Magazine - Year 2001 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सच्चे धर्मावलंबी (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक शिष्य को धर्मनिष्ठ होने का अभिमान हो गया है। गुरुजी ताड़ गए। धर्म का सही मर्म समझाने के लिए वे एक दिन एक सद्गृहस्थ के घर ठहरे। कृषक एक आम लाया था, उसे उसने अपनी धर्मपत्नी को दे दिया। बेचारी धर्मपत्नी ने भी उसे खाया नहीं, छोटे बच्चे को दे दिया। बच्चे ने आम गुरु-चरणों में समर्पित किया, तो गुरु ने शिष्य को बताया, ‘वत्स। धर्म का यह है सही अर्थ’।
एक ब्राह्मण पूजा-उपासना करके सिद्धियां प्राप्त करने के निमित्त गंगातट पर चला गया, घर का काम छोड़ दिया और भिक्षा से दिन काटने लगा।
उधर से एक दूरदर्शी ऋषि गुजरे। ब्राह्मण की मान्यता और क्रिया देखकर दुःखी हुए, उसे समझाने का उपाय सोचने लगे।
ऋषि नदी में मुट्ठी-मुट्ठी बालू डालने लगे। वह ब्राह्मण यह कौतुक देखता रहा और निकट आकर बोला, ‘यह क्या कर रहे हैं?’
ऋषि ने कहा, ‘नदी पार जाने के लिए पुल बना रहा हूँ।’
ब्राह्मण हँसा और बोला, ‘इस प्रकार थोड़े ही बनेगा। इसके लिए साधन, श्रम, धन और कौशल चाहिए। यह सब जुटाएँ तभी बात बनेगी।’
अब संत की बन आई। उन्होंने कहा, ‘आप भी मात्र भजन के सहारे सिद्धियां पाने के लिए पूजा तक अवलंबित न रहें, आत्मशोधन और लोकसेवा की बात भी सोचें। इससे कम में आपको मनोरथ भी पूरा होने वाला नहीं है।’
ऋषि साँकेतिक शिक्षा देकर चले गए। ब्राह्मण ने नई कार्य-पद्धति अपनाई और उपासना के साथ साधना-आराधना के तत्व भी जोड़कर सच्चे धर्मावलंबी बने।