Books - विचार क्रांति के द्रष्टा एवं स्रष्टा
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
वैयक्तिक स्वतंत्रता के समर्थक हेनरी डेविड थोरो
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
उस समय अमेरिका में प्राच्य ग्रंथों का सबसे बड़ा संग्रह यदि कहीं था तो वह एमर्सन के पुस्तकालय में था। जब हेनरी डेविड थोरो की आयु 24 वर्ष की हुई तो उन्होंने इमर्सन के निवास स्थान पर उन्हीं के निकट दो वर्ष तक रहकर अध्ययन करने की इच्छा प्रकट की। वह समस्त प्राच्य ग्रंथों का अध्ययन करना चाहते थे।
जैसे-जैसे उनका समय अध्ययन में बीतता गया उन्हें अद्भुत प्रेरणाएं प्राप्त होती चली गईं। गीता का अध्ययन करते करते तो वह मुग्ध हो गए। उनके सोचने-विचारने का दृष्टिकोण बदलने लगा। वह वैयक्तिक स्वतंत्रता और उन्मुक्त चिंतन का समर्थन करने लगे। उनका विश्वास था कि इसके बिना मनुष्य की प्रगति नहीं हो सकती। प्राच्य दर्शन के प्रति उनकी गहरी आस्था देखकर कितने ही व्यक्ति उनकी आलोचना करने लगे और उन्हें विद्रोही कहने लगे।
भारतीय दर्शन के अध्ययन की प्रेरणा उन्हें एमर्सन से ही मिली थी। उन्होंने वेद, उपनिषद्, गीता और मनु स्मृति आदि अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया और उन्हें अपने निजी पुस्तकालय में भी खरीदकर रखा। वह अतीन्द्रिय ज्ञान को वास्तविक और इन्द्रियजन्य ज्ञान को अवास्तविक मानते थे।
भारतीय विचारधारा के गहन अध्ययन से वे उसके प्रशंसक तो बन ही गए, साथ ही उसके सिद्धान्तों पर चलने के लिए भी प्रयत्न करने लगे। उनकी चिंतन धारा आज के व्यक्ति से बहुत ऊंची थी। वह अब किसी देश विशेष के व्यक्ति न रहकर विश्व मानव की श्रेणी में आ गए थे।
सन् 1841 में जबकि अमेरिका और मैक्सिको के मध्य संघर्ष चल रहा था, थोरो ने किसी भी कर का भुगतान करने से मना कर दिया था। उस समय उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन के सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखी। पीड़ित व्यक्तियों को सविनय अवज्ञा की राह पर चलने की प्रेरणा देने वाले प्रथम व्यक्ति थोरो ही थे। इसने पीड़ितों के लिए अचूक अस्त्र का कार्य किया था। महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत में जिस सविनय अवज्ञा आंदोलन का सूत्रपात किया था उसे आविष्कारक थोरो ही थे। गांधी जी ने उनके उस सिद्धान्त से प्रेरणा प्राप्त की थी।
एक अन्वेषण की तरह अध्यात्म विज्ञान में तल्लीन रहने वाले थोरो कभी भी क्रियात्मक और व्यावहारिक जीवन से अलग नहीं हुए थे। 12 जुलाई 1817 को कौन्कर्ड में जन्म लेने वाले थोरो का चिंतन क्षेत्र भी वही स्थान रहा था। प्रकृति के सुन्दर और रमणीक वातावरण में जब वह बैठकर विचार करते तो उनमें इतनी एकाग्रता आ जाती थी कि बुद्धि से परे की अनेक बातें तक स्पष्ट हो जाती थीं। उनकी तात्विक दृष्टि भारतीय अध्यात्मवाद के तत्वज्ञानियों की भांति अति सूक्ष्म और अतीव विस्तार लिए हुए थी।
एकान्त चिंतन के लिए वन गमन करते समय थोरो अपने साथ ‘गीता’ को ले गये थे। उन्होंने वहां अनुभव किया था कि यदि चाहे, तो मनुष्य शांति, संतोष और प्रसन्नता के माध्यम से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार का विकास कर सकता है और प्रकृति का सौन्दर्य दुःखी मानव समाज के लिए रामबाण औषधि का कार्य कर सकता है। थोरो की गीता के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा थी कि वह उसे श्रेष्ठतम और पवित्रतम ग्रंथों में से एक मानते थे। उनका विश्वास था कि गीता के अतिरिक्त और कोई भी धार्मिक ग्रन्थ नहीं है जो उसके विचारों को चिंतन की गहराई तक ले जा सके।
अमेरिका के निवासी हेनरी डेविड थोरो को अब महापुरुष की तरह श्रद्धा देने लगे हैं क्यों कि भारतीय विचारधारा अमेरिकी जीवन का प्रमुख अंग बनाती जा रही है। 6 मई 1962 को जब थोरो की पुण्य शताब्दी मनाई गई तो वहां एक भव्य कांस्य मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया और भारत के तत्कालीन राजदूत बी. के. नेहरू ने उन्हें भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित की।
(यु. नि. यो. सितंबर 1971 से संकलित)
जैसे-जैसे उनका समय अध्ययन में बीतता गया उन्हें अद्भुत प्रेरणाएं प्राप्त होती चली गईं। गीता का अध्ययन करते करते तो वह मुग्ध हो गए। उनके सोचने-विचारने का दृष्टिकोण बदलने लगा। वह वैयक्तिक स्वतंत्रता और उन्मुक्त चिंतन का समर्थन करने लगे। उनका विश्वास था कि इसके बिना मनुष्य की प्रगति नहीं हो सकती। प्राच्य दर्शन के प्रति उनकी गहरी आस्था देखकर कितने ही व्यक्ति उनकी आलोचना करने लगे और उन्हें विद्रोही कहने लगे।
भारतीय दर्शन के अध्ययन की प्रेरणा उन्हें एमर्सन से ही मिली थी। उन्होंने वेद, उपनिषद्, गीता और मनु स्मृति आदि अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया और उन्हें अपने निजी पुस्तकालय में भी खरीदकर रखा। वह अतीन्द्रिय ज्ञान को वास्तविक और इन्द्रियजन्य ज्ञान को अवास्तविक मानते थे।
भारतीय विचारधारा के गहन अध्ययन से वे उसके प्रशंसक तो बन ही गए, साथ ही उसके सिद्धान्तों पर चलने के लिए भी प्रयत्न करने लगे। उनकी चिंतन धारा आज के व्यक्ति से बहुत ऊंची थी। वह अब किसी देश विशेष के व्यक्ति न रहकर विश्व मानव की श्रेणी में आ गए थे।
सन् 1841 में जबकि अमेरिका और मैक्सिको के मध्य संघर्ष चल रहा था, थोरो ने किसी भी कर का भुगतान करने से मना कर दिया था। उस समय उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन के सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखी। पीड़ित व्यक्तियों को सविनय अवज्ञा की राह पर चलने की प्रेरणा देने वाले प्रथम व्यक्ति थोरो ही थे। इसने पीड़ितों के लिए अचूक अस्त्र का कार्य किया था। महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत में जिस सविनय अवज्ञा आंदोलन का सूत्रपात किया था उसे आविष्कारक थोरो ही थे। गांधी जी ने उनके उस सिद्धान्त से प्रेरणा प्राप्त की थी।
एक अन्वेषण की तरह अध्यात्म विज्ञान में तल्लीन रहने वाले थोरो कभी भी क्रियात्मक और व्यावहारिक जीवन से अलग नहीं हुए थे। 12 जुलाई 1817 को कौन्कर्ड में जन्म लेने वाले थोरो का चिंतन क्षेत्र भी वही स्थान रहा था। प्रकृति के सुन्दर और रमणीक वातावरण में जब वह बैठकर विचार करते तो उनमें इतनी एकाग्रता आ जाती थी कि बुद्धि से परे की अनेक बातें तक स्पष्ट हो जाती थीं। उनकी तात्विक दृष्टि भारतीय अध्यात्मवाद के तत्वज्ञानियों की भांति अति सूक्ष्म और अतीव विस्तार लिए हुए थी।
एकान्त चिंतन के लिए वन गमन करते समय थोरो अपने साथ ‘गीता’ को ले गये थे। उन्होंने वहां अनुभव किया था कि यदि चाहे, तो मनुष्य शांति, संतोष और प्रसन्नता के माध्यम से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार का विकास कर सकता है और प्रकृति का सौन्दर्य दुःखी मानव समाज के लिए रामबाण औषधि का कार्य कर सकता है। थोरो की गीता के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा थी कि वह उसे श्रेष्ठतम और पवित्रतम ग्रंथों में से एक मानते थे। उनका विश्वास था कि गीता के अतिरिक्त और कोई भी धार्मिक ग्रन्थ नहीं है जो उसके विचारों को चिंतन की गहराई तक ले जा सके।
अमेरिका के निवासी हेनरी डेविड थोरो को अब महापुरुष की तरह श्रद्धा देने लगे हैं क्यों कि भारतीय विचारधारा अमेरिकी जीवन का प्रमुख अंग बनाती जा रही है। 6 मई 1962 को जब थोरो की पुण्य शताब्दी मनाई गई तो वहां एक भव्य कांस्य मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया और भारत के तत्कालीन राजदूत बी. के. नेहरू ने उन्हें भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित की।
(यु. नि. यो. सितंबर 1971 से संकलित)