Books - धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके
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Language: HINDI
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राष्ट्र का कायाकल्प कर सकते हैं ये देवालय
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इसके लिए हमें केवल मंदिरों की दिशाएँ मोड़ने की जरूरत है। लोगों को सपने की जरूरत है, प्रचार करने की जरूरत है, धमकाने की जरूरत है। अगर ये काबू में न आते हो, तो घिराव करने से लेकर बहिष्कार करने तक की जरूरत है। यह समझाने की जरूरत है कि इस धन का और इमारतों का हम अपव्यय नहीं होने देंगे। मंदिरों को हम अंधश्रद्धा का केंद्र नहीं बनने देंगे। हम धर्मभीरुता का पोषण करने वाले केंद्र के रूप में नहीं, वरन इन्हें धर्म की स्थापना का केंद्र बनाएँगे। यदि इन मंदिरों को धर्म की स्थापना का केंद्र बनाया जा सका, तो राष्ट्र की महती आवश्यकता पूरी की जा सकती है। तब नया युग लाने में, नया समाज बनाने में, समाज की विकृतियों को दूर करने में और एक समर्थ राष्ट्र-समर्थ समाज बनाने के लिए इतने बड़े साधन हमारे हाथ सहज ही लग सकते है। इन बने-बनाए साधनों को विवेकशील को अपने अधिकार में, कब्जे में लेना ही चाहिए और उनको वह दिशा देनी चाहिए, जिससे कि भगवान वास्तव में प्रसन्न हों।
भगवान की जो सद्वृत्तियाँ इस विश्व में फैली हुई हैं, जिनसे कि शांति आती है और धार्मिक-भावना की वृद्धि होती है और समाज समृद्ध होता है, उन भावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए मंदिरों को केंद्र बनाया ही जाना चाहिए ताकि वास्तविक भगवान अपनी वास्तविक पूजा को देखकर प्रसन्न हो जाए और भक्ति करने, पूजा पाठ करने का उद्देश्य लोगों को समक्ष आ सके और लोग उसका समुचित फायदा उठा सकें। यह करने को बहुत अधिक आवश्यकता है और हमको करना चाहिए। मंदिरों को जनजागरण का केंद्र बनाया जाना चाहिए, उनका कायाकल्प किया जाना चाहिए। इतना करना यदि संभव हो गया, तो समझना चाहिए कि हमने लोक मंगल के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी मंजिल पूरी कर ली और बहुत बड़े साधनों को हमने अपने आप इकट्ठा कर लिया।
ॐ शान्तिः!
भगवान की जो सद्वृत्तियाँ इस विश्व में फैली हुई हैं, जिनसे कि शांति आती है और धार्मिक-भावना की वृद्धि होती है और समाज समृद्ध होता है, उन भावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए मंदिरों को केंद्र बनाया ही जाना चाहिए ताकि वास्तविक भगवान अपनी वास्तविक पूजा को देखकर प्रसन्न हो जाए और भक्ति करने, पूजा पाठ करने का उद्देश्य लोगों को समक्ष आ सके और लोग उसका समुचित फायदा उठा सकें। यह करने को बहुत अधिक आवश्यकता है और हमको करना चाहिए। मंदिरों को जनजागरण का केंद्र बनाया जाना चाहिए, उनका कायाकल्प किया जाना चाहिए। इतना करना यदि संभव हो गया, तो समझना चाहिए कि हमने लोक मंगल के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी मंजिल पूरी कर ली और बहुत बड़े साधनों को हमने अपने आप इकट्ठा कर लिया।
ॐ शान्तिः!