Books - गीत माला भाग ११
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मिलकर करें प्रयास
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मिलकर करें प्रयास
मिलकर करें प्रयास, हमें परिवर्तन लाना है।
यदि हो गये उदास, नहीं कुछ होना- जाना है॥
अनाचार से दुःखी धरा ने, है धीरज छोड़ा।
और गगन के मन में भी है, दर्द नहीं थोड़ा॥
प्रकृति हुई बेहाल, उसे अब धीर बँधाना है॥
कुविचारों ने मानव मन को, दूषित कर डाला।
और स्वार्थ ने परिवारों को, तोड़ फोड़ डाला॥
दुश्चिंतन के विष से उनको, मुक्ति दिलाना है॥।
दुर्भावों ने ही समाज में, डाला है डेरा।
राग- द्वेष की लपटों ने है, सब को ही घेरा॥
सद्भावों की अब समाज को, सुधा पिलाना है॥
कला, शिल्प, साहित्य सभी में, विकृति है आई।
लोभ- मोह की काली छाया, इन सब पर छाई॥
मानवता की गरिमा सबको, फिर समझाना है॥
संस्कृति हमको मिल- जुलकर,रहना सिखलाती है।
जाति, धर्म, भाषा की बाधा, दूर हटाती है॥
फिर अखण्डता और एकता, भाव जगाना है॥
सत्- संकल्पों का साहस लेकर, हम आगे आयें।
ज्ञानयज्ञ की ले मशाल हम जन- जन तक जायें॥
पुनःजगा उत्साह लक्ष्य, पाकर दिखलाना है॥
मिलकर करें प्रयास, हमें परिवर्तन लाना है।
यदि हो गये उदास, नहीं कुछ होना- जाना है॥
अनाचार से दुःखी धरा ने, है धीरज छोड़ा।
और गगन के मन में भी है, दर्द नहीं थोड़ा॥
प्रकृति हुई बेहाल, उसे अब धीर बँधाना है॥
कुविचारों ने मानव मन को, दूषित कर डाला।
और स्वार्थ ने परिवारों को, तोड़ फोड़ डाला॥
दुश्चिंतन के विष से उनको, मुक्ति दिलाना है॥।
दुर्भावों ने ही समाज में, डाला है डेरा।
राग- द्वेष की लपटों ने है, सब को ही घेरा॥
सद्भावों की अब समाज को, सुधा पिलाना है॥
कला, शिल्प, साहित्य सभी में, विकृति है आई।
लोभ- मोह की काली छाया, इन सब पर छाई॥
मानवता की गरिमा सबको, फिर समझाना है॥
संस्कृति हमको मिल- जुलकर,रहना सिखलाती है।
जाति, धर्म, भाषा की बाधा, दूर हटाती है॥
फिर अखण्डता और एकता, भाव जगाना है॥
सत्- संकल्पों का साहस लेकर, हम आगे आयें।
ज्ञानयज्ञ की ले मशाल हम जन- जन तक जायें॥
पुनःजगा उत्साह लक्ष्य, पाकर दिखलाना है॥