Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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अनंत शास्त्रं बहुलाश्च विद्या
अल्पश्चकालो बहुविध्नता च ।
यत्सार भूतं तदुपासनीयं हंसो यथा
क्षीर मिवाम्बुमध्यात् ॥पंचतंत्र कथामुख
शास्त्र अनंत है, विद्याएँ अनेक है जीवन की अवधि थोड़ी है और विघ्न बहुत हैं । अतः जिस प्रकार हंस पानी अलग कर केवल दूध ही ले लेता है, वैसे ही हमें भी शास्त्रों का सार तत्व ग्रहण करके उसकी उपासना में लग जाना चाहिए ।