Magazine - Year 2000 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अपनों से अपनी बात-3 - संभागीय महापूर्णाहुति के बाद अब है तीन स्तरों वाला अति महत्वपूर्ण चतुर्थ चरण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
इस पत्रिका के पाठकों के पास पहुँचने तक संभागीय स्तर की राष्ट्रव्यापी 108 महापूर्णाहुतियाँ समाप्त हो चुकी होंगी। भारत से बाहर विदेश की धरती पर ऐसे विराट् चौबीस आयोजन संपन्न होने हैं, जो वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप 18 जून 2000 से 22 जनवरी 2001 तक की अवधि में लगभग चौबीस देशों में आयोजित हो चुकेंगे। राष्ट्रव्यापी 108 संभागीय पूर्णाहुतियाँ एक प्रकार से पूरे राष्ट्र की संघनात्मक मंथन प्रक्रिया के प्रथम चरण का समापन है। इन 108 स्थानों में राष्ट्र का कोई भी कोना छोड़ा नहीं गया है। जहाँ दक्षिण भारत के चैन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद में ये कार्यक्रम हुए हैं, वहीं पूर्वोत्तर के सिलिगुड़ी, कलकत्ता, वीरगंज में, पश्चिम के जम्मू, श्रीगंगानकर, जोधपुर, भुज में भी ये संपन्न हुए हैं। उत्तर में पालमपुर, शिमला, टेहरी, अलमोड़ा आदि क्षेत्रों में भी पूर्णाहुति संपन्न हुई है। राष्ट्रजागरण तीर्थयात्रा जो प्रायः चौदह रथों द्वारा 90 दिन में प्रायः पचास हजार से भी अधिक मील की यात्रा संपन्न कर पूरे राष्ट्र के चप्पे-चप्पे में गायत्री महाशक्ति का बीजारोपण कर चुकी थी, का इससे सुँदर समापन क्या हो सकता था।
अपने-अपने क्षेत्र की जिम्मेदारी उठाने के संकल्प जिन जाग्रत् प्रज्ञापुत्रों ने लिए हैं, उन्हीं को अब अगले मोरचे के लिए तैयार होना पड़ रहा है। सात आँदोलनों के माध्यम से समाज व राष्ट्र के नवनिर्माण को संकल्पित युग निर्माण योजना, उन प्रतिभाओं की बाट जोह रही है, जिन्हें इस वर्ष गाँव, ब्लॉक, जिला व संभाग स्तर पर चली मंथन प्रक्रिया के माध्यम से खोजा गया है। कभी संस्कृति की सीता को खोजने भगवान् श्रीराम ने हनुमान को भेजा था एवं वे अपने स्वामी की कसौटी पर खरे उतरे, ठीक उसी तरह इस युग के श्रीम ने अपने प्रज्ञापुत्रों व प्रज्ञापुँजों रूपी हनुमानों को उन प्रतिभावानों की तलाश हेतु गहन आध्यात्मिक पुरुषार्थ करने को प्रेरित किया, जो समाज की विभिन्न जिम्मेदारियाँ अपने कंधों पर उठा सकें। महापूर्णाहुति में जलते दीपों की ऊष्मा से बारह वर्ष से गरम हो रहे प्रत्यक्ष व परोक्ष जगत् में वे प्रचंड हिलोरे जन्म ले रही है, जो उस चक्रवात को जन्म देंगी, जिसका नाम प्रज्ञावतार है। समष्टिगत विभूतियों का, वरिष्ठ स्तर के प्राणवानों के परिष्कृत चिंतन के रूप में ही इस युग का निष्कलंक अवतार, ऋतंभरा प्रज्ञा की स्थापना के रूप में आ रहा है।
गायत्री जयंती या ज्येष्ठ पूर्णिमा तक समाप्त हुए इस तृतीय चरण के बाद अब चतुर्थ चरण गति पकड़ेगा। इसमें तीन पुरुषार्थ संपन्न होने है। 1 जुलाई से 1 अक्टूबर तक की तन माह की अवधि में पूरे भारत में स्थान-स्थान पर डेढ़ दिवसीय प्रतिभा-परिष्कार प्रधान बुद्धिजीवी वर्ग के एवं संगठनात्मक प्रज्ञामंडलों के कार्यक्रम संपन्न होने है। इन कार्यक्रमों को चुने हुए स्थानों पर किया जाएगा। जहाँ कहीं तृतीय चरण ने गति पकड़ी होगी, कहीं संभावनाएँ दिखाई पड़ेंगी, वहीं पर विभिन्न समाजसेवी संगठनों के समूहों, रोटरी कल्ब, लायन्स क्लब, भारत विकास परिषद्, फिक्की, चेंबर ऑफ कॉमर्स, आय.एम.ए. विद्यार्थी संघ, शिक्षक संघ, प्रज्ञामंडल, स्वाध्याय मंडलों के माध्यम से ये कार्यक्रम संपन्न होंगे। उनसे तृतीय चरण में हुए कार्य को स्थायित्व मिलेगा, साथ ही स्थान-स्थान की अनछुई प्रतिभा को नए सिरे से युगचेतना के प्रवाह में जुड़ने का अवसर भी प्राप्त होगा।
इसके तुरंत बाद 13 अक्टूबर शुक्रवार को शरद् पूर्णिमा के पावन दिन सायं 5 से 9 जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम नई दिल्ली में एक विशिष्ट विभूति ज्ञानयज्ञ समारोह होना है। इसमें 108 स्थानों में से प्रत्येक से चुनी हुई 100-100 विभूतियाँ एवं प्रायः पच्चीस हजार विशिष्ट जिम्मेदारी उठाने वाले कार्यकर्त्ता सम्मिलित होंगे। भारत के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री महोदय की गरिमामय उपस्थिति के साथ सभी धार्मिक व स्वैच्छिक संगठनों के प्रमुख जो रचनाधर्मी कार्य से जुड़े हैं, इसमें सम्मिलित होंगे। सभी देशों के राजदूतों को भी उसमें आमंत्रित किया जा रहा है। इसी अंक में वर्णित सात विभूतियों के प्रमुख कर्णधारों को भी इसमें आमंत्रित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण विभिन्न चैनलों से हो, यह भी प्रयास हो रहा है। लक्ष्य एक ही है एक ही मंच से सभी जाने कि उज्ज्वल भविष्य किस तरह आ रहा है।
चतुर्थ चरण का अंतिम समापनपरक समायोजन समारोह 7 से 11 नवंबर की तारीखों में ‘सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ’ के रूप में शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ हरिद्वार एवं इसके आसपास के प्रायः चौबीस मील के क्षेत्र में संपन्न होगा। 28, 29, 30 अप्रैल को शाँतिकुँज में विशिष्ट कार्यकर्त्ताओं के एक सम्मेलन में इसकी विस्तृत रूपरेखा बना ली गई है। यह आयोजन भी आमंत्रित विशिष्टों के लिए होगा, जो अपने क्षेत्र की महती जिम्मेदारी अगले दिनों सँभालने जा रहे हैं। वे कुछ विशिष्ट समयदान, श्रमदान, साधनादान मिशन के उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त करने जा रहे हैं।
एक विषमता से भरे समय की समापन वेला समीप आ रही है। संभागीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के तीन समारोहों से निश्चित ही नूतन इक्कीसवीं सदी का सतयुगी स्वरूप उभरकर आएगा।