Books - धर्म चेतना का जागरण और आह्वान
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Language: HINDI
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निवेदिता की तलाश और आह्वान
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(गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 30 अक्टूबर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
आज का दिन बड़े महत्व का दिन है। आज जिस आत्मा का जन्मदिन मना रहे हैं, वह आत्मा बड़ी जबरदस्त आत्मा थी। आज के दिन वह आत्मा इंग्लैण्ड में एक महिला के रूप में पैदा हुई थी। हम उस महिला की बात कर रहे हैं, जिसकी आंखें बहुत दूर की घटना देखने वाली थीं। जिसे दूर की बातें दीखती हैं, वही महापुरुष बनता है। जिसको केवल आज की बात दीखती है, वह मनुष्य है। जो आज की बात सोचते हैं, खाने-पीने, मकान बनाने की, वे यह नहीं जानते कि दो वर्ष बाद हमको मरना भी पड़ेगा। यदि अपनी मृत्यु के बारे में विचार करते तो हम राजा परीक्षित की तरह जीवन जीते। अगर हम मरने की बात सोचते, तो हमारे क्रियाकलाप अलग होते। सामान्य व्यक्ति और तत्वदर्शी में इतना ही अन्तर है। तत्वदर्शी दूर की बात सोचते हैं। दूरबीन लगाने से कुतुबमीनार दीखती है और जब दूरबीन हटा देते हैं, तो कुतुबमीनार नहीं दीखती। एक महिला थी, जिसको एक हजार वर्ष तक की बातें दीखती थीं, इसलिए उसकी जयन्ती मनाते हैं। इन्सानियत को जिन्दा होना होगा, आगे एक मजहब होगा। सारे विश्व की एक भाषा होगी। आज तो हर सौ मील पर भाषा अलग होती है। आज देश में समुदायों की अनेक दीवारें हैं, वह एक होंगी। इन्सान-इन्सान को प्यार करेगा।
उस महिला ने यह देखा कि नया जमाना आ रहा है, जिसका उदय पूरब से हो रहा है। हिन्दुस्तान पूरब में है, जहां से सूर्य निकलता है, वह हिन्दुस्तान विज्ञान में भी बाजी मार गया है। संसार में जितने भी वैज्ञानिक हुए हैं, उनमें से अधिकांश भारत के ही हुए, जिन्होंने विदेश जाकर शोध किए। प्राचीनकाल में भी यहां का विज्ञान बढ़ा-चढ़ा था।
हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे। रावण वैज्ञानिक था। रावण ने सोने की लंका बना रखी थी। आध्यात्मिकता का तो कहना ही क्या? सारे विश्व में यहां का अध्यात्म शान्ति देता है। आज हमारा लड़का विज्ञान सीखने विलायत जाता है। किसी जमाने में हमारे यहां विज्ञान था। उस महिला ने देखा यह ज्ञान हिन्दुस्तान से उदय हुआ। वह महिला अध्यापिका थी। स्वामी विवेकानन्द इंग्लैण्ड गये। उनकी जबान में बड़ी मिठास थी। उनका भाषण सुनने लोग दूर-दूर से आते थे। आजकल बन्दर बाजीगर जैसे भाषण का तमाशा हो गया है। कोई भजन वाले आ गये, कोई कीर्तन वाले आ गये, तो कोई किस्सा कहने वाले आ गये। इनका क्या असर पड़ेगा? असर पड़ता है करुणा, दर्द भरी वाणी से जिसके अन्दर विश्व मानवता की पीड़ा हो। मीराबाई वीणा पर गाती थी, उनको कोई संगीत नहीं आता था, परन्तु भगवान भी उनके गीत सुनने आते थे। इसका कारण था उनके गीतों में दर्द, करुणा और पीड़ा होती थी। स्वामी विवेकानन्द पीड़ाओं को, दुःखों को सुनाने के लिये विश्व में भागे-भागे फिरते थे। स्वामी जी ने कहा—मुझे बीस आदमी मिल जाते, जो मेरी पीड़ा को विश्व में फैलाते। आज तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के अस्पतालों में पन्द्रह हजार आदमी काम कर रहे हैं। परन्तु स्वामी जी को उस समय जिन आदमियों की तलाश थी वे मिल जाते, तो दुनिया कुछ और ही होती। दर्द वाले व्यक्ति का कलेजा कुछ और ही होता है। नौकरी वालों का कलेजा कुछ और होता है। स्वामीजी ने आवाज लगाई कि मुझे बीस आदमी चाहिये, तो उस सभा में से एक महिला उठी, जिसने कहा कि उन्नीस आदमी दूसरी जगह तलाश कीजिये। एक आदमी के स्थान पर मेरा नाम लिख लीजिये।
स्वामी विवेकानन्दजी ने वह स्कूल नहीं देखा था, जहां वह महिला अध्यापिका थी। स्वामी विवेकानन्द आंसू बहाते रहे। उनने कहा—उन्नीस आदमी मिलें या न मिलें, एक आदमी भी बहुत है, जिसके अन्दर पीड़ा हो समाज के लिये। हनुमानजी, गांधीजी, दयानन्द जी अकेले थे, इन्होंने कितना काम किया। आदमी का सोचने का दिल अलग होता है। जिसके अन्दर संसार का दर्द है, वह हजारों व्यक्तियों के दिल में समा सकता है। स्वामी जी ने कहा—नारी का दिल बड़ा कोमल होता है, यह जमाना बदलेगी। जिस नारी के बच्चे होते हैं, उनका स्वास्थ्य गिर जाता है, वे कमजोर हो जाती हैं। जो कमजोर होते हैं, उन पर आक्रमण होता है, उन पर लोग हावी होते हैं। नारी का दिल बड़ा होता है। नारी उदार होती है। हम नारी के वर्षों से आभारी हैं। जब तक नारी जागती रही, समाज सुखी-सम्पन्न रहा। जब से नारी का तिरस्कार होने लगा, तब से समस्त संसार समस्याओं, दुःखों में भटकने लगा है।
अब फिर नेतृत्व महिला के हाथ में आएगा। महिला के अन्दर सहज ही आध्यात्मिकता होती है। एक नया संसार बनने वाला है। जिसका काम भारत से ही प्रारंभ होगा। वह प्रकाश सारे विश्व में फैलेगा। आगे का समय ऐसा आयेगा, जिसमें जो गन्दगी आजकल दिखाई दे रही है, वह साफ हो जायेगी और सब सत्यवादी रहेंगे। सभ्यता का युग आने वाला है। भारतीय सभ्यता का विकास तेजी से होगा।
जो भारत ऋषियों का था, उस जमाने की बात कहता हूं। उसकी बात कहता हूं, जो हमारे वर्षों पहले के लोग थे। वह महिला भी ऐसा ही सोचती थी कि सभ्यता भारत से ही आयेगी। आज तो सारी सभ्यता बहुत ही खराब हो गयी है। आज शादी में लोग कितना खर्च करते हैं, यदि इतना खर्च शिक्षा के नाम पर, लोकमंगल के नाम पर होता, तो आज कोई अशिक्षित नहीं रहता। सारा पैसा शादी में फूंकते हैं। अब पुराने हिन्दुस्तान का फिर उदय होगा। उस महिला ने कहा—‘‘मैं हिन्दुस्तान जाकर लोगों की सेवा करूंगी।’’ स्वामी विवेकानन्द ने कहा—हिन्दुस्तान में आपको बहुत कष्ट सहने पड़ेंगे। वहां तो धर्म के नाम पर पैसा खाने वाले लोग हैं। तुम हिन्दुस्तान आओगी, तो लोग तुम्हारी और मेरी तरफ उंगलियां उठायेंगे। वहां के लोग ढोंगियों की पूजा करते हैं, उनके दिल में मेरे लिए गुंजाइश कहां है? जो जितना हरामखोर है, उसकी उतनी ही अधिक पूजा होती है। उस महिला ने कहा—जहां के लोग भूखे और नंगे हैं, वहीं पर रोटी बांटनी चाहिए। यहां की अपेक्षा भारतवर्ष में सेवा करने का मजा है। स्वामी जी ने कहा—हिन्दुस्तान में तो हैजा, प्लेग जैसी महामारी फैली है। वहां कोई किसी की सेवा नहीं करता। वहां हिन्दू समाज में पण्डे-पुजारी और सामाजिक कुरीतियां समाज को खा रही हैं। वहां इनसे मुकाबला करना पड़ेगा। वहां जाति-पांति, भेद-भाव है और वहां के लोग, परावलम्बी हैं। वह महिला यहां की स्थिति सुनकर हिन्दुस्तान आ गई। उसने अपना नाम बदल कर निवेदिता रख लिया। यहां आकर उसने अपने कपड़े रंगवा लिए। भारतीय संस्कृति के लिए आजीवन काम करती रही। सारे देश में घूमती रही और सेवाधर्म अपनाकर इस राष्ट्र की ऐसी सेवा की, इस संस्कृति की ऐसी सेवा की, ऐसे महान कार्य किये जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह समाप्त नहीं हुई उसकी परम्परा आज भी मौजूद है। आज यहां अहिंसा का काम करने पर भी महात्मा गांधी जी को समझते कहां हैं? महात्मा गांधी को आज सारा विश्व जानता है। विदेशों में जाकर देखिए, भारतवासियों से ज्यादा विदेशी लोग गांधी जी को जानते हैं, सम्मान देते हैं, और अनुकरण करते हैं। यहां तो छोटी-सी घण्टी बजाओ, परिक्रमा लगाओ, आरती उतारो और प्रसाद खाओ यही रह गया है। गांधी जी बड़े जबरदस्त थे। गांधी की मृत्यु को बीस वर्ष हो गये। आप देख रहे हैं कि इतने समय में संसार कितना बदल गया है। आज चन्द्रमा पर धावा बोल दिया गया है और ग्रहों पर धावा बोला जा रहा है। आज की स्थिति को दो सौ वर्ष पहले का आदमी आकर देखे, तो इसे भूतों का देश बतलाएगा। टेलीफोन, रेलगाड़ी, वायरलैस ये सब उस समय कहां थे? आज की दुनिया अलग हो गई है। इस थोड़े से समय में बहुत से महान व्यक्ति आये। उनमें से एक देवी निवेदिता भी आईं। वे कह गईं कि अब दुनिया का नक्शा बदल जाएगा। चौथा युद्ध ईंट-पत्थर से लड़ा जाएगा। यह नया संदेश देने वाली महिला अपनी नौकरी छोड़कर, अपना देश छोड़कर आई और यहां संन्यासिनी हो गई। लोग उसे पागल कहकर उसकी हंसी उड़ाते रहे। जो दूर की आंखों से दूर की बातें देखने वाले होते हैं, लोग उन्हें पागल ही कहते हैं। अध्यात्मवादी लोगों की दृष्टि में पागल ही दिखाई पड़ता है। आज निवेदिता शताब्दी मनाई जा रही है। आज उसकी डाक टिकट बंटेगी। हम भी उनकी जयन्ती मना रहे हैं क्योंकि हमारे उनके उद्देश्य मिलते हैं। ईसा मसीह के केवल बारह शिष्य हुए, उनमें से ही कुछ ने तो उन्हें फांसी पर लटकवा दिया। परन्तु ईसा मसीह क्या समाप्त हुए? नहीं। आज संसार में ईसा मसीह को मानने वाले कितने लोग हैं? महापुरुष कभी मरते नहीं। हमारे पास भी बहुत बड़ी मशाल है। हम इसी परम्परा पर अकेले खड़े रहेंगे। अगले समय में इस सारे कार्य की प्रशंसा की जाएगी। हम लोगों को सही रास्ता बतला रहे हैं। यह ऋषियों की, रामकृष्ण परमहंस की, विवेकानन्द की परम्परा है। आज निवेदिता का प्रकाश ग्रहण कर सबको यह सोचना चाहिए कि आज किसी के सामने खाने की कोई समस्या नहीं है। हाथ है तो घास खोदकर भी पेट भर लेंगे। सारा समाज पेट भरने में लगा हुआ है। आज निवेदिता से प्रेरणा लें। रोटी, कपड़ा और मकान का ध्यान तो उन्हें भी रहा था, परन्तु उनका विशेष ध्यान विश्व कल्याण के लिए रहा। नवयुग बीस व्यक्तियों से अभी भी आ सकता है। उन्नीस में से एक-आध आप में से पैदा हो जाएं और राष्ट्र के लिए काम करने का संकल्प लें तो। पेट के साथ-साथ हमें देश का भी काम करना है। उन्नीस आदमी की मांग अभी भी ज्यों की त्यों पड़ी है। रोगियों का समाज भरा पड़ा है। मीरा, विवेकानन्द जैसे, जिनके हृदय में भारतीय संस्कृति के लिए पीड़ा है, उन्हें चाहिए के वे अपना समय, श्रम समाज व राष्ट्र के उत्थान में लगावें। पतन और पीड़ा निवारण के लिए निवेदिता की तरह हम सब भी अपना जीवन लगा दें, तो हमारा आज यह निवेदिता शताब्दी मनाना सार्थक होगा।
देवियो और भाइयो,
आज का दिन बड़े महत्व का दिन है। आज जिस आत्मा का जन्मदिन मना रहे हैं, वह आत्मा बड़ी जबरदस्त आत्मा थी। आज के दिन वह आत्मा इंग्लैण्ड में एक महिला के रूप में पैदा हुई थी। हम उस महिला की बात कर रहे हैं, जिसकी आंखें बहुत दूर की घटना देखने वाली थीं। जिसे दूर की बातें दीखती हैं, वही महापुरुष बनता है। जिसको केवल आज की बात दीखती है, वह मनुष्य है। जो आज की बात सोचते हैं, खाने-पीने, मकान बनाने की, वे यह नहीं जानते कि दो वर्ष बाद हमको मरना भी पड़ेगा। यदि अपनी मृत्यु के बारे में विचार करते तो हम राजा परीक्षित की तरह जीवन जीते। अगर हम मरने की बात सोचते, तो हमारे क्रियाकलाप अलग होते। सामान्य व्यक्ति और तत्वदर्शी में इतना ही अन्तर है। तत्वदर्शी दूर की बात सोचते हैं। दूरबीन लगाने से कुतुबमीनार दीखती है और जब दूरबीन हटा देते हैं, तो कुतुबमीनार नहीं दीखती। एक महिला थी, जिसको एक हजार वर्ष तक की बातें दीखती थीं, इसलिए उसकी जयन्ती मनाते हैं। इन्सानियत को जिन्दा होना होगा, आगे एक मजहब होगा। सारे विश्व की एक भाषा होगी। आज तो हर सौ मील पर भाषा अलग होती है। आज देश में समुदायों की अनेक दीवारें हैं, वह एक होंगी। इन्सान-इन्सान को प्यार करेगा।
उस महिला ने यह देखा कि नया जमाना आ रहा है, जिसका उदय पूरब से हो रहा है। हिन्दुस्तान पूरब में है, जहां से सूर्य निकलता है, वह हिन्दुस्तान विज्ञान में भी बाजी मार गया है। संसार में जितने भी वैज्ञानिक हुए हैं, उनमें से अधिकांश भारत के ही हुए, जिन्होंने विदेश जाकर शोध किए। प्राचीनकाल में भी यहां का विज्ञान बढ़ा-चढ़ा था।
हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे। रावण वैज्ञानिक था। रावण ने सोने की लंका बना रखी थी। आध्यात्मिकता का तो कहना ही क्या? सारे विश्व में यहां का अध्यात्म शान्ति देता है। आज हमारा लड़का विज्ञान सीखने विलायत जाता है। किसी जमाने में हमारे यहां विज्ञान था। उस महिला ने देखा यह ज्ञान हिन्दुस्तान से उदय हुआ। वह महिला अध्यापिका थी। स्वामी विवेकानन्द इंग्लैण्ड गये। उनकी जबान में बड़ी मिठास थी। उनका भाषण सुनने लोग दूर-दूर से आते थे। आजकल बन्दर बाजीगर जैसे भाषण का तमाशा हो गया है। कोई भजन वाले आ गये, कोई कीर्तन वाले आ गये, तो कोई किस्सा कहने वाले आ गये। इनका क्या असर पड़ेगा? असर पड़ता है करुणा, दर्द भरी वाणी से जिसके अन्दर विश्व मानवता की पीड़ा हो। मीराबाई वीणा पर गाती थी, उनको कोई संगीत नहीं आता था, परन्तु भगवान भी उनके गीत सुनने आते थे। इसका कारण था उनके गीतों में दर्द, करुणा और पीड़ा होती थी। स्वामी विवेकानन्द पीड़ाओं को, दुःखों को सुनाने के लिये विश्व में भागे-भागे फिरते थे। स्वामी जी ने कहा—मुझे बीस आदमी मिल जाते, जो मेरी पीड़ा को विश्व में फैलाते। आज तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के अस्पतालों में पन्द्रह हजार आदमी काम कर रहे हैं। परन्तु स्वामी जी को उस समय जिन आदमियों की तलाश थी वे मिल जाते, तो दुनिया कुछ और ही होती। दर्द वाले व्यक्ति का कलेजा कुछ और ही होता है। नौकरी वालों का कलेजा कुछ और होता है। स्वामीजी ने आवाज लगाई कि मुझे बीस आदमी चाहिये, तो उस सभा में से एक महिला उठी, जिसने कहा कि उन्नीस आदमी दूसरी जगह तलाश कीजिये। एक आदमी के स्थान पर मेरा नाम लिख लीजिये।
स्वामी विवेकानन्दजी ने वह स्कूल नहीं देखा था, जहां वह महिला अध्यापिका थी। स्वामी विवेकानन्द आंसू बहाते रहे। उनने कहा—उन्नीस आदमी मिलें या न मिलें, एक आदमी भी बहुत है, जिसके अन्दर पीड़ा हो समाज के लिये। हनुमानजी, गांधीजी, दयानन्द जी अकेले थे, इन्होंने कितना काम किया। आदमी का सोचने का दिल अलग होता है। जिसके अन्दर संसार का दर्द है, वह हजारों व्यक्तियों के दिल में समा सकता है। स्वामी जी ने कहा—नारी का दिल बड़ा कोमल होता है, यह जमाना बदलेगी। जिस नारी के बच्चे होते हैं, उनका स्वास्थ्य गिर जाता है, वे कमजोर हो जाती हैं। जो कमजोर होते हैं, उन पर आक्रमण होता है, उन पर लोग हावी होते हैं। नारी का दिल बड़ा होता है। नारी उदार होती है। हम नारी के वर्षों से आभारी हैं। जब तक नारी जागती रही, समाज सुखी-सम्पन्न रहा। जब से नारी का तिरस्कार होने लगा, तब से समस्त संसार समस्याओं, दुःखों में भटकने लगा है।
अब फिर नेतृत्व महिला के हाथ में आएगा। महिला के अन्दर सहज ही आध्यात्मिकता होती है। एक नया संसार बनने वाला है। जिसका काम भारत से ही प्रारंभ होगा। वह प्रकाश सारे विश्व में फैलेगा। आगे का समय ऐसा आयेगा, जिसमें जो गन्दगी आजकल दिखाई दे रही है, वह साफ हो जायेगी और सब सत्यवादी रहेंगे। सभ्यता का युग आने वाला है। भारतीय सभ्यता का विकास तेजी से होगा।
जो भारत ऋषियों का था, उस जमाने की बात कहता हूं। उसकी बात कहता हूं, जो हमारे वर्षों पहले के लोग थे। वह महिला भी ऐसा ही सोचती थी कि सभ्यता भारत से ही आयेगी। आज तो सारी सभ्यता बहुत ही खराब हो गयी है। आज शादी में लोग कितना खर्च करते हैं, यदि इतना खर्च शिक्षा के नाम पर, लोकमंगल के नाम पर होता, तो आज कोई अशिक्षित नहीं रहता। सारा पैसा शादी में फूंकते हैं। अब पुराने हिन्दुस्तान का फिर उदय होगा। उस महिला ने कहा—‘‘मैं हिन्दुस्तान जाकर लोगों की सेवा करूंगी।’’ स्वामी विवेकानन्द ने कहा—हिन्दुस्तान में आपको बहुत कष्ट सहने पड़ेंगे। वहां तो धर्म के नाम पर पैसा खाने वाले लोग हैं। तुम हिन्दुस्तान आओगी, तो लोग तुम्हारी और मेरी तरफ उंगलियां उठायेंगे। वहां के लोग ढोंगियों की पूजा करते हैं, उनके दिल में मेरे लिए गुंजाइश कहां है? जो जितना हरामखोर है, उसकी उतनी ही अधिक पूजा होती है। उस महिला ने कहा—जहां के लोग भूखे और नंगे हैं, वहीं पर रोटी बांटनी चाहिए। यहां की अपेक्षा भारतवर्ष में सेवा करने का मजा है। स्वामी जी ने कहा—हिन्दुस्तान में तो हैजा, प्लेग जैसी महामारी फैली है। वहां कोई किसी की सेवा नहीं करता। वहां हिन्दू समाज में पण्डे-पुजारी और सामाजिक कुरीतियां समाज को खा रही हैं। वहां इनसे मुकाबला करना पड़ेगा। वहां जाति-पांति, भेद-भाव है और वहां के लोग, परावलम्बी हैं। वह महिला यहां की स्थिति सुनकर हिन्दुस्तान आ गई। उसने अपना नाम बदल कर निवेदिता रख लिया। यहां आकर उसने अपने कपड़े रंगवा लिए। भारतीय संस्कृति के लिए आजीवन काम करती रही। सारे देश में घूमती रही और सेवाधर्म अपनाकर इस राष्ट्र की ऐसी सेवा की, इस संस्कृति की ऐसी सेवा की, ऐसे महान कार्य किये जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह समाप्त नहीं हुई उसकी परम्परा आज भी मौजूद है। आज यहां अहिंसा का काम करने पर भी महात्मा गांधी जी को समझते कहां हैं? महात्मा गांधी को आज सारा विश्व जानता है। विदेशों में जाकर देखिए, भारतवासियों से ज्यादा विदेशी लोग गांधी जी को जानते हैं, सम्मान देते हैं, और अनुकरण करते हैं। यहां तो छोटी-सी घण्टी बजाओ, परिक्रमा लगाओ, आरती उतारो और प्रसाद खाओ यही रह गया है। गांधी जी बड़े जबरदस्त थे। गांधी की मृत्यु को बीस वर्ष हो गये। आप देख रहे हैं कि इतने समय में संसार कितना बदल गया है। आज चन्द्रमा पर धावा बोल दिया गया है और ग्रहों पर धावा बोला जा रहा है। आज की स्थिति को दो सौ वर्ष पहले का आदमी आकर देखे, तो इसे भूतों का देश बतलाएगा। टेलीफोन, रेलगाड़ी, वायरलैस ये सब उस समय कहां थे? आज की दुनिया अलग हो गई है। इस थोड़े से समय में बहुत से महान व्यक्ति आये। उनमें से एक देवी निवेदिता भी आईं। वे कह गईं कि अब दुनिया का नक्शा बदल जाएगा। चौथा युद्ध ईंट-पत्थर से लड़ा जाएगा। यह नया संदेश देने वाली महिला अपनी नौकरी छोड़कर, अपना देश छोड़कर आई और यहां संन्यासिनी हो गई। लोग उसे पागल कहकर उसकी हंसी उड़ाते रहे। जो दूर की आंखों से दूर की बातें देखने वाले होते हैं, लोग उन्हें पागल ही कहते हैं। अध्यात्मवादी लोगों की दृष्टि में पागल ही दिखाई पड़ता है। आज निवेदिता शताब्दी मनाई जा रही है। आज उसकी डाक टिकट बंटेगी। हम भी उनकी जयन्ती मना रहे हैं क्योंकि हमारे उनके उद्देश्य मिलते हैं। ईसा मसीह के केवल बारह शिष्य हुए, उनमें से ही कुछ ने तो उन्हें फांसी पर लटकवा दिया। परन्तु ईसा मसीह क्या समाप्त हुए? नहीं। आज संसार में ईसा मसीह को मानने वाले कितने लोग हैं? महापुरुष कभी मरते नहीं। हमारे पास भी बहुत बड़ी मशाल है। हम इसी परम्परा पर अकेले खड़े रहेंगे। अगले समय में इस सारे कार्य की प्रशंसा की जाएगी। हम लोगों को सही रास्ता बतला रहे हैं। यह ऋषियों की, रामकृष्ण परमहंस की, विवेकानन्द की परम्परा है। आज निवेदिता का प्रकाश ग्रहण कर सबको यह सोचना चाहिए कि आज किसी के सामने खाने की कोई समस्या नहीं है। हाथ है तो घास खोदकर भी पेट भर लेंगे। सारा समाज पेट भरने में लगा हुआ है। आज निवेदिता से प्रेरणा लें। रोटी, कपड़ा और मकान का ध्यान तो उन्हें भी रहा था, परन्तु उनका विशेष ध्यान विश्व कल्याण के लिए रहा। नवयुग बीस व्यक्तियों से अभी भी आ सकता है। उन्नीस में से एक-आध आप में से पैदा हो जाएं और राष्ट्र के लिए काम करने का संकल्प लें तो। पेट के साथ-साथ हमें देश का भी काम करना है। उन्नीस आदमी की मांग अभी भी ज्यों की त्यों पड़ी है। रोगियों का समाज भरा पड़ा है। मीरा, विवेकानन्द जैसे, जिनके हृदय में भारतीय संस्कृति के लिए पीड़ा है, उन्हें चाहिए के वे अपना समय, श्रम समाज व राष्ट्र के उत्थान में लगावें। पतन और पीड़ा निवारण के लिए निवेदिता की तरह हम सब भी अपना जीवन लगा दें, तो हमारा आज यह निवेदिता शताब्दी मनाना सार्थक होगा।