Books - धर्म चेतना का जागरण और आह्वान
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Language: HINDI
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विचार बदलें, तो दुनिया बदले
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 25 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
जो किसान अपनी खेती की ओर पूरा ध्यान रखता है, बीज बोता है, खाद-पानी देता है, फसल की रक्षा करता है, वह ही फसल का लाभ प्राप्त करता है। जो किसान बीज तो बो देता है, परन्तु बीज बोने के बाद खाद-पानी का ध्यान नहीं रखता और न देख-रेख करता है, उसकी फसल जानवर खा जाते हैं और वह फसल का लाभ नहीं उठा पाता। पहले ऋषि लोग भगवान को पाने का सही रास्ता बतलाते थे। यदि आपको बद्रीनाथ जाना है, तो आपको ठण्ड सहनी पड़ेगी, ऊपर चढ़ना पड़ेगा, आप एक माह में लौटेंगे। यदि कोई कहे कि मैं दो दिन में ही बद्रीनाथ के दर्शन करके आना चाहता हूं और हम उसे हां कह दें तो समझो कोई धोखा है।
पहले संयम-नियम का पालन करें। कष्ट साध्य जीवन, परमार्थ परायण जीवन जीयें तभी अध्यात्म का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु यदि तुम्हें कोई कहे कि सिर्फ माला फेरकर ही भगवान को प्राप्त कर सकते हैं, तो इस संयम-नियम के, अच्छे जीवन के, परमार्थ परायण जीवन के झगड़े में कौन पड़ेगा? आज यही भ्रान्ति फैली है। यह सस्तेपन की दुकान दो हजार वर्ष से खुली है। ईसाइयों और मुसलमानों ने कहा—जो हमारे ईसा-मुहम्मद पर ईमान लायेगा, वह स्वर्ग को चला जायेगा, उसे जन्नत मिलेगी। यह देखकर हिन्दुओं ने भी नहले पर दहला मारकर सस्ते में भगवान मिल जाने की होड़ लगाई और सारे लोगों को इस सस्ती दुकान से घाटा ही घाटा उठाना पड़ा, जैसा कि आज आप अध्यात्मवाद का ढोंग चारों तरफ देख रहे हैं। पण्डितों ने कह दिया कि एक घण्टे में भगवान दिखा दूंगा। भावनायें शुद्ध नहीं, जीवन पवित्र नहीं, आत्मा परिष्कृत नहीं हैं और भगवान के दर्शन हो जायेंगे। यह संभव नहीं है। गंगास्नान से भगवान की कृपा मिलेगी यह सिर्फ कम्पटीशन की बात है। जैसे चक्की वालों में कम्पटीशन होता है जिसमें फोकट में पिसवाने वाला घाटे में रहता है और उसकी सब मजाक उड़ाते हैं। सस्ती चीज खरीदने वाला हमेशा नुकसान में रहता है। सस्ते दाम में भगवान की कृपा और स्वर्ग नहीं मिल सकता। आप जौहरी के पास जायेंगे। जौहरी एक हजार रुपये जेवर की कीमत मांगेगा। यदि आपको नकली जेवर लेना है, तो चालीस रुपये में भी मिल जायेगा। सस्ते दाम की चीज खरीदने वाला हमेशा घाटे में रहेगा। दर्शन करने से मोक्ष नहीं मिलता। कोई हरिद्वार जाता है, कोई प्रयाग जाता है, सब मेला-ठेला देखने चले जा रहे हैं। आपने सब तीर्थों के दर्शन कर लिये, परन्तु गुस्सा पहले जैसा ही है, मोह दूर नहीं हुआ, तो आप किसके दर्शन कर आए? खिलौना के? जिनके रास्ते खराब हैं, उनको कुछ नहीं मिलेगा। सिर्फ पैसा ही पैसा खर्च करते रहेंगे।
मुझे मेरे गुरु ने रास्ता बतलाया, मैं उस रास्ते को पकड़कर चलता रहा। मेरे गुरु ने कछुए और खरगोश की कहानी सुनायी। मैं कछुए की चाल से धीरे-धीरे चलता गया। हिम्मत नहीं छोड़ी और लक्ष्य तक पहुंच गया। खरगोश की चाल से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं रहा। मैंने सोचा जब चौरासी लाख योनियों को पार करके आये हैं, तो भगवान को पाने में इतनी जल्दी क्यों करूं? चौबीस वर्ष तक उपासना करता रहा। चौबीस वर्ष तक गाय के गोबर से निकले जौ को धोकर सुखाकर, पीसकर, जौ की रोटी और छाछ मात्र इस भोजन पर चौबीस वर्ष तक कठोर तप किया। मैं कष्ट और अभावों को भगवान की दया समझता रहा। जैसे किसी बच्चे को फोड़ा हो जाय तो मां उसे डॉक्टर के पास ले जाकर फोड़े में चीरा लगवाती है ताकि मवाद निकल जाये। बच्चा चिल्लाता रहता है, परन्तु मां भलाई के लिये ही चीरा लगवाती है ताकि आगे कष्ट न हो।
भगवान राम के पिता राजा दशरथ ने धोखे से शिकार के भ्रम में तीर मारा तो वह श्रवण कुमार को लगा। श्रवणकुमार की जान गयी। श्रवणकुमार के पिता ने राजा दशरथ को शाप दिया कि तू भी पुत्र शोक में मरेगा। ऐसा ही हुआ भी। कर्मफल बड़ा है, भगवान राम अपने पिता को इस मुसीबत से नहीं निकाल सके। ऐसे ही भगवान कृष्ण का भान्जा अभिमन्यु इकलौता था, उसको भी भगवान नहीं बचा सके। कष्ट तो मुझे भी होते हैं, मैं समझता हूं इसमें मेरा हित छिपा है।
पहले ब्राह्मण भीख नहीं मांगते थे। राजा दिलीप ने स्वयं गुरु वशिष्ठ के आश्रम में बारह वर्ष तक गाय चराई थीं। तब उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान मिला था। ब्राह्मण मजबूत होते थे। आज ब्राह्मणत्व कमजोर हो रहा है। क्षत्रिय भी शराबी, कबाबी बन गये हैं। सुख-सुविधाओं का जीवन जीने लगे हैं। आज आदमी का चरित्र समाप्त हो गया है। अमेरिका में लोग नींद की गोली खाकर सोते हैं। अमेरिका में दाम्पत्य जीवन की कोई मर्यादा नहीं है। बाप-बेटे का कोई ठिकाना नहीं है। बाहरी चमक-दमक सब पर हावी हो गयी है। अमेरिका नरक में डूबा राष्ट्र बन गया है। भारत में भी लोग अधःपतन की ओर जा रहे हैं। इसको रोकना ही पड़ेगा। इसीलिए आपको यहां बुलाया गया है। मैं आपसे तप करा रहा हूं। बुद्धि को आत्मा के कल्याण में लगायें। आप बुद्धि का दुरुपयोग कर रहे हैं। बुद्धि का उपयोग दूसरों को धोखा देने में, अनीति पूर्वक धन कमाने में कर रहे हो, तो यह सबसे बड़ी बेवकूफी है। समझदारी इसमें नहीं, समझदारी तो इसमें है कि आपकी बुद्धि आत्मकल्याण और लोककल्याण का हित साधन बने।
संयमी जीवन जीयेंगे, तो आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके कपड़े गन्दे हो जायें, तो आपको साफ करने पड़ते हैं कि नहीं। भगवान आपके कपड़े साफ करने नहीं आयेगा। छोटी-छोटी बातें किससे कहने जायें, भगवान से कहने जायें कि भगवान मेरी नौकरी में तरक्की करा दीजिये, नहीं! आपको पुरुषार्थ करना होगा। आपने अपना नाम कमाने के लिए धर्मशाला बनवा दी, अस्पताल बनवा दिया, परन्तु साधनों से कोई सुखी नहीं हुआ। मनुष्य की भावनाओं को बदला जाये, तो आनन्द आ जाये। आप समझदार व्यक्ति हैं, पागल नहीं हैं। आपको मैं कैसे कहूं? आप यहां आये हैं, आपका दुनियां की सेवा करने का मन है। आप अपने विचार बदलकर जाये।
ईमानदार व्यक्ति बहुत पाता है। वह घाटे में नहीं रहता। मथुरा में राम प्रताप नाम के पेशकार थे। जब वह दफ्तर आते थे, तो उनको सम्मान देने के लिये कलक्टर भी कुर्सी से खड़े हो जाते थे। यह उनकी ईमानदारी के प्रति सम्मान था। वे चाहते, तो बेईमानी करते और लाखों रुपये कमा लेते। उनकी मृत्यु होने पर उनके दो बच्चों के पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई का प्रश्न आया तो एक लड़के को कलेक्टर ने पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी ली और एक लड़के की एस.पी. ने। दोनों लड़के बाद में आइ.ए.एस. ऑफिसर बने। ईमानदार व्यक्ति घाटे में नहीं रहता।
बाटा नाम का एक आदमी जूता बनाने का काम करता था। वह बड़ी ईमानदारी के साथ काम करता था। उसकी कार्यकुशलता और ईमानदारी को देखकर एक अंग्रेज ऑफीसर ने खुश होकर उसे कुछ राशि इनाम दी, जिससे उसने अपने काम को और बढ़ाया। आज उसकी शुरू की हुई बाटा कम्पनी कितनी प्रसिद्ध है।
अब्दुल करीम एक छोटा लड़का था। बम्बई में वह गुब्बारे बेचता था। वहां एक सेठ के पेट में दर्द होने लगा। वह वैद्य के पास गया। वैद्य ने एक व्यक्ति से नींबू का अचार मंगवाया। वह व्यक्ति भारत का बना हुआ अचार ले आया। तो वैद्य जी ने उसे वापस कर दिया और कहा—इंग्लैण्ड का बना हुआ अचार लाओ। अब्दुल करीम यह सब सुन रहा था। उसने सोचा भारत का ही नींबू और उसका अचार विदेश से बनकर आता है। क्यों नहीं मैं स्वयं बनाऊं? उसने अचार बनाकर वैद्यजी को दिखाया। वह अचार पसंद किया गया। आज भी अब्दुल करीम के अचार प्रसिद्ध हैं। हम ईमानदारों की बात बता रहे थे।
आज लोग यहां से जाकर लोगों के विचारों को बदलना, कहना कि अपने विचार बदलो। यह मनुष्य जीवन किसी विशेष उद्देश्य के लिए मिला है। मौत के दिन आ रहे हैं, इन्हें याद रखो। जो लोगों को अचम्भे में डालता है, वह योगी नहीं होता। महापुरुष चमत्कार नहीं दिखाते, वे काम ही ऐसे करते हैं, जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं कर पाते। नया जमाना आ रहा है। दुनिया के मजहब, संस्कृति सब एक होने जा रही हैं। अगले दिन पूरी दुनिया एक मजहब, एक राष्ट्र बनकर रहेगी। हर देश एक जिला होगा। सभ्यता संस्कृति एक होगी। सब भेदभाव समाप्त होंगे।
जो अपनी अक्ल मात्र पेट पालने में खर्च करता है, उन्हें में भक्त नहीं कहता। भक्त मालदार नहीं होते। तुलसीदास झोंपड़ी में ही रहे, भगवान से उनने कभी पैसा नहीं मांगा। सूरदास ने कभी आंखों नहीं मांगी। भगवान के यहां नंगा होकर जाना पड़ता है। जिनके मन में वासना-तृष्णा है, वे भगवान को क्या जानें? आज मानवता जल रही है, आप उसे बुझाने के लिये जल ले जाइये। ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है, जो इसे जलने से बचायें। आज संसार को अक्ल की, ज्ञान की आवश्यकता है। बेअकल आदमी मारा-मारा फिरता है। मैं हर आदमी की खुशामद करता हूं। मेरी आवाज सुनो। तुम भी तो मेरे दर्द को बांटो। मैं तुमको अपने अन्तःकरण की आग देना चाहता हूं। मैं अपना दर्द देने के लिये तुमको बुलाता हूं। जिसे पाकर आप भगवान हो सकते हैं। भगवान बुद्ध ने हजारों लड़के-लड़कियों को भिक्षु बना दिया था। अपनी समस्याओं को आप पहाड़ जैसी मत बनाओ। अपनी समस्या आप स्वयं हल करो और इन्सानों के काम आओ। मैंने तुमसे कहा है—झोला पुस्तकालय चलाना और मेरे विचारों को घर-घर पहुंचाना। क्या आपने झोला पुस्तकालय चलाया? आप तो बेटा ही मांगते रहे। राजा महेन्द्रप्रताप का कोई लड़का नहीं था। बेटा कमाई खाने के लिये पैदा होता है। राजा महेन्द्रप्रताप ने निन्यानवे गांव की आमदनी से ‘‘प्रेम महाविद्यालय’’ खोल दिया और उन गांवों की आमदनी से महाविद्यालय चलाते रहे। एक गांव की आमदनी अपने लिये खर्च करते थे। उस विद्यालय से जितने पढ़े अधिकांश आई.ए.एस. अधिकारी और मंत्री बने।
आप मेरी बात सुनकर अपने विचारों को बदलें और घर जाकर नातेदार, रिश्तेदार, गांव वाले, पड़ोसी सभी के विचारों को बदलने में लग जायें। मैं आपका अहसानमंद रहूंगा और आपका भी यहां आना सार्थक होगा। फिर से सुख-शांति की परिस्थितियां बनेंगी। इतिहास आपका ऋणी रहेगा