Books - गुरुवर की धरोहर (द्वितीय भाग)
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Language: HINDI
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प्राक्कथन
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आश्चर्य होता है जब हम परम पूज्य गुरुदेव की लेखनी से निस्सृत संस्कृतनिष्ठ शब्दों को उनकी अमृतवाणी के रूप में सुनते हैं। बहुत विरले होते हैं जो बोलते समय अपने अंदर का लेखक हावी न होने देकर बोधगम्य जन सामान्य की भाषा बोल पाते हों। परम पूज्य गुरुदेव एक ऐसी ही विभूति थे जिनका भाषा व वाणी पर, लेखनी व वक्तृता पर समान अधिकार था। लाखों व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क को बदल देने वाली उनकी लेखनी 2700 पुस्तकों के रूप में अभिव्यक्त हुई जो अभी तक प्रकाशित हैं। अभी भी 500 से अधिक अप्रकाशित ग्रंथ हैं जो समय-समय पर परिजनों के सम्मुख आते रहेंगे। किंतु उनकी वाणी इतनी मुखर व पूरे समय तक श्रोताओं को बांधे रखने वाली 2700 कैसेट्स में भी बांधी नहीं जा सकती, इतना कुछ बोला है उस युगदृष्टा ने।
परिजनों के समक्ष, परम पूज्य गुरुदेव की हम सबके लिए बहुमूल्य धरोहर, उनकी अमृतवाणी को दो भागों में हम प्रकाशित कर रहे हैं। उनकी वाणी से मुखरित ये विचार-कण सीधे हृदय तक उतर जाते हैं, इसलिए जन-जन यहां तक कि छोटे बच्चों के लिए भी यह ग्रंथ उतना ही उपयोगी है। परम वंदनीया माता जी के महाप्रयाण के बाद हम सभी बच्चे शोकाकुल हैं पर हमें अपनी आराध्यसत्ता के आश्वासन पर, उनके शब्द-शब्द पर विश्वास है। इस विराट गायत्री परिवार को एकसूत्र में बांधने वाली युगदृष्टा की अमृतवाणी प्रस्तुत है जन-जन के समक्ष।
नववर्ष संवत 2052 विक्रमी
(1-4-1995)
विनीत
संपादक