामंत्र का बार-बार लयबद्ध उच्चारण करने से मानवीय मन-मस्तिष्क एवं हृदय असाधारण रूप से प्रभावित होते हैं इस संदर्भ में वैज्ञानिकों गहन अनुसंधान किये हैं और पाया है कि मंत्रोच्चार से ध्यान की गहराई में मन को प्रवेश करने का अवसर मिलता है, जिसका प्रतिफल ‘अल्फास्टेट’ के रूप में ई. ई. जी मशीन पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। ‘अल्फा-स्टेट’ मन की वह अवस्था होती है जिसका बाह्य रूप शांतचित्त और आन्तरिक प्रफुल्लता के रूप में दृष्टिगोचर होता है, जबकि आन्तरिक रूप से अन्तःकरण में दैवी गुणों का विकास होता है और अतींद्रिय क्षमतायें जाग्रत होती हैं। मंत्र जप मानवी चेतना को मथ डालने वाली संसार की सर्वाधिक शक्तिशाली प्रतिक्रिया है। उससे न केवल असाधारण शारीरिक, मानसिक क्षमता प्राप्त होती है, वरन् आत्मिक विभूतियों और भौतिक सिद्धियों को भी हस्तगत किया जा सकता है।
मंत्र विद्या के विशेषज्ञ वैज्ञानिक जानते हैं कि जिनसे जो भी शब्द निकलते हैं, उनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्धा, ओष्ठ, दन्त, जिह्वामूल आदि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है। इस उच्चारण काल में मुख के जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों की नाड़ी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों तक फैलते हैं। इस फैलाव क्षेत्र में कई ग्रन्थियाँ होती है जिन पर उच्चारणों का दबाव पड़ता है। जिन लोगों की कोई सूक्ष्म ग्रन्थियाँ रुग्ण या नष्ट हो जाती हैं, उनके मुख से कुछ खास शब्द अशुद्ध या रुक-रुक कर निकलते हैं, इसी को हकलाना या तुतलाना कहते हैं। योगविद्या विशारद जानते हैं कि शरीर में अनेक छोटी-बड़ी दृश्य-अदृश्य ग्रन्थियाँ तथा शक्ति केन्द्र होते हैं जिनमें विशेष शक्ति भण्डार छिपे रहते हैं। सुशुम्ना सम्बन्ध षट्चक्र प्रसिद्ध है। ऐसे अगणित सूक्ष्म शक्ति केन्द्र शरीर में हैं। विविध शब्दों का उच्चारण इन विविध ग्रन्थियों पर अपना प्रभाव डालता है और उस प्रभाव से उन केन्द्रों का शक्ति भाँडागार जाग्रत होता है। मंत्रों का गठन इसी आधार पर हुआ है गायत्री महामंत्र में 24 अक्षर हैं इसका सम्बन्ध शरीरस्थ स्थूल एवं सूक्ष्म ग्रन्थि तन्त्रों-शक्ति केन्द्रों से है जो जाग्रत होने पर सद्बुद्धि प्रकाशक शक्तियों-अतींद्रिय क्षमताओं को सतेज करते हैं। गायत्री मंत्र के उच्चारण से सूक्ष्म शरीर का सितार चौबीस स्थानों से झंकृत होता है और उससे एक ऐसी स्वर-लहरी उत्पन्न होती है जिसका प्रभाव अदृश्य जगत महत्वपूर्ण तत्वों पर पड़ता है। गायत्री महामंत्र की शब्दावली ही ऐसे शृंखलाबद्ध शब्दों से बनायी गयी है जो क्रम और गुम्फन की विशेषता के कारण उच्चारण कर्ता के शरीर, मन और अन्तराल के अतिरिक्त दृश्य-अदृश्य जगत में अपने ढंग का एक अद्भुत एवं विशिष्ट शक्ति प्रवाह उत्पन्न करती है।
मंत्र में ध्वनियाँ होती है। ध्वनियों के समूह को ही मंत्र कहते हैं। विज्ञानवेत्ताओं ने शब्द विज्ञान-ध्वनि विज्ञान पर प्रयोग-निरीक्षण किये हैं और अनेकों प्रत्यक्ष चमत्कार प्रस्तुत किये हैं। आज चिकित्सा उपचार से लेकर ध्वंसात्मक प्रयोजनों तक में इसे प्रयुक्त किया जाने लगा है। ध्वनि-तरंगों पर नित नये परीक्षण किये जा रहे हैं। जर्मनी के मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने विविध परीक्षणों के आधार पर निष्कर्ष-प्रस्तुत करते हुये कहा है कि मानवीय काया पर ध्वनि तरंगों का विशेष मंत्र विज्ञान अद्भुत प्रभाव पड़ता है उनने’ ‘ॐ’ के उच्चारण से निकलने वाली ध्वनि तरंगों से उत्पन्न शक्ति का वर्णन करते हुए लिखा है यदि ‘ॐ’ का उच्चारण विधिपूर्वक किया जाय तो उससे एक मोटी दीवार तक फट सकती है। इसी तरह का निष्कर्ष फ्राँस की एक महिला वैज्ञानिक (मि. वाटसह्य) ने अपनी पुस्तक-”वाँइस फिगर्स” में प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार मंत्र जप से हृदय और मस्तिष्क विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। नियतरूप से जप करते रहने पर क्रमशः मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों का उद्भव होता है। प्राणशक्ति का अभिवर्धन, अरोग्य प्राप्ति एवं दीर्घायुष्य जैसे भौतिक लाभ तो इसके सहज परिणाम है।
मानवी काया में संजीवनी शक्ति-प्राणशक्ति की घट-बढ़ होने पर शारीरिक एवं मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है और अनेकानेक प्रकार की व्याधियाँ धर दबोचती हैं। चिकित्साविज्ञानी इसका उपचार अपने ढंग से करते हैं तो योगविज्ञानी प्राणायाम परक अनेक विधाओं द्वारा इसकी पूर्ति करने का मार्ग सुझाते हैं। गायत्री महामंत्र का जप इस आवश्यकता की पूर्ति आसानी से कर देता है। यह प्रक्रिया हानिरहित भी है और निरापद भी। गायत्री का अर्थ ही है-प्राणों का त्राण-रक्षा करने वाली। ‘गय’ माने प्राण और ‘त्रि’ माने त्राण करने वाली। इस उपक्रम अपना कर मनुष्य विपुल परिणाम में प्राण संचय कर सकता है और वहाँ प्राण बनकर जरूरतमंदों की भी सहायता कर सकता है।
भारतीय अध्यात्म शास्त्रों में इस तरह के अनेक मंत्रों का उल्लेख है जिनके भाव प्राणव जब से चिकित्सकीय लाभ उठाये जा सकते हैं। इन मंत्रों में गायत्री महामंत्र की महानता एवं उपाद्यता सर्वोपरि है। गायत्री महामंत्र सूर्य का मंत्र है जिसका प्राण-जीवनी शक्ति से सीधा सम्बन्ध है। यह अपने उपासक-जब कृता को सर्वप्रथम वायु अर्थात् दीर्घायुष्य प्राणवान बनाती है वैज्ञानिक परीक्षणों से भी अब इस तथ्य की पुष्टि हो गयी है कि इस महामंत्र का जप करने से मनुष्य की जीवनी शक्ति में असाधारण रूप से अभिवृद्धि होती है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में जिसे ‘इम्यूनिटी अर्थात् रोग प्रतिरोधी क्षमता कहते हैं, वह और कुछ नहीं प्राणशक्ति की अधिकता ही है। इसके क्षीण होने पर ही मनुष्य रोगी बनता है। गायत्री मंत्र का जप करते रहने पर समूची काया धीरे-धीरे प्राण प्रखरता से भरती जाती है और भीतरी एवं बाहरी रोगाणुओं से शरीर की रक्षा करने के साथ-साथ दीर्घायु प्रदान करती है। गहनतापूर्वक जाँच-परख करने पर पाया गया है कि इस मंत्र का जप करते रहने पर श्वासों की संख्या स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है। यह एक मिनट में 15 के स्थान पर सात रह जाती है। प्रायः 15 के स्थान पर सात रह जाती है। प्रायः प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति 24 घंटे में 21600 बार श्वास लेता है अर्थात् एक मिनट में 15 बार। प्राणायाम परक यौगिक क्रियाओं से श्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण साधा और उसकी गति को कम किया जाता है। जब द्वारा भी यही प्रक्रिया संपन्न होती है। इस तरह से यदि कोई व्यक्ति एक घंटा प्रतिदिन जप करता है तो समझा जाना चाहिए कि उसकी आयु में लगभग 500 श्वासों की आयु-वृद्धि हो गयी। इस तरह से यदि वह इस प्रक्रिया को निरंतर जारी रखता है तो जीवन में कई वर्षों की वृद्धि हो सकती है। इस संदर्भ में जबलपुर मेडिकल कालेज के वरिष्ठ चिकित्सा विज्ञानी एवं हृदय रोग विशेषज्ञ डा. आर. एस. शर्मा ने गंभीरतापूर्वक परीक्षण किया है। उनने अपनी अनुसंधानपूर्ण कृति “थेरप्यूटिकल बेनिफिट्सि आफ गायत्री मंत्र” अर्थात् गायत्री मंत्र के चिकित्सकीय लाभ में लिख है कि मंत्र जप आत्मोत्थान में सहायक तो होता ही है, साथ ही साथ इसके प्रभाव से शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य में भी अभूतपूर्व सफलता मिलती है। गायत्री महामंत्र के नियमित जप का मनुष्य के आयुष्य एवं जीवनक्रम पर क्या क्या प्रभाव पड़ता है? इस प्रयोग-परीक्षण के लिए 40 से 80 वर्ष आयु के 20 व्यक्तियों को चुना गया जो जप करते थे साथ ही संबंधित व्यक्तियों के परिवार से एक-एक ऐसे व्यक्ति को लिया गया तो जप नहीं करता था। दोनों ही समूहों का आहार-विहार परीक्षण के सात ई. सी. जी., ई.ई. जी., ब्लडप्रेशर आदि भी नोट कर लिये गये। यह भी परख लिया गया कि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप या कोई अन्य हृदय संबंधी बीमारी तो नहीं है। तीन वर्ष तक बराबर त्रैमासिक परीक्षण किया जाता रहा। मंत्र जप करने वाले समूह के जो परीक्षण परिणाम सामने जाये, वे अद्भुत थे। पाया गया कि जो व्यक्ति जपकर रहे थे, अद्भुत थे। पाया गया कि जो व्यक्ति जप कर रहे थे, उनके रक्त दाब एवं हृदय दाब एवं हृदय-गति क्रमशः कम हो गयी थी, परंतु जो जप नहीं कर रहे थे उनके हृदय की गति एवं रक्त दाब अपेक्षाकृत बढ़े-चढ़े थे। पहले ग्रुप में न तो किसी को उच्च रक्त चाप की बीमारी थी और न ही ‘एन्जाइना’ जैसा हृदय रोग। उनमें से किसी को कार्डियोवैस्कुलर या सेरिब्रो वैस्कुलर बीमारियों से मरते भी नहीं देखा गया, जबकि दूसरे ग्रुप के कई व्यक्ति इन्हीं बीमारियों से ग्रस्त होकर दम तोड़ते देखे गये।
हृदय की गतियों पर सामान्य मनुष्यों का कोई नियंत्रण नहीं होता, लेकिन योगाभ्यासियों के लिए हृदय की गतियों पर सामान्य मनुष्यों का कोई नियंत्रण नहीं होता, लेकिन योगाभ्यासियों के लिए हृदय की धड़कन एवं नाड़ी गति आदि को इच्छानुसार घटा-बढ़ा लेना, उसकी लयबद्धता को सुस्थिर बना देना एक सामान्य क्रिया होती है। इस प्रक्रिया द्वारा हृदय की अनैच्छिक पेशियों को वशवर्ती बनाया जा सकता है। हृदय की असामान्यगति- “सायनस टैकीकार्डिया” से लेकर हृदयाघात तक की प्राणघातक बीमारियों से गायत्री मंत्र द्वारा छुटकारा पाया जा सकता है। इस मंत्र द्वारा हृदय की लयबद्धता को न केवल नियमित बनाया जा सकता है, वरन् असामयिक मरण से भी छुटकारा पाया जा सकता है। इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए डा. शर्मा ने पिछले दिनों 16 से 70 वर्ष की आयु के 266 व्यक्तियों पर 17 दिन से लेकर एक वर्ष तक गायत्री मंत्र के प्रभाव का परीक्षण किया। इनमें से अधिकतर कार्डियक अरिमियास, आट्रि टैकीकार्डिया जैसे विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों से पीड़ित थे। इन्हें नियमपूर्वक गायत्री महामंत्र का जप कराया गया। एक वर्ष बाद पाया गया कि हृदय रोगों में दी जाने वाली प्रचलित औषधियों की अपेक्षा इस महामंत्र का अधिक स्थायी एवं अनुकूल प्रभाव पड़ा।
‘हाइपरटेन्स’ अर्थात् उच्च रक्तचाप वर्तमान शताब्दी की सबसे बड़ी बीमारी है। विश्वभर में इस महाव्याधि से पीड़ितों की संख्या करोड़ों में और प्रतिवर्ष लाखों नये रोगी इस शृंखला में आ जुड़ते हैं। प्रचलित औषधि उपचार भी इसमें कोई स्थायी राहत नहीं दिला पाते, कारण कि यह एक मनोकायिक रोग है, जिसकी जड़ मानसिक उत्तेजनाओं, उद्विग्नताओं, चिंताओं एवं तनावों में छिपी हुई है। इसका उपचार भी तद्नुरूप ही ढूँढ़ा जाना चाहिए जो चिंतन-चेतना को प्रभावित-परिष्कृत कर सके और ‘तंत्रिका तंत्र एवं स्नायु प्रणाली को सुसंतुलित बनाये रख सके। गायत्री महामंत्र को इसके लिए सबसे उपयुक्त पाया गया है। इस महामंत्र में एक ओर जहाँ मन-मस्तिष्क को उच्चस्तरीय विचारणाओं, सत्प्रेरणाओं से परिपूरित करने, मनोविकारों का श्वास करने की क्षमता है, वहाँ केन्द्रों, नाड़ी संस्थानों को प्रभावित-उत्तेजित करने और उन्हें जाग्रत कर क्षमतावान् बनाने की सामर्थ्य विद्यमान है। अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन व्यक्तियों की हृदयगति 110 प्रति मिनट थी, वह 3 माह से एक वर्ष की जप साधना के पश्चात् 70 प्रति मिनट तक हृदयगति को कम करने में सफल हुए। चिकित्सा विज्ञानियों के अनुर ऑटोनामिकनर्वस सिस्टम एवं मन-मस्तिष्क का सीध संबंध मंत्र के साथ जुड़ जाने के कारण ही इस प्रकार के अप्रत्याशित परिवर्तन होते हैं।
गायत्री महामंत्र से होने वाले भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ, सिद्धियाँ, शक्तियां किसी दैवी कृपा से अकस्मात् ही प्राप्त नहीं हो जातीं, वरन् उसके द्वारा जो वैज्ञानिक प्रक्रिया अपने आप मंत्रवत् होती हैं उससे लाभ होता है। मंत्र की सफलता उसके शुद्ध उच्चारण में है, तभी उसमें गुँथे शब्दों का प्रभाव विभिन्न शक्ति केन्द्रों पर पड़ना संभव होता है। मंत्र जप में भावना के साथ-साथ नियमितता एवं लयात्मकता का प्रमुख योगदान होता है। श्रद्धा और विश्वास तो इसका मेरुदंड है ही।