Books - गीत माला भाग ११
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महाक्रान्ति अनिवार्य हो चुकी
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महाक्रान्ति अनिवार्य हो चुकी
महाक्रान्ति अनिवार्य हो चुकी आओ मिल सब शपथ उठायें।
नये सृजन की क्रान्ति पताका, धरती से नभ तक फहराई।।
पाँचजन्य का नाद हो रहा, असमंजस का नहीं समय है।
युग परिवर्तन की घड़ियाँ ये, नवयुग का अब सूर्य उदय है।।
है आवाहन युग वीरों को, ललकार समय की स्वीकारें।
अभी नहीं तो कभी नहीं फिर, युग पुकार पर सब कुछ वारें।।
प्राण होम युग धर्म निभाने, संकल्प सृजन के कर जायें।।
ज्ञानक्रान्ति की चिंगारी को, हर जन मन तक अब पहुँचायें।
युग की उल्टी धार पलटने, घर- घर जायें अलख जगायें।।
भ्रम भटकावों, युगतम की हों, जितनी भी जंजीरें तोड़ें।
प्राण पिलाने युगप्रज्ञा का, युग चिन्तन से सबको जोड़ें।।
बीज विचार क्रान्ति के सारे, भूमण्डल में हम फैलायें।।
दें संदेशा जाति वर्ग हर, मज़हब के पहरेदारों को।
तोड़ दें संकीर्ण दीवारें, मान लें युगऋषि विचारों को।।
आदर्शों को धर्म बनालें, बन जायें प्रज्ञावान सभी।
सभ्य समाज का मर्म है यह, युग रोगों का है निदान यही।।
मंदिर, मस्जि़द, गिरजे में हम, अब नया भगवान बैठायें।।
जीवन धन्य बनाने सबको, बुला रहा है अब महाकाल।
सृजन सैनिकों को आमन्त्रण, बढ़ चलो थामकर युग मशाल।।।
साझेदारी करने प्रभु से यह समय नहीं फिर आना है।
चूक गये यह अनुपम सुयोग, तो पीछे बस पछताना है।।
युग के इस महायज्ञ में अपना, तन- मन धन सर्वस्व लुटायें।।
महाक्रान्ति अनिवार्य हो चुकी आओ मिल सब शपथ उठायें।
नये सृजन की क्रान्ति पताका, धरती से नभ तक फहराई।।
पाँचजन्य का नाद हो रहा, असमंजस का नहीं समय है।
युग परिवर्तन की घड़ियाँ ये, नवयुग का अब सूर्य उदय है।।
है आवाहन युग वीरों को, ललकार समय की स्वीकारें।
अभी नहीं तो कभी नहीं फिर, युग पुकार पर सब कुछ वारें।।
प्राण होम युग धर्म निभाने, संकल्प सृजन के कर जायें।।
ज्ञानक्रान्ति की चिंगारी को, हर जन मन तक अब पहुँचायें।
युग की उल्टी धार पलटने, घर- घर जायें अलख जगायें।।
भ्रम भटकावों, युगतम की हों, जितनी भी जंजीरें तोड़ें।
प्राण पिलाने युगप्रज्ञा का, युग चिन्तन से सबको जोड़ें।।
बीज विचार क्रान्ति के सारे, भूमण्डल में हम फैलायें।।
दें संदेशा जाति वर्ग हर, मज़हब के पहरेदारों को।
तोड़ दें संकीर्ण दीवारें, मान लें युगऋषि विचारों को।।
आदर्शों को धर्म बनालें, बन जायें प्रज्ञावान सभी।
सभ्य समाज का मर्म है यह, युग रोगों का है निदान यही।।
मंदिर, मस्जि़द, गिरजे में हम, अब नया भगवान बैठायें।।
जीवन धन्य बनाने सबको, बुला रहा है अब महाकाल।
सृजन सैनिकों को आमन्त्रण, बढ़ चलो थामकर युग मशाल।।।
साझेदारी करने प्रभु से यह समय नहीं फिर आना है।
चूक गये यह अनुपम सुयोग, तो पीछे बस पछताना है।।
युग के इस महायज्ञ में अपना, तन- मन धन सर्वस्व लुटायें।।