Books - धर्म चेतना का जागरण और आह्वान
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Language: HINDI
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आत्मा की भूख यों मिटेगी
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गायत्री तपोभूमि, मथुरा में 11 सितम्बर 1968 को प्रातः दिया गया प्रवचन)
देवियो और भाइयो,
मनुष्य की दो जिम्मेदारियां हैं—एक सांसारिक दूसरी आध्यात्मिक। पेट की भूख होती है, इस भूख को दूर करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। एक भूख होती है—विलासिता की और अय्याशी की। खाली दिमाग का आदमी इसी की बात सोचा करता है, कामनाओं की पूर्ति में लगा रहता है। शादी करना, बच्चा पैदा करना, उन्हें पढ़ाना-लिखाना, उनके पालन-पोषण में लगे रहना, यह लौकिक जीवन है। यह तो शरीर सम्बन्धी बातें हैं। सांसारिक जिम्मेदारियां हैं। आत्मा की भी एक भूख होती है। हमारे अन्दर से एक बात हमेशा उठती रहती है कि हमको भगवान से सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए। जिस प्रकार छोटा बच्चा दूध पीकर बलवान बनता है। यदि दूध न मिले, तो मर जाता है। उसी प्रकार हमें भगवान से सम्बन्ध बनाये रखना आवश्यक है। आप प्रधानमंत्री के पास मिलने गये, उन्होंने आपको बिठाया, चाय पिलायी, बातचीत की परन्तु आपको नौकरी नहीं दिलायी, आप नाराज हो गये। लेकिन इसमें नाराज होने की क्या बात है? जितना आपके लिए किया वह कुछ कम है क्या? इतना अहसान भी क्या कम है? भगवान हमें पास बिठाल लेता है, हम भगवान से मिल लेते हैं, यह क्या कम है? ऐसे भगवान से सम्बन्ध रखने से आत्मा की भूख पूरी होगी।
आजकल लोग तीर्थयात्रा से, गंगास्नान से पाप नष्ट करने की बात सोचते हैं, यह गलत है। पापों का प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा। भगवान राम के पिता के तीर से श्रवणकुमार का देहान्त हो गया था। श्रवणकुमार के पिता ने शाप दिया था कि तू भी पुत्र शोक में मरेगा। भगवान रामचन्द्र अपने पिता को भी पाप के दण्ड से नहीं बचा सके। जितना पाप आपने किया है, उतना पुण्य भी करना पड़ेगा। प्रायश्चित का अर्थ है—जितना लोगों को तंग किया है, उतना ही उन्हें सुख देना। तभी हिसाब-किताब पूरा होगा। आप तो छोटे-से कर्मकाण्डों के द्वारा पापों को हटाना चाहते हैं। पोस्टकार्ड दस पैसे में मिलता है, लिफाफा बीस पैसे में मिलता है, आपको भगवान का वरदान थोड़े से भजन से कैसे मिल जायेगा? सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से आपके पाप दूर हो गये होते, तो आपके कष्ट दूर क्यों नहीं हुए? भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना होगा। विदेशों में लोगों की उम्र एक सौ पच्चीस वर्ष होती है और वह इसलिए कि वे आहार-विहार में संयम का पालन करते हैं। मलाई को सब पसन्द करते हैं क्योंकि मलाई अच्छी होती है। जिसका व्यक्तित्व निखरता है, उसे सब पसन्द करते हैं।
तुलसीदास कामान्ध थे। उनने मुर्दे को लकड़ी और सांप को रस्सी समझकर पकड़ लिया था। उनने जब अपनी दिशाधारा बदली, तो वे संत शिरोमणि हो गये। अपने व्यक्तित्व को विकसित करना ही अध्यात्म है। व्यक्तित्व का भौतिक आधार नहीं होता। रावण, दुर्योधन, हिरण्यकश्यप ये भौतिकवादी थे। वे कामयाब नहीं हुए। कबीर जुलाहा थे लेकिन अध्यात्मवादी थे। आज सारा समाज गलत तरीके से भगवान को पाने में लगा है। हजारों वर्षों से लोग बताते चले आ रहे हैं कि थोड़ा भजन कर लो, बेड़ा पार हो जायेगा। जब लोगों की इच्छा इस तरह पूरी नहीं होती, तो लोग नास्तिक होते चले जाते हैं। आपके घर जब कोई रिश्तेदार आता है, तो आप सब काम भूलकर उनकी सेवा में लग जाते हैं फिर आपका भजन में मन क्यों नहीं लगता?
हमारा भगवान हमारे पास बैठता है। क्या मजा आता है? मैं भगवान से अपनी बात कहता हूं। भगवान मुझसे अपनी बात कहते हैं। भगवान के लिए आपके पास समय नहीं है, पैसा नहीं है। ईंटों के जखीरे के लिए पैसा है। यदि आप सब जगह भगवान देखते हैं, तो फिर पाप क्यों करते हैं?
जब आप आत्मा की भूख मिटायेंगे, आत्मबल बढ़ायेंगे, तो पैसा के पीछे आप नहीं, आपके पीछे पैसा फिरेगा। बढ़िया व्यक्तित्व वाले को दुनिया अपनी आंखों पर बिठाती है। जहां भी नेक आदमी, सही आदमी हों, वे कभी घाटे में नहीं रहते। सही आदमी मिल जाये, तो लोग सिर पर बिठाने को तैयार हैं। भजन द्वारा आत्मा और व्यक्तित्व को उठाना पड़ेगा। जो गलत मान्यतायें फैली हैं, उन्हें उखाड़ कर फेंक दो। मुझे भगवान के साथ रहने का सौभाग्य मिला है। आप जानते हैं, मैंने जो समाज को दिया है, वह क्या कम है? जो बाह्य स्थिति है, वह ही आपको पता है। अन्दर की स्थिति मैं आपको कैसे दिखाऊं।
आपने अपने विचार बदल दिये हों, तो मैं सूझूंगा मेरा श्रम ठीक रहा। अगर आपने विचार नहीं बदले, तो मैं समझूंगा, मेरा श्रम व्यर्थ गया। भगवान को आप अपने साथ समझें और भगवान की कृपा की कीमत चुकायें। छोटी-सी चीजों की कीमत चुकाई जाती है, तो भगवान से मिलने के लिए कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी। आप अपने जीवन का क्रम बदलें। कैमरे वाला जब फोटो खींचते समय देखता है, तो उसे सब छोटे दिखाई देते हैं। जब हमारा दृष्टिकोण ही छोटा होगा, तो हम सबके साथ भगवान को भी छोटा ही समझेंगे। भगवान वर्षा करता है। प्रकाश देता है। सारी सृष्टि का संचालन करता है। भगवान एक हार्स पावर की मोटर नहीं है। भगवान पावर हाउस है। आप अपने जीवन को भगवान से जोड़ते, तो क्या से क्या कर सकते थे। आप अपनी प्रसुप्त शक्ति को जागृत कर लेते, तो असामान्य बन जाते। आपको यह किसी ने नहीं बताया कि मल-विक्षेप को साफ कर आप प्रहलाद बन सकते हैं। बची हुई जिन्दगी के दिन कम नहीं हैं। बचे हुए जीवन के दिनों के एक-एक क्षण को बढ़िया तरीके से जीना है। मैंने आपको अपने जीवन के निचोड़ बताये।
मैंने भगवान से हर चीज ली है। कीमत चुकाई है। एक छोटा-सा आदमी जिसके पास धन-दौलत और साधन कुछ भी नहीं था। उसने अपनी आत्मा को बलवान बनाकर सब कुछ पाया है। भगवान की खुशामद करके हमने दया नहीं पायी। हमें मनुष्य का जीवन मिला है, यह ही क्या कम है? आपको जो कुछ पाना है, अपनी आत्मा की बलवान बनाकर पा सकते हैं। अपनी आत्मा पर निगाह रखना, अपनी आत्मा का परिष्कार करना। मैं अपना फैसला विवेक से करता हूं। मैं किसी का फैसला नहीं मानता। आप स्वयं देखें कि हमारा मार्ग सही है या नहीं। यदि आपके विवेक की कसौटी पर सत्य है, तो आप उस मार्ग को अपनाओ। आपकी सफलता आपके विवेक-निर्णय पर निर्भर है। आपने भगवान राम-कृष्ण की सबकी कहानी सुनी। आपको बड़ा मजा आता यदि आप अपने बारे में सोचते कि आप क्या हैं? क्या कर रहे हैं और क्या करना चाहिए? आप अपनी समझ से निर्णय करें और प्राणवान जीवन जीयें। सामर्थ्यवान से जुड़ने वाला घाटे में नहीं रहता। आप भगवान से वास्तविक सम्बन्ध जोड़ेंगे, तो आप सतत् पाते ही रहेंगे।
देवियो और भाइयो,
मनुष्य की दो जिम्मेदारियां हैं—एक सांसारिक दूसरी आध्यात्मिक। पेट की भूख होती है, इस भूख को दूर करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। एक भूख होती है—विलासिता की और अय्याशी की। खाली दिमाग का आदमी इसी की बात सोचा करता है, कामनाओं की पूर्ति में लगा रहता है। शादी करना, बच्चा पैदा करना, उन्हें पढ़ाना-लिखाना, उनके पालन-पोषण में लगे रहना, यह लौकिक जीवन है। यह तो शरीर सम्बन्धी बातें हैं। सांसारिक जिम्मेदारियां हैं। आत्मा की भी एक भूख होती है। हमारे अन्दर से एक बात हमेशा उठती रहती है कि हमको भगवान से सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए। जिस प्रकार छोटा बच्चा दूध पीकर बलवान बनता है। यदि दूध न मिले, तो मर जाता है। उसी प्रकार हमें भगवान से सम्बन्ध बनाये रखना आवश्यक है। आप प्रधानमंत्री के पास मिलने गये, उन्होंने आपको बिठाया, चाय पिलायी, बातचीत की परन्तु आपको नौकरी नहीं दिलायी, आप नाराज हो गये। लेकिन इसमें नाराज होने की क्या बात है? जितना आपके लिए किया वह कुछ कम है क्या? इतना अहसान भी क्या कम है? भगवान हमें पास बिठाल लेता है, हम भगवान से मिल लेते हैं, यह क्या कम है? ऐसे भगवान से सम्बन्ध रखने से आत्मा की भूख पूरी होगी।
आजकल लोग तीर्थयात्रा से, गंगास्नान से पाप नष्ट करने की बात सोचते हैं, यह गलत है। पापों का प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा। भगवान राम के पिता के तीर से श्रवणकुमार का देहान्त हो गया था। श्रवणकुमार के पिता ने शाप दिया था कि तू भी पुत्र शोक में मरेगा। भगवान रामचन्द्र अपने पिता को भी पाप के दण्ड से नहीं बचा सके। जितना पाप आपने किया है, उतना पुण्य भी करना पड़ेगा। प्रायश्चित का अर्थ है—जितना लोगों को तंग किया है, उतना ही उन्हें सुख देना। तभी हिसाब-किताब पूरा होगा। आप तो छोटे-से कर्मकाण्डों के द्वारा पापों को हटाना चाहते हैं। पोस्टकार्ड दस पैसे में मिलता है, लिफाफा बीस पैसे में मिलता है, आपको भगवान का वरदान थोड़े से भजन से कैसे मिल जायेगा? सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से आपके पाप दूर हो गये होते, तो आपके कष्ट दूर क्यों नहीं हुए? भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना होगा। विदेशों में लोगों की उम्र एक सौ पच्चीस वर्ष होती है और वह इसलिए कि वे आहार-विहार में संयम का पालन करते हैं। मलाई को सब पसन्द करते हैं क्योंकि मलाई अच्छी होती है। जिसका व्यक्तित्व निखरता है, उसे सब पसन्द करते हैं।
तुलसीदास कामान्ध थे। उनने मुर्दे को लकड़ी और सांप को रस्सी समझकर पकड़ लिया था। उनने जब अपनी दिशाधारा बदली, तो वे संत शिरोमणि हो गये। अपने व्यक्तित्व को विकसित करना ही अध्यात्म है। व्यक्तित्व का भौतिक आधार नहीं होता। रावण, दुर्योधन, हिरण्यकश्यप ये भौतिकवादी थे। वे कामयाब नहीं हुए। कबीर जुलाहा थे लेकिन अध्यात्मवादी थे। आज सारा समाज गलत तरीके से भगवान को पाने में लगा है। हजारों वर्षों से लोग बताते चले आ रहे हैं कि थोड़ा भजन कर लो, बेड़ा पार हो जायेगा। जब लोगों की इच्छा इस तरह पूरी नहीं होती, तो लोग नास्तिक होते चले जाते हैं। आपके घर जब कोई रिश्तेदार आता है, तो आप सब काम भूलकर उनकी सेवा में लग जाते हैं फिर आपका भजन में मन क्यों नहीं लगता?
हमारा भगवान हमारे पास बैठता है। क्या मजा आता है? मैं भगवान से अपनी बात कहता हूं। भगवान मुझसे अपनी बात कहते हैं। भगवान के लिए आपके पास समय नहीं है, पैसा नहीं है। ईंटों के जखीरे के लिए पैसा है। यदि आप सब जगह भगवान देखते हैं, तो फिर पाप क्यों करते हैं?
जब आप आत्मा की भूख मिटायेंगे, आत्मबल बढ़ायेंगे, तो पैसा के पीछे आप नहीं, आपके पीछे पैसा फिरेगा। बढ़िया व्यक्तित्व वाले को दुनिया अपनी आंखों पर बिठाती है। जहां भी नेक आदमी, सही आदमी हों, वे कभी घाटे में नहीं रहते। सही आदमी मिल जाये, तो लोग सिर पर बिठाने को तैयार हैं। भजन द्वारा आत्मा और व्यक्तित्व को उठाना पड़ेगा। जो गलत मान्यतायें फैली हैं, उन्हें उखाड़ कर फेंक दो। मुझे भगवान के साथ रहने का सौभाग्य मिला है। आप जानते हैं, मैंने जो समाज को दिया है, वह क्या कम है? जो बाह्य स्थिति है, वह ही आपको पता है। अन्दर की स्थिति मैं आपको कैसे दिखाऊं।
आपने अपने विचार बदल दिये हों, तो मैं सूझूंगा मेरा श्रम ठीक रहा। अगर आपने विचार नहीं बदले, तो मैं समझूंगा, मेरा श्रम व्यर्थ गया। भगवान को आप अपने साथ समझें और भगवान की कृपा की कीमत चुकायें। छोटी-सी चीजों की कीमत चुकाई जाती है, तो भगवान से मिलने के लिए कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी। आप अपने जीवन का क्रम बदलें। कैमरे वाला जब फोटो खींचते समय देखता है, तो उसे सब छोटे दिखाई देते हैं। जब हमारा दृष्टिकोण ही छोटा होगा, तो हम सबके साथ भगवान को भी छोटा ही समझेंगे। भगवान वर्षा करता है। प्रकाश देता है। सारी सृष्टि का संचालन करता है। भगवान एक हार्स पावर की मोटर नहीं है। भगवान पावर हाउस है। आप अपने जीवन को भगवान से जोड़ते, तो क्या से क्या कर सकते थे। आप अपनी प्रसुप्त शक्ति को जागृत कर लेते, तो असामान्य बन जाते। आपको यह किसी ने नहीं बताया कि मल-विक्षेप को साफ कर आप प्रहलाद बन सकते हैं। बची हुई जिन्दगी के दिन कम नहीं हैं। बचे हुए जीवन के दिनों के एक-एक क्षण को बढ़िया तरीके से जीना है। मैंने आपको अपने जीवन के निचोड़ बताये।
मैंने भगवान से हर चीज ली है। कीमत चुकाई है। एक छोटा-सा आदमी जिसके पास धन-दौलत और साधन कुछ भी नहीं था। उसने अपनी आत्मा को बलवान बनाकर सब कुछ पाया है। भगवान की खुशामद करके हमने दया नहीं पायी। हमें मनुष्य का जीवन मिला है, यह ही क्या कम है? आपको जो कुछ पाना है, अपनी आत्मा की बलवान बनाकर पा सकते हैं। अपनी आत्मा पर निगाह रखना, अपनी आत्मा का परिष्कार करना। मैं अपना फैसला विवेक से करता हूं। मैं किसी का फैसला नहीं मानता। आप स्वयं देखें कि हमारा मार्ग सही है या नहीं। यदि आपके विवेक की कसौटी पर सत्य है, तो आप उस मार्ग को अपनाओ। आपकी सफलता आपके विवेक-निर्णय पर निर्भर है। आपने भगवान राम-कृष्ण की सबकी कहानी सुनी। आपको बड़ा मजा आता यदि आप अपने बारे में सोचते कि आप क्या हैं? क्या कर रहे हैं और क्या करना चाहिए? आप अपनी समझ से निर्णय करें और प्राणवान जीवन जीयें। सामर्थ्यवान से जुड़ने वाला घाटे में नहीं रहता। आप भगवान से वास्तविक सम्बन्ध जोड़ेंगे, तो आप सतत् पाते ही रहेंगे।