• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जड़ीबूटियों द्वारा चिकित्सा
    • वनौषधि चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार
    • एकौषधि ही क्यों ?
    • मुलहठी (ग्लिसराइजा ग्लेब्रा)
    • आँवला (एम्बलीका आफीसिनेलिस)
    • हरड़ (टर्मिनेलिया चेब्यूला)
    • बिल्व (इगल मार्मेलोज)
    • अडूसा (एढेटोडा वेसाइका)
    • भारंगी (क्लरोडेण्ड्रान सेरेटम)
    • अर्जुन (टर्मिनेलिया अर्जुन)
    • पुनर्नवा (बोअरहविया डिफ्यूजा)
    • शंखपुष्पी (कन्वाल्व्यूलस प्लूरीकॉलिस)
    • ब्राह्मी (बकोपा मोनिएरा)
    • र्निगुण्डी (वाइटेक्स र्निगुण्डी)
    • सुष्ठी (जिंजिबर आफिसिनेल)
    • नीम (एजाडिरेक्टा इण्डिक)
    • सारिवा (हेमिडेस्मस इण्डिक)
    • चिरायता (सुआर्शिया चिरायता)
    • गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया)
    • अशोक (साराका इण्डिका)
    • गोक्षुर (ट्रकइबुलस टेरेस्टि्रस)
    • शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस)
    • असगंध (विदेनिया सॉम्नीफेरा)
    • तुलसी (ऑसीममसैक्टम)
    • हरिद्रा
    • अपामार्ग
    • घृतकुमारी
    • विभिन्न व्याधियों में अनुपान, पथ्य एवं अपथ्य
    • लहसुन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जड़ीबूटियों द्वारा चिकित्सा
    • वनौषधि चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार
    • एकौषधि ही क्यों ?
    • मुलहठी (ग्लिसराइजा ग्लेब्रा)
    • आँवला (एम्बलीका आफीसिनेलिस)
    • हरड़ (टर्मिनेलिया चेब्यूला)
    • बिल्व (इगल मार्मेलोज)
    • अडूसा (एढेटोडा वेसाइका)
    • भारंगी (क्लरोडेण्ड्रान सेरेटम)
    • अर्जुन (टर्मिनेलिया अर्जुन)
    • पुनर्नवा (बोअरहविया डिफ्यूजा)
    • शंखपुष्पी (कन्वाल्व्यूलस प्लूरीकॉलिस)
    • ब्राह्मी (बकोपा मोनिएरा)
    • र्निगुण्डी (वाइटेक्स र्निगुण्डी)
    • सुष्ठी (जिंजिबर आफिसिनेल)
    • नीम (एजाडिरेक्टा इण्डिक)
    • सारिवा (हेमिडेस्मस इण्डिक)
    • चिरायता (सुआर्शिया चिरायता)
    • गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया)
    • अशोक (साराका इण्डिका)
    • गोक्षुर (ट्रकइबुलस टेरेस्टि्रस)
    • शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस)
    • असगंध (विदेनिया सॉम्नीफेरा)
    • तुलसी (ऑसीममसैक्टम)
    • हरिद्रा
    • अपामार्ग
    • घृतकुमारी
    • विभिन्न व्याधियों में अनुपान, पथ्य एवं अपथ्य
    • लहसुन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - जड़ीबूटियों द्वारा चिकित्सा

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


मुलहठी (ग्लिसराइजा ग्लेब्रा)

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
काण्ड और मूल मधुर होने से मुलहठी को यष्टिमधु कहा जाता है । मधुक क्लीतक, जेठीमध तथा लिकोरिस इसके अन्य नाम हैं । इसका बहुवर्षायु क्षुप लगभग डेढ़ मीटर से दो मीटर ऊँचा होता है । जड़ें गोल-लंबी झुर्रीदार तथा फैली हुई होती हैं । जड़ व काण्ड से कई शाखाएँ निकलती हैं । पत्तियाँ संयुक्त व अण्डाकार होती हैं, जिनके अग्रभाग नुकीले होते हैं । फली बारीक छोटी ढाई सेण्टीमीटर लंबी चपटी होती है जिसमें दो से लेकर पाँच तक वृक्काकार बीज होते हैं । इस वृक्ष का भूमिगत तना (काण्ड) तथा जड़ सुखाकर छिलका हटाकर या छिलके सहित अंग प्रयुक्त होता है ।

उत्पत्ति स्थान-
सामान्यतया मुलहठी ऊँचाई वाले स्थानों पर ही होती है । भारत में जम्मू-कश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक इसे लगाने में सफलता मिली है । वैसे बाजार में अरब, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान से आयी मुलहठी ही सामान्यतया पायी जाती है । पर ऊँचे स्थानों पर इसकी सफलता ने वनस्पति विज्ञानियों का ध्यान इसे हिमालय की तराई वाले खुश्क स्थानों पर पैदा करने की ओर आकर्षित किया है । बोटानिकल सर्वे ऑफ इण्डिया इस दिशा में मसूरी, देहरादून फ्लोरा में इसे खोजने व उत्पन्न करने की ओर गतिशील है । इसी कारण अब यह विदेशी औषधि नहीं रही ।

पहचान, मिलावट एवं सावधानियाँ-
प्रयोज्य अंग मुलहठी नाम से प्रचलित अंग इस वृक्ष की जड़ के लंबे टुकड़े का नाम है । इसमें मिलावट बहुत पायी जाती है । मुख्य मिलावट वेल्थ ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के अनुसार मचूरियन मुलहठी की होती है, जो काफी तिक्त होती है । एक अन्य जड़ जो काफी मात्रा में इस सूखी औषधि के साथ मिलाई जाती है, व्यापारियों की भाषा में एवस प्रिकेटोरियम (रत्ती, घुमची या गुंजा के मूल व पत्र) कहलाती है । इण्डियन जनरल ऑफ फार्मेसी के अनुसार वैज्ञानिक द्वय श्री हांडा व भादुरी ने भारतीय बाजारों में मुलहठी का सर्वेक्षण करने पर यही पाया कि इनमें से अधिकांश में मिलावट होती है, यह काफी पुरानी होने के कारण उपयोग योग्य भी नहीं रह जाती, भले ही स्वाद में मीठा होने के कारण वैद्य व अन्य ग्राहक उन्हें सही समझ बैठें ।

असली मुलहठी अन्दर से पीली, रेशेदार व हल्की गंध वाली होती है । ताजी जड़ तो मधुर होती है, पर सूखने पर कुछ तिक्त और अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है । विदेशी आयातित औषधियों में मिश्री मुलहठी को सर्वोत्तम माना गया है ।
मुलहठी की अनुप्रस्थ काट करने पर उसके कटे हुए तल पर कुछ छल्ले स्पष्ट दिखाई देते हैं, जिन्हें कैम्बियम रिंग्स कहते हैं । बाहर की ओर पीताभ रंग का वल्कल और अन्दर की ओर पीला काष्ठी भाग होता है । वनौषधि निर्देशिका के लेखक के अनुसार उत्तम मुलहठी में किसी भी प्रकार की तिक्तता नहीं पायी जाती है । विद्वान लेखक लिखते हैं कि यदि मुलहठी को गंधकाम्ल (सल्फ्यूरिक एसिड 80 प्रतिशत वी.वी.) में भिगाया जाए तो वह शेष पीले रंग का हो जाता है । यह पहचान का एक आधार है ।

रोपण एवं संरक्षण-
इण्डियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च की 'हैण्डबुक ऑफ एग्रीकल्चर' के अनुसार मुलहठी गर्म एवं खुश्क वातावरण माँगती है । पाला एवं भारी वर्षा इसे हानि पहुँचाते हैं । इससे इसकी वृद्धि की दर उत्तरोत्तर मंद पड़ती जाती है ।
इसकी कटिंग वसंत के प्रारंभ में लगाई जानी चाहिए और इसे खाद की बहुतायत मिलनी चाहिए । जब फूल आने लगें तो फूल वाले तनों को काट दिया जाए अन्यथा औषधि गुणहीन हो जाती है । तीन-चार वर्ष बाद इसकी जड़ और जमीन के नीचे के तने को शरद ऋतु में वर्षा के बाद उखाड़ लिया जाता है । जड़ की छाल उखाड़ कर उसे 15-20 सेण्टीमीटर लंबे और 12 सेण्टीमीटर व्यास के टुकड़ों में काट लेते हैं । इन टुकड़ों को ही बारी-बारी से छाया और धूप में सुखाया जाता है और औषधि उपयोग योग्य हो जाती है । इन जड़ों व भौतिक काण्डों को मुख बंद डिब्बों में अनाद्र शीतल स्थान में रखा जाना चाहिए ।

कालावधि-
जैसे किसी एलोपैथिक औषधि की गुण, धर्म समाप्ति की निश्चित तिथि या समय होता है, उसी प्रकार मुलहठी संग्रह होने की अवधि के बाद दो वर्ष तक उपयोगी रहती है । इसे ही इसकी वीर्य कालावधि कहा जाता है ।

गुण-कर्म संबंधी विभिन्न मत-
आचार्य सुश्रुत के अनुसार मुलहठी दाहनाशक, पिपासा नाशक है । उन्होंने इसे सारिवादि गण में गिना है । आचार्य चरक इसे छदिनिग्रहण (एण्टीएमेटिक) मानते हैं व इसका प्रधान प्रभाव मधुर रस तथा वात पित्त शामक होने के नाते अम्ल रस उत्पादक ग्रंथियों व स्नायु समूह पर मानते हैं । भाव प्रकाश के अनुसार यह वमन नाशक और तृष्णाहर है । सभी आयुर्वेद के विद्वान इसे आमाशयगत अम्लता की कमी में सहायक तथा अमाशय के क्षत्त व्रणों के हीलिंग में सर्वाधिक उपयोगी मानते हैं । इसके अतिरिक्त यह जीवनीय, रसायन एवं वल्य (पौष्टिक औषधि) भी है ।

डॉ. जियों एन. कीव के अनुसार तिक्त या अम्लोत्तेजक पदार्थ के खा लेने पर होने वाली पेट की जलन, दर्द आदि को दूर करने में यह चमत्कारिक भूमिका निभाती है । अम्ल जनित दुष्प्रभावों को दूर करने में यह क्षारों से भी अधिक अच्छा कार्य करती है । डॉ. चुनेकर भी इस मत से सहमत हैं कि इसके उपयोग से आमाशयिक अम्ल कम होकर शूल दूर होता है । आयुर्वेदिक मतानुसार भी यह वातानुलोमक होने से उदर शूल में, मधुर होने से आमाशयगत अम्लाधिक्य व अम्ल पित्त में लाभकर होती है । विशेषकर पेप्टिक अल्सर व इससे होने वाली रक्त की उल्टी (हिमेटेमेसिस) में यह अत्यंत लाभकारी पाया गया है ।
विश्व के अनेक देशों के फर्मेकोपिया में यह अधिकृत दवा के रूप में प्रयुक्त होता है । दवा के औषधीय स्तर का ब्रिटिश फर्मेकोपिया (309/1953) तथा युनाइटेड स्टेट्स फर्मेकोपिया (178/1942) में विस्तृत वर्णन मिलता है ।

यूनानी में इसे गलूकूर्टीजा कहा जाता है । हिकमत में इसका उपयोग बहुत पुराना है । ग्रंथों में वर्णन मिलता हे कि सावफरिस्तुस एवं दिसूकारीदुस जैसे प्राचीन हकीम भी इसे प्रयोग करते थे । इसे दूसरे दर्जे में गरम और पहले दर्जे में खुश्क माना गया है । यूनानी में मुलहठी अनेक पाचक योगों में डाली जाती है । यकृत रोगों में भी यह गुणकारी है ।

रासायनिक संगठन -
ताजा मुलहठी में 50 प्रतिशत जल होता है जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत रह जाता है । इसका प्रधान घटक जिसके कारणयह मीठे स्वाद की होती हे, ग्लिसराइजिन होता है जो ग्लिसराइजिक एसिड के रूप में विद्यमान होता है । यह साधारण शक्कर से भी 50 गुना अधिक मीठा होता है । यह संघटक पौधे के उन भागों में नहीं होता जो जमीन के ऊपर होते हैं । विभिन्न प्रजातियों में 2 से 14 प्रतिशत तक की मात्रा इसकी होती है ।
ग्लिसराइजिन के अतिरिक्त इसमें आएसो लिक्विरिटन (एक प्रकार का ग्लाइकोसाइड स्टेराइड इस्ट्रोजन) (गर्भाशयोत्तेजक हारमोन), ग्लूकोज (लगभग 3.5 प्रतिशत), सुक्रोज (लगभग 3 से 7 प्रतिशत), रेसिन (2 से 4 प्रतिशत), स्टार्च (लगभग 40 प्रतिशत), उड़नशील तेल (0.03 से 0.35 प्रतिशत) आदि रसायन घटक भी होते हैं ।

मुलहठी के यौगिक इतने मीठे होते हैं कि 1 : 20000 की स्वल्पसांद्रता में भी इसकी मिठास पता लग जाती है । मुलहठी का पीला रंग ग्लाइकोसाइड-आइसोलिक्विरिटन के कारण है । यह 2.2 प्रतिशत की मात्रा में होता है एवं मुख में विद्यमान लार ग्रंथियों को उत्तेजित कर भोज्य पदार्थों के पाचन परिपाक में सहायक सिद्ध होता हे । मुलहठी का घनसत्व काले या लाल रंग के टुकड़ों में मिलता है व इसका उत्पत्ति स्थान अफगान प्रदेश होने के कारण सामान्यतया वहीं की भाषा में 'रब्बुस्सूस' नाम से पुकारते हैं ।

आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष -
मुलहठी की जड़ का चूर्ण पेट के व्रणों व क्षतों पर (पेप्टिक अल्सर सिण्ड्रोम) लाभकारी प्रभाव डालता है । इससे वे जल्दी भरने लगते हैं । आधुनिक भेषज विशेषज्ञों ने 'डबल ब्लाइण्ड ट्रायल्स' के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि प्राकृतिक रूप में मुलहठी चूर्ण गैस्टि्रक व ड्यूओडनल दोनों प्रकार के अल्सरों के भरने की गति को बढ़ा देता है ।

डी.आर. लारेन्स्र की क्लीनिकल फर्मेकालॉजी के अनुसार मुलहठी में पेप्टिक अल्सर को भरने के लिए उत्तरदायी पदार्थ एक ग्लाइकोसाइड है, जो ग्लिसराइजिन से संबद्ध है एवं दूसरा वह है जो मुलहठी में से एक अम्ल (एक ट्राईटर्पीन) बचता है, जिसे कार्बीक्सोलोन के नाम से एलोपैथिक चिकित्सा में प्रयुक्त किया जाता है । यह पदार्थ आमाशय में श्लेष्मा की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे अल्सर शीघ्र भर जाता है । यह प्रभाव स्थानीय होता है । जब अन्य अम्ल निरोधक एप्टेसिड्स रोगी को लाभ नहीं दे पाते तब मुलहठी इसमें बड़ी लाभकारी होती देखी गयी है ।
ग्लिसराइजिन निकाल देने पर बचे हुए निष्कर्ष (लिकोरिस डिग्लिसरीजनेटेड) में भी अनेकों प्रकार की उपयोगी भेषजीय सामर्थ्य पायी गयी है । पेप्टिक अल्सर भरने के अतिरिक्त यह मरोड़ निवारण में भी मदद करता है । आमाशय व आंत में किसी भी कारण से होने वाली मरोड़ निवारण में भी मदद करता है । आमाशय व आंत में किसी भी कारण से होने वाली मरोड़ (स्पाज्म) इससे दूर हो जाती है । अब तक पाश्चात्य जगत में मुलहठी के आमाशय व आंत्रगत प्रभावों पर 30 रिपोर्टे प्रकाशित हो चुकी हैं । वैज्ञानिकों का कथन है कि इसमें आमाशय की रस ग्रंथियों से ग्लाइकोप्रोटीन्स नामक रस का स्राव बढ़ जाता है जो जीवकोषों के जीवनकाल को भी बढ़ाता है, छोटी-मोटी टूट-फूट को भी तुरंत ही ठीक कर देता है ।

धीरे-धीरे विस्तृत विश्लेषण से अब यह स्पष्ट हो गया है कि मुलहठी न केवल गैस्टि्रक अल्सर वरन् छोटी आंत के प्रारंभिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से प्रभावशाली है । वस्तुतः यह दूसरी वाली व्याधि ही गंभीर व असाध्य मानी जाती रही है । परफोरेशन, स्तिनोसिस जैसी परिणतियाँ इसी रोग की होती हैं । इण्डियन मेडीकल गजट (193.9, 1979) के अनुसार पूर्ण परीक्षित रोगियों को जब मुलहठी चूर्ण दिया गया तो ड्यूओडनल अल्सर के अपच हाइपर एसिडिटी आदि लक्षणों में भारी लाभ हुआ तथा एक्सरे वोरियम परीक्षा द्वारा बाद में पाया गया कि घाव भरने में इतनी तेजी से काम करने वाली कोई और औषधि नहीं ।

ग्राह्य अंग-
जड़, भौमिक तना ।

मात्रा-
36 ग्राम चूर्ण एक बार में । दिन में दो या तीन बार । सत्व एक बार में आधे से एक ग्राम ।

निर्धारण के अनुसार उपयोग-
रक्त वमन में दूध के साथ मुलहठी चूर्ण 1 से 4 माशे की मात्रा में अथवा मधु के साथ ।
(2) हिचकी में मुलहठी चूर्ण शहद में मिलाकर नाक में टपकाएँ तथा मुँह से 5 ग्राम दें । (3) आमाशय के रोगों में मुलहठी चूर्ण- क्वाथ या स्वरस रूप में 5 मिली लीटर से 10 मिली लीटर दिन में तीन बार । तृष्णा एवं उदरशूल में भी यह तुरंत लाभ देता है । विशेषकर आमाशयिक व्रणों में विशेष लाभकारी है । अम्लाधिक्य, अम्ल पित्त को तो शांत करता ही है ।

अन्य उपयोग-
शिरो रोगों में पीड़ा निवारण हेतु, बुद्धिवर्धन के लिए, एनीमिया (रक्ताल्पता) कास (कफ) श्वांस (दमा) तथा लेरिजाइटिस में फेफड़ों की ट्यूबर कुलेसिस में वर्ण विकारों तथा दुर्बलता में पुष्टिवर्धक होने के नाते भी इसका प्रयोग किया जाता है ।

First 3 5 Last


Other Version of this book



जड़ीबूटियों द्वारा चिकित्सा
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

चिरयुवा का रहस्योद्गाटन
Type: SCAN
Language: EN
...

चिरयुवा का रहस्योद्गाटन
Type: SCAN
Language: EN
...

चिरयुवा का रहस्योद्गाटन
Type: SCAN
Language: EN
...

चिरयुवा का रहस्योद्गाटन
Type: SCAN
Language: EN
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • जड़ीबूटियों द्वारा चिकित्सा
  • वनौषधि चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार
  • एकौषधि ही क्यों ?
  • मुलहठी (ग्लिसराइजा ग्लेब्रा)
  • आँवला (एम्बलीका आफीसिनेलिस)
  • हरड़ (टर्मिनेलिया चेब्यूला)
  • बिल्व (इगल मार्मेलोज)
  • अडूसा (एढेटोडा वेसाइका)
  • भारंगी (क्लरोडेण्ड्रान सेरेटम)
  • अर्जुन (टर्मिनेलिया अर्जुन)
  • पुनर्नवा (बोअरहविया डिफ्यूजा)
  • शंखपुष्पी (कन्वाल्व्यूलस प्लूरीकॉलिस)
  • ब्राह्मी (बकोपा मोनिएरा)
  • र्निगुण्डी (वाइटेक्स र्निगुण्डी)
  • सुष्ठी (जिंजिबर आफिसिनेल)
  • नीम (एजाडिरेक्टा इण्डिक)
  • सारिवा (हेमिडेस्मस इण्डिक)
  • चिरायता (सुआर्शिया चिरायता)
  • गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया)
  • अशोक (साराका इण्डिका)
  • गोक्षुर (ट्रकइबुलस टेरेस्टि्रस)
  • शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस)
  • असगंध (विदेनिया सॉम्नीफेरा)
  • तुलसी (ऑसीममसैक्टम)
  • हरिद्रा
  • अपामार्ग
  • घृतकुमारी
  • विभिन्न व्याधियों में अनुपान, पथ्य एवं अपथ्य
  • लहसुन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj