Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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पुण्य फलदायी गायत्री साधना
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गायत्री साधना द्वारा आत्मोन्नति होती है। यह सुनिश्चित तथ्य है। कतुष्य के अंतः क्षेत्र के संशोधन, परिमार्जन संतुलन एवं विकास के लिए गायत्री मंत्र से बढ़कर और कोई उसका साधन नहीं है। जो अतीतकाल से असंख्यों व्यक्तियों के अनुभवों में सदा खरा उतरता आया हो। मन , बुद्धि, चित्त, अहंकार का अंतःकरण चतुष्टय गायत्री महामंत्र की उपासना के द्वारा शुद्ध कर लेने वाले व्यक्ति के लिए साँसारिक जीवन में सब आरे से सब प्रकार की सफलताओं का द्वार खुल जाता है उत्तम स्वभाव अच्छी आदतें, स्वस्थ मस्तिष्क, दर दृष्टि , प्रफुल्ल मन, उच्च चरित्र , कर्तव्य निष्ठा की प्रकृति को प्राप्त करने के पश्चात् गायत्री साधक के लिए संसार में कोई दुःख कष्टकर नहीं रह जाता, उसके लिए सामान्य परिस्थितियों में भी सुख ही सुख उपस्थित रहता है इन रहस्यों को गायत्री उपासना में निमग्न साधकों ने अनुभव किया है। अथर्ववेद 1'-17- ' द्गह्यड्ड गायत्री है स्तुति करते हुए कहा गया है कि वह आयु , प्राण , प्रजा, पशु, कीर्ति, करने वाली है। “संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान , तप गायत्री मंत्र की एक कला के समान है ये भव्य गायत्री के उद्गाता महर्षि विश्वमित्र के हैं महर्षि याज्ञवल्क्य तो गायत्री को वेद वाङ्मय की सर्व श्रेष्ठ उपलब्धि मानते हैं गायत्री और समस्त वेदों को तराजू में तोला गया तो उन्हें गायत्री वाला पलड़ा भारी लगा। उन्हीं के विचार से “वेदों का सार उपनिषद् एवं उपनिषदों एवं उपनिषदों का सार व्याहृतियों समेत गायत्री है। गायत्री वेदों की जननी है, पापों का नाश करने वाली है, इससे अधिक पवित्र करने वाला अन्य कोई मंत्र पृथ्वी पर नहीं है। नारकीय दावानल में फँसे हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली गायत्री ही हैं उससे उत्तम वस्तु स्वर्ग और पृथ्वी पर कोई नहीं। अन्य उपासनाएं करें चाहे न करें, केवल गायत्री उपासना से व्यक्ति जीवन मुक्त हो जाता है। गायत्री उपासना आत्मा का परम शोधन करने वाली है। उसके प्रभाव से कठिन दोष और दुर्गुण का परिमार्जन हो जाता है। जो मनुष्य गायत्री तत्व को भली प्रकार समझ लेता है। उसके लिए संसार में कोई सुख शेष नहीं रह जाता। कुषि अन्नि, शैनिक , शंख पाराशर एवं भगवान मनु जैसे गायत्री के परम उपासकों ने अपने जीवन की उपासना संबंधी अनुभूतियों को इसी रूप में उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम को दर्शाया है। महर्षि व्यास तो इनसे भी आगे अपने गूढ़तम साधना के परिणामों को दर्शाते हुए कहते हैं”जिस प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री हैं।” गायत्री काम धेनु के समान है। गंगा शरीर के पाप कामों निर्मल करती है , गायत्री 3पों ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है जो साधक गायत्री महामंत्र को छोड़कर अन्य उपासनाएं करता है। वह पकवान् छोड़कर भिक्षा माँगने वाले के समान हैं राम कृष्ण, हनुमान, भगवान शंकर, गणेश, कार्तिकेय , जैसी अवतारी सत्ताओं ने स्वयं गायत्री महाशक्ति की उपासना की और उपार्जित शक्ति का उपयोग असुरता से लड़ने के लिए किया । अपने भक्तों को भी गायत्री की ही शरण में आने का संदेश उन्होंने दिया। काम्य सफलता, तथा तप की सिद्धि के लिए गायत्री से श्रेष्ठ और कुछ नहीं है। गायत्री ब्रह्म साक्षात्कार कराने वाली है। अनुचित काम करने वाली के दुर्गुण गायत्री के कारण छूट जाते हैं जो ब्रह्मचर्य पूर्वक गायत्री की उपासना करता है। और आहार में ताजे आँवले के फलों को सेवन करता है। वह दीर्घ जीवी होता है । ऐसा कहा गया है। मंदमति, कुमार्गगामी और अस्थिर भांति भी गायत्री के प्रभाव से उच्च पद को प्राप्त करते हैं जो पवित्रता और स्थिरता -पूर्वक गायत्री की उपासना करते हैं वे आत्म लाभ प्राप्त करते हैं। योग का मूल आधार गायत्री है। गायत्री से ही संपूर्ण योगों की साधना होती है। उपरोक्त अभिमतों से मिलते जुलते विचार प्रायः सभी ऋषियों के है। ऋषि प्रचर भारद्वाज , चरक, नारद, वशिष्ठ, गौतम , उद्दोलक, देवगुरु बृहस्पति, शृंगी ऋषि , वैशम्पायन, दुर्वासा, परशुराम, दत्तात्रेय, अगस्त अनत्कुमार, कण्व शैतिक जैसे ऋषियों के जीवन वृत्तांतों से स्पष्ट है कि उनकी महान सफलताओं का मूल हेतु गायत्री उपासना ही था कोई भी ऋषि अन्य विषयों में चाहे परस्पर विचारों की भिन्नता रखते रहे हों पर गायत्री के बारे में उन सबमें समान श्रद्धा भी और सभी ने उपासना क्रम में उसे प्रमुख स्थान दिया। गायत्री मंत्र का निरंतर जप रोगियों को अच्छा करने में और आत्मा की उन्नति के लिए उपयोगी । गायत्री महामंत्र का स्थिर चित्त और शाँत हृदय से किया हुआ जप आपत्ति काल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है यह कहते हुए महात्मा गांधी ने स्वीकार किया है। कि “उपासना एवं प्रार्थना में कैसे गायत्री महामंत्र को प्रथम स्थान दिया है।” रामकृष्ण परमहंस का कथन है कि लोगों को लंबी एवं क्लिष्ट साधना की जरूरत नहीं। इस छोटी सी गायत्री की साधना करके देखें। गायत्री की उपासना से बड़ी से बड़ी सिद्धियां मिल जाती है। यह मंत्र छोटा है किंतु इसकी शक्ति भारी है।