Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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खुलकर युद्ध करो (Kavita)
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ऐसी भी क्या कायरता इतना तो नहीं डरो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुलकर युद्ध करो।
बात वेषभूषा तक रहती तो चुप रह जाते।
खान-पान से भी बच जाते कभी ना टकराते।
दुश्चरित्रता लेकिन अब तो हद तक बढ़ आई।
कर लेना बर्दाश्त उसे तो अतिशय दुखदाई।
विष पीकर मर जाना अच्छा मन ना अशुद्ध करो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुलकर युद्ध करो॥
अगर सिनेमा शृंगारिकता तक ही रह जाता।
तो यह अंतर्द्वंद्व न शायद इतना दुख पाता।
लेकिन यह तुल पड़ा नारियों को नंगा करने।
खलनायक सीधे घुस आया है अपने घर में।
अस्त्र करो धारण जन-मानस को भी क्रुद्ध करो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुल कर खुलकर युद्ध करो॥
भ्रष्टाचार दहाड़ रहा है खुलकर दरवाजे।
नाच रही पशुता घर-घर में बजा-बजा बाजे।
प्रजातंत्र को कौन सम्भालेगा आगे बढ़ कर।
आँख मूँद कर बैठ गये यदि हिंसा से डर कर।
जनमानस का करो प्रशिक्षण और प्रबुद्ध करो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुलकर युद्ध करो॥
आगे बूढ़ा भीष्म पितामह पीछे कर्ण छली।
दांये द्रोणाचार्य बीसियों बांये बाहुबली।
चक्रव्यूह है कठिन किंतु अभिमन्यु ना घबराना।
डर जाने से अच्छा उसमें घुसकर मर जाना।
वीरों और शहीदों का पथ मत अवरुद्ध करो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुलकर युद्ध करो॥
उपज पड़े रावण अहिरावण अपने ही घर में।
शूर्पणखायें नाच रहीं है, जैक्षन के स्वर में।
टपने लोकगीत बेचारे माँग रहे भिक्षा।
लोकपाल कह रहें कि यह सब ईश्वर की इच्छा।
इस कुत्सा को आग लगाओ अब गृह युद्ध करो।
पाश्चात्य संस्कृति से अब तो खुलकर युद्ध करो॥
बलराम सिंह परिहार
*समाप्त*