Magazine - Year 2000 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
चेतना के उभार से होते हैं चमत्कार
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
पूर्वाभास की घटनाएँ जीवन की पवित्रता से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। इस क्रम में जैसे-जैसे उसमें परिवर्तन-परिष्कार होता जाता है, वैसे-ही-वैसे अघटित को जानने-समझने की योग्यता व्यक्ति में आती चली जाती है। वह पूर्ण रूप से परिमार्जित होने पर मनुष्य ईश्वर के समतुल्य बन जाता है। यह सामान्य बात हुई है। अनेक बार साधारण जीवन जीने वालों की चेना में ऐसे उफान आते हैं कि उन्हें कई अवसरों पर कुछ व्यक्तियों अथवा स्थानों को देखकर ऐसा लगता है, मानो उनके बीच कोई अदृश्य स्तर का संबंध है। बाद में जब वह तादात्म्य स्थापित हो जाता है, तब पता चलता है कि आखिर ऐसा क्यों अनुभव होता था। इसे भी एक प्रकार का पूर्वाभास कहते हैं।
ऐसे ही एक पूर्वाभास का उल्लेख करते हुए मूर्द्धन्य मनीषी आर्थर डब्ल्यू. ओसबोर्न की पत्नी अपने भावी पति के अनुभव के बारे में कहती हैं कि एक बार उनने राबर्ट ब्राउनिंग पर एक शोधपत्र तैयार किया; किंतु अस्वस्थ होने के कारण उसके दूसरे के द्वारा पढ़े जाने की व्यवस्था कर दी। कक्ष में लगभग तीन सौ लोग बैठे थे और वह सबसे पीछे बैठी थी।
व्याख्यान समाप्त हो जाने के पश्चात् प्रश्नोत्तर का क्रम चला। अनेक लोगों ने अनेक प्रश्न पूछे। एक व्यक्ति मंच के बिल्कुल सामने बैठा था। उसने एक ऊटपटाँग प्रश्न किया और पत्र में व्यक्त विचार को चुनौती दी। यद्यपि वह व्यक्ति एकदम अजनबी था तथा उसकी सिर्फ पीछे से पीठ ही दिखाई पड़ रही था; किंतु ओसबोर्न की भावी पत्नी को ऐसा महसूस हो रहा था कि उन दोनों के बीच संबंध-सूत्र अवश्य है, जिसे वह समझ नहीं पा रही है। यों प्रश्न के कारण वह निराश थी; किंतु फिर भी उसे प्रसन्नता हो रही थी। इस प्रसन्नता का कारण वह स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी। बाद में उसे पता चला कि वह व्यक्ति इंग्लैण्ड से उसी दिन आया था और आस्ट्रेलिया जा रहा था। कई महीने पश्चात् उनकी शादी हो गई। यद्यपि इस विवाह के लिए वह तैयार नहीं थी; किंतु इस बीच परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि दोनों को इस पवित्र बंधन में बंधना पड़ा। शादी के उपराँत अपने विवाह पर विचार करती हुई वह कहती है कि शोधपत्र पढ़े जाने के दौरान वह विचित्र अनुभूति शायद भावी वैवाहिक संबंधों का पूर्वाभास ही था।
ऐसी ही एक अन्य घटना की चर्चा जे.बी.प्रीस्टले ने अपनी पुस्तक ‘मैन एँड टाइम’ में की है। वे लिखते हैं कि श्रीमती ‘बी’ एक बड़े विभाग की शाखा प्रभारी थी। उनके हस्ताक्षर युक्त प्रतिवेदन डॉक्टर ‘ए’ को प्राप्त होते रहते थे। यह सभी पत्र व्यक्तिगत न होकर शासकीय ही होते थे। डॉ. ‘ए’ श्रीमती ‘बी’ के विषय में कुछ नहीं जानते थे। दोनों ने एक-दूसरे को देखा तक नहीं था। श्रीमती ‘बी’ की ओर से जैसे-जैसे इन प्रतिवेदनों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-ही-वैसे डॉ. ‘ए’ की उत्तेजना भी बढ़ती गई। वे स्वयं नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर यह उत्तेजना क्यों बढ़ती चली जा रही है। यह इतना स्पष्ट था कि उनके सेक्रेटरी ने भी इस संबंध में उनसे कुछ कहा था। डॉ. ‘ए’ के जीवन में ऐसा अनोखा प्रसंग पहले पहले कभी नहीं उपस्थित हुआ। वे इससे हैरान थे।
एक वर्ष पश्चात् दोनों की भेंट हुई, साथ के तीसरे व्यक्ति ने उनमें शादी का प्रस्ताव रखा और आश्चर्य की बात कि दोनों ने इसे आसानी से स्वीकार कर लिया। उल्लेखनीय है कि साथ वाले व्यक्ति को डॉ. ‘ए’ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। प्रीस्टले लिखते हैं कि संभव है उक्त उत्तेजना, जिसके पीछे प्रत्यक्ष कोई कारण नहीं था, उनके भावी संबंधों की जानकारी दे रही थी, जिसे समझा नहीं जा सकता। बाद में स्वीकारते हुए कहते हैं कि वे स्वयं डॉ. ‘ए’ हैं और श्रीमती ‘बी’ उनकी होने वाली पत्नी उद्गार प्रकट किए हैं, “मैंने वेदों के जो उद्धरण पढ़े हैं, वे मुझे एक उच्च और पवित्र ज्योतिपुँज के सदृश जान पड़ते हैं, जो एक उत्कृष्टतम मार्ग का वर्णन करता है। वेदों के उपदेश सरल, सुबोध और सार्वभौम हैं। इनमें ईश्वरीय विषयक युक्तियुक्त व तर्कसंगत विचार दिए गए है।”
डॉ. जेम्स कजिंस नाम आयरलैंड के कवि, कलाकार और दार्शनिक ने ‘पाथ टू पीस’ नाम अपनी कृति में वैदिक आदर्श व सिद्धाँतों का सुँदर वर्णन किया है। उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति इस तरह दी है, वेद सार्वभौम होने कारण विरोध को विनष्ट करते हैं। वेद के माध्यम से ही धरती में स्वर्ग के अवतरण की परिकल्पना साकार हो सकती है। डॉ. जेम्स एवं उनकी पत्नी वैदिक आदर्श से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने अपने समूचे जीवन को इसी उद्देश्य के लिए लगाया।
प्रसिद्ध रूसी विचारक लियो टॉलस्टाय ने भी वेदों के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया है। टॉलस्टाय के इस वैदिक ज्ञान पर मुग्ध होते हुए एक अन्य विद्वान अलेक्जेन्डर शिप्रमान ने उल्लेख किया है कि टॉलस्टाय को वेदों की विषयवस्तु ने सर्वप्रथम आकर्षित किया। वे वेदों के उन भागों पर विशेष ध्यान देते थे कि जिनका संबंध आचारशास्त्र से है। एक अन्य मनीषी जे. भारकरों ने वेद को हिमालय की आत्मा कहकर इसकी महत्ता का प्रतिपादन किया है। उनके अनुसार, यदि भारत की कोई बाइबिल संकलित की जाती और संस्कृत भाषा के लिए ऐ ही श्रद्धालु और निष्ठावान अनुवादकों का वर्ग मिल पाता, जिनका ध्यान भाषा-सौंदर्य पर केंद्रित होता तथा मूल मंत्रों के साथ उनका वैसा ही प्रेम होता, तो वैदिक ज्ञान से वर्तमान युग समृद्ध बन पाता। डब्ल्यू. डी. ब्राउन नाम अंग्रेज विद्वान ने कहा है कि वैदिक धर्म केवल एक ईश्वर का प्रतिपादन करता है। यह एक पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म, है, जहाँ धर्म एवं विज्ञान दोनों ही एक-दूसरे के परिपूरक हैं। इसके धार्मिक सिद्धांतों में विज्ञान एवं दर्शन का अनोखा समन्वय है।
वेदों की यह महिमा शाश्वत है और नित्य−नवीन भी। इसके भावों को ग्रहण करके कोई भी अपने जीवन में देवत्व को साकार कर सकता है। इस महिमान्वित सत्य को समझकर ही युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने वर्तमान युग के अनुरूप वेदों का भाष्य किया। शाँतिकुँज से प्रकाशित सरल-सुबोध भाष्य को पढ़कर कोई भी वेदों की महिमा और महत्ता को अनुभव कर सकता है। यह महिमा और गरिमा अपरंपार है। इस अनुभूति को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में कुछ यूँ कह सकते हैं-
जिसकी महत्ता का न कोई पा सका है भेद ही।
संसार में प्राचीन सबसे हैं हमारे वेद ही॥