Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
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सभी परिजन अपने चिंतन में पवित्रता, उत्कृष्टता के उदार सिद्धांतों का समावेश करें। वैसी कल्पनायें करें। वैसी ही योजनायें और गतिविधियों को उसी स्तर की विनिर्मित होने दें। क्योंकि नया युग अब सन्निकट ही है।
अनगढ़ लोगों सुगढ़ बनाने में अपना कौशल माने। मैले कपड़े को साबुन और स्वच्छ जल से धोने का प्रयत्न करें। अनीति का जवाब अनीति नहीं हो सकता। इससे तो आक्रमण-प्रत्याक्रमण का कुचक्र चल पड़ता है और अंत भयावह ही होता है।
चिकित्सक मरीजों के प्रति उदार रहते हैं। वे आवेश में क्या कहते हैं इस पर ध्यान नहीं देते। वरन् रोगी को बचाने और रोग को मारने का ही प्रयत्न करते रहते हैं।
पागलखाने के डाक्टर अपने अस्पताल के पागलों से जैसा व्यवहार नहीं करते। बदले की नीति की नीति नहीं अपनाते। वरन् वह तरीका अपनाते हैं जो एक डाक्टर को मरीजों के साथ अपनाना चाहिए। दोनों एक जैसा आचरण करें तो डाक्टर और मरीज का अंतर कहाँ रहा।
बालक भूल करते हैं। उनके बालकपन स्थिति में स्वाभाविक भी है किंतु बड़े गलतियों को उदारतापूर्वक सहते हैं साथ ही उन्हें वह तरीका प्यार पूर्वक सिखाते हैं जिससे वे उस प्रकार की भूल आगे न करें। यही रीति नीति विचारशीलों द्वारा स्तर वालों के साथ अपनाई जाती है।
आवेश में अनर्थ ही बन पड़ता है। किस स्तर का दोष किस प्रकार के उपचार से सुधर सकता है। इसे सोचने का अवसर ही आवेशग्रस्त को नहीं मिला। इसलिए सुधार के लिए जिस स्तर की प्रताड़ना आवश्यक समझी जाय, उसे भी इसी आधार पर किया जाय जैसा कि डाक्टर नपा-तुला नश्तर फोड़े में दिलवाता है।
अपनी बात सही-दूसरे की गलत यह मान्यता हटवादी है। तर्क तो मनुष्य अपनी ही मान्यता के पक्ष में गढ़ता है इसलिए मतभेदों को उदारतापूर्वक सुलझाना चाहिए। मात्र अपने को ही सही और समझदार मानते रहने पर सत्य के निकट तक पहुँच सकना संभव नहीं होता। सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए न्यायाधीश जैसी निष्पक्ष मनःस्थिति होनी चाहिए।
पिछले दिनों संकीर्णता का दौर रहा है। विलगाव को प्रश्रय मिलता रहा है। एकता के लक्ष्य तक पहुँचने की बात नहीं सोची गई। इसलिए जातिवाद, मतवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, कबलावाद आदि के अनेक रूपों में संकीर्णता पकती रही है। इससे विग्रह बढ़े हैं। अब इस भूल का सुधार होना चाहिए।
विज्ञान के बढ़ते साधनों में अब दुनिया को बहुत छोटी कर दिया है। दूरवर्ती देश, द्वीप अब संचार साधनों और वाहनों के माध्यम से अति निकट आ गये हैं। इतने समूचे संसार को अब अति निकट ला दिया है। एक गाँव या परिवार की तरह अब हम सब का चिंतन और समाधान इसी दिशा में बढ़ना चाहिए।
अगले दिनों समस्त संसार एकता और समता के सिद्धाँतों पर विनिर्मित होगा। इसके बिना और कोई चारा नहीं। घर तभी चलता है जब परिवार के सब लोग एक होकर रहें एक रीति−नीति अपनायें। बिखरने से ही तो सभी का निर्वाह कठिन हो जायेगा।
अगले दिनों समस्त संसार एक देश बनकर रहेगा। एक भाषा होगी, एक व्यवस्था और कानून चलेगी। विचारों में एकता और आत्मीयता का गहरा पुट रहेगा। वह समय जितना निकट आता जायेगा, उसी अनुपात से सुख−शांति बढ़ती जाएगी। नवयुग के लिए हम सब स्वयं को तैयार करें।