Magazine - Year 2003 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रभु का अयाचित सहयोग kahani)
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महात्मा ईसा अपने शिष्यों सहित कहीं जा रहे थे। रात्रि में एक जगह ठहरे। देखा गया तो पास में केवल पाँच रोटियाँ थीं, इतने से सबका पेट कैसे भरेगा, यह प्रश्न सामने था। यह समस्या ईसा ने सुनी तो कहा, सारी रोटियाँ एक पात्र में टुकड़े-टुकड़े करके डाल दो। सभी लोग एक-एक टुकड़ा निकाल-निकालकर खाते जाएँ, सबको समान रूप से भोजन मिल जाएगा।
सबने श्रद्धापूर्वक गुरु आज्ञा मानी। सोचा जितना सबके पेट में समान रूप से अन्न पहुँचे, वही ठीक है।
भोजन शुरू हुआ तो सबका पेट भर गया, टुकड़े हाथ में आते गए। शिष्य बोले, यह गुरुदेव का चमत्कार है। ईसा बोले, यह तुम्हारे सद्भाव भरे सहकार का चमत्कार है। तुम स्वार्थ भरी छीना-झपटी करते तो यह संभव न होता। जहाँ सद्भाव भरा पारिवारिक सहकार होता है, वहाँ प्रभु का अयाचित सहयोग मिलता है।