Books - धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके
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Language: HINDI
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जनश्रद्धा का दुरुपयोग न हो
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मित्रो! हम अपने ढंग से भगवान के बेकार आदमी जैसा बनाते हैं। अगर भगवान सोया करेंगे तो सूरज, चाँद कैसे उगेगा? हवाएँ कैसे चलेंगी? जीव-जंतु, पेड़-पौधे कैसे पैदा हो जाएँगे? भगवान सो नहीं सकता, हवा सो नहीं सकती, गरमी सो नहीं सकती। जो इस तरह की विश्वव्यापी चेतनाएँ हैं, उनको सोने से क्या मतलब ! इसलिए सोने जागने वाला जो कृत्य है, वह बच्चों का मनबहलाव जैसा है। मनबहलाव का थोड़ा-सा काम रखा जाए, तो क्या हर्ज है, लेकिन उस कार्य के लिए जो धन, पैसा, श्रम लगा हुआ है, जो व्यक्ति लगे हुए हैं, उन सभी को लोकमंगल के लिए खरच किया जाना चाहिए। मंदिरों के जो कमेटी वाले हैं, महंत हैं, उनको विवेकशील लोगों की एक कमेटी बनाकर समझाया जाना चाहिए। अगर वे समझते नहीं हैं, तो उन्हें मजबूर किया जाना चाहिए कि मंदिर में धन तो आपने लगाया है, पर अब बह जनता का है। मंदिर का ट्रस्ट बनाने का मतलब है कि उसका स्वामित्व जनता के हाथ में चला जाता है। मंदिरों के न्यासी प्रबंधक होते हैं, स्वामी नहीं होते। वह संपत्ति जनता की मानी जाती है। जो देवालय बन गया, उसकी स्वामी जनता हो जाती है और उसका हक है कि उन लोगों को मजबूर करे और कहे कि आप इस तरीके से इस धन का अपव्यय नहीं कर सकते। जनता की श्रद्धा का गलत उपयोग नहीं किया जा सकता।
मित्रो! अपने देश में अरबों रुपया मंदिरों के नाम पर लगा हुआ है। मैं इसको अपव्यय ही नहीं दुरुपयोग कहता हूँ और यह कहता हूँ कि उन पुजारियों को, महंतों को यह कहा जाना चाहिए कि आप अगर अपनी श्रद्धा को कायम रखना चाहते हैं, जनता के मन पर अपनी छाप को कायम रखना चाहते हैं, तो आप लोकसेवी के तरीके से जिएँ और इस मदिर को लोकसेवा का केंद्र बनाएँ। न जो आप भगवान के वकील हैं, न एजेंट हैं और ही नुमाइन्दे है। आप हमारे जैसे पुजारी और एक सामान्य व्यक्ति हैं।
मित्रो! अपने देश में अरबों रुपया मंदिरों के नाम पर लगा हुआ है। मैं इसको अपव्यय ही नहीं दुरुपयोग कहता हूँ और यह कहता हूँ कि उन पुजारियों को, महंतों को यह कहा जाना चाहिए कि आप अगर अपनी श्रद्धा को कायम रखना चाहते हैं, जनता के मन पर अपनी छाप को कायम रखना चाहते हैं, तो आप लोकसेवी के तरीके से जिएँ और इस मदिर को लोकसेवा का केंद्र बनाएँ। न जो आप भगवान के वकील हैं, न एजेंट हैं और ही नुमाइन्दे है। आप हमारे जैसे पुजारी और एक सामान्य व्यक्ति हैं।