Books - धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके
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Language: HINDI
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धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
भगवान के मंदिर जगह-जगह बनाए जाएँ, यह विचार उस समय उत्पन्न हुआ, जब भगवान की विचारणा को जनमानस में स्थापित करने, भगवान की प्रेरणाओं को सर्वत्र प्रकाशित करने की आवश्यकता अनुभव की गई। भगवान सब जगह विराजमान हैं। पेड़-पत्ते से लेकर फूल-पौधों तक और मनुष्य के हृदय से लेकर इस आसमान तक, कोई भी स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ वे विद्यमान न हों। फिर भगवान को एक स्थान पर बिठाने और खाना खिलाने की क्या जरूरत पड़ गई? यह विचारणीय प्रश्न है। भगवान तो बादलों को बरसाते हैं। जरूरत पड़े, तो जहाँ कहीं वर्षा हुआ करे, वहाँ जा बैठें और फुहारों का आनंद ले लें। नहाने की उनको क्या दिक्कत पड़ेगी? नदियाँ उनकी बहती हैं। जब कभी स्नान करना पड़े, घंटों नहा सकते हैं। उनको कोई रोकने वाला है क्या? फिर भगवान को स्नान कराने की क्या जरूरत थी?
मित्रो! भगवान तो एक विचारणा है, भावना है, एक चेतना है। उनको एक जगह बिठाया जाए, ये कैसे मुमकिन हो सकता है? भगवान की वृत्तियों और प्रवृत्तियों को हम लोग भूल गए हैं। उनको स्मरण दिलाने के लिए ही मंदिर, चेतना केंद्र बनाए गए हैं, जिनके माध्यम से भगवान की वृत्तियों को सर्वसाधारण के मनों तक पहुँचाना संभव हो सकेगा। गाँवों में देवालय इसीलिए बनाए गए हैं कि जो लोग भगवान को भूल गए हैं, वे इस माध्यम से अपने जीवन लक्ष्य को पहचानें। लोग भगवान का नाम तो जानते हैं कि भगवान कृष्ण होते हैं, भगवान राम होते हैं, हनुमान होते हैं, लेकिन सही बात यह है कि भगवान के स्वरूप, उनके आदेश, उनकी शिक्षाओं और मानव जीवन से उनका संबंध, इन सबको सौ फीसदी लोग भूल गए हैं। यदि वे भूले न होते तो उनने अपने जीवन लक्ष्य को याद रखा होता और यह स्मरण रखा होता कि भगवान ने इंसान को दुनिया में किसलिए भेजा है? उसके ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं? भगवान ने मनुष्य से क्या उम्मीदें की हैं?
मित्रो! भगवान तो हृदय में, घट-घट में समाया हुआ है और वह मनुष्य के द्वारा अच्छी वृत्तियों को पूरा किया जाना देखना चाहता है। अगर ये बातें मनुष्य को याद नहीं हैं, उसे केवल किसी मंदिर की मूर्ति की शक्ल भर याद रहती है, तो कैसे कहा जाए कि इस आदमी को भगवान याद है और वह भगवान को भूला नहीं है? साथियो! लोग भगवान को भूलते जा रहे थे और भूल रहे हैं। इसीलिए उनको स्मरण दिलाए रखने के लिए मंदिरों की स्थापना की गई, ताकि जब कभी भी आदमी उधर से निकले, तो प्रणाम करे, दंडवत करे और सुबह शाम उनका दर्शन करे, ताकि उसे याद आए कि कोई भगवान नाम की सत्ता भी है और वह मनुष्य के जीवन से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। मनुष्य जीवन के विकास के लिए, जीवन में सुख शांति की स्थापना करने के लिए भगवान की सहायता और भगवान के सहयोग की नितांत आवश्यकता है। यह सिद्धांत और आवश्यकता मनुष्य को अनुभव होती रहे, इसलिए हर जगह मंदिर बनाए गए।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
भगवान के मंदिर जगह-जगह बनाए जाएँ, यह विचार उस समय उत्पन्न हुआ, जब भगवान की विचारणा को जनमानस में स्थापित करने, भगवान की प्रेरणाओं को सर्वत्र प्रकाशित करने की आवश्यकता अनुभव की गई। भगवान सब जगह विराजमान हैं। पेड़-पत्ते से लेकर फूल-पौधों तक और मनुष्य के हृदय से लेकर इस आसमान तक, कोई भी स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ वे विद्यमान न हों। फिर भगवान को एक स्थान पर बिठाने और खाना खिलाने की क्या जरूरत पड़ गई? यह विचारणीय प्रश्न है। भगवान तो बादलों को बरसाते हैं। जरूरत पड़े, तो जहाँ कहीं वर्षा हुआ करे, वहाँ जा बैठें और फुहारों का आनंद ले लें। नहाने की उनको क्या दिक्कत पड़ेगी? नदियाँ उनकी बहती हैं। जब कभी स्नान करना पड़े, घंटों नहा सकते हैं। उनको कोई रोकने वाला है क्या? फिर भगवान को स्नान कराने की क्या जरूरत थी?
मित्रो! भगवान तो एक विचारणा है, भावना है, एक चेतना है। उनको एक जगह बिठाया जाए, ये कैसे मुमकिन हो सकता है? भगवान की वृत्तियों और प्रवृत्तियों को हम लोग भूल गए हैं। उनको स्मरण दिलाने के लिए ही मंदिर, चेतना केंद्र बनाए गए हैं, जिनके माध्यम से भगवान की वृत्तियों को सर्वसाधारण के मनों तक पहुँचाना संभव हो सकेगा। गाँवों में देवालय इसीलिए बनाए गए हैं कि जो लोग भगवान को भूल गए हैं, वे इस माध्यम से अपने जीवन लक्ष्य को पहचानें। लोग भगवान का नाम तो जानते हैं कि भगवान कृष्ण होते हैं, भगवान राम होते हैं, हनुमान होते हैं, लेकिन सही बात यह है कि भगवान के स्वरूप, उनके आदेश, उनकी शिक्षाओं और मानव जीवन से उनका संबंध, इन सबको सौ फीसदी लोग भूल गए हैं। यदि वे भूले न होते तो उनने अपने जीवन लक्ष्य को याद रखा होता और यह स्मरण रखा होता कि भगवान ने इंसान को दुनिया में किसलिए भेजा है? उसके ऊपर क्या जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं? भगवान ने मनुष्य से क्या उम्मीदें की हैं?
मित्रो! भगवान तो हृदय में, घट-घट में समाया हुआ है और वह मनुष्य के द्वारा अच्छी वृत्तियों को पूरा किया जाना देखना चाहता है। अगर ये बातें मनुष्य को याद नहीं हैं, उसे केवल किसी मंदिर की मूर्ति की शक्ल भर याद रहती है, तो कैसे कहा जाए कि इस आदमी को भगवान याद है और वह भगवान को भूला नहीं है? साथियो! लोग भगवान को भूलते जा रहे थे और भूल रहे हैं। इसीलिए उनको स्मरण दिलाए रखने के लिए मंदिरों की स्थापना की गई, ताकि जब कभी भी आदमी उधर से निकले, तो प्रणाम करे, दंडवत करे और सुबह शाम उनका दर्शन करे, ताकि उसे याद आए कि कोई भगवान नाम की सत्ता भी है और वह मनुष्य के जीवन से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। मनुष्य जीवन के विकास के लिए, जीवन में सुख शांति की स्थापना करने के लिए भगवान की सहायता और भगवान के सहयोग की नितांत आवश्यकता है। यह सिद्धांत और आवश्यकता मनुष्य को अनुभव होती रहे, इसलिए हर जगह मंदिर बनाए गए।