निहंग सिक्ख समाज एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय का समागम
गायत्री परिवार व निहंग समाज
का मिलन एक आध्यात्मिक
संगम है। - माननीय राज्यपाल
# सिक्ख और सनातन का मिलन पराक्रम, पवित्रता और संवेदना का
मिलन है। - डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी
# सिक्ख और सनातन का संबंध अटूट है। - बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर
देव संस्कृति विश्वविद्यालय में 22 जून 2024 को सिक्ख समाज एवं सनातन संस्कृति का विशिष्ट समागम हुआ, जिसकी अध्यक्षता उत्तराखण्ड के माननीय राज्यपाल ले.ज. (से.नि.) श्री गुरमीत सिंह ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गायत्री परिवार व निहंग समाज का यह मिलन एक आध्यात्मिक संगम है। उन्होंने कहा कि यह नई पीढ़ी में साहस, शौर्य और पराक्रम जगाने का समागम है। भगवान शिव और गुरूगोविन्द सिंह जी ने नवता और भाईचारा के लिए जो संदेश दिया, वह एक समान है। इस समागम से राष्ट्र
निर्माण की एक नई धारा बहेगी। समागम का शुभारंभ माननीय राज्यपाल
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) श्री गुरमीत सिंह, देसंविवि के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या एवं फकीर सिंह खालसा के आठवें वंशज निहंग समाज के प्रतिनिधि, अयोध्या राम मंदिर लंगर वाले के प्रमुख जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने किया। इस समागम में बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर के साथ आए निहंग समाज के लगभग 45 प्रतिनिधि, देव दिया, वह एक समान है। इस समागम से राष्ट्र निर्माण की एक नई धारा बहेगी। समागम का शुभारंभ माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) श्री गुरमीत सिंह, देसंविवि के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या एवं फकीर सिंह खालसा के आठवें वंशज निहंग समाज के प्रतिनिधि, अयोध्या राम मंदिर लंगर वाले के प्रमुख जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने किया। इस समागम में बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर के साथ आए निहंग समाज के लगभग 45 प्रतिनिधि, देव संस्कृति विवि. और विभिन्न राज्यों से आये गायत्री साधक उपस्थित रहे। आरंभ में माननीय प्रति कुलपति जी ने माननीय राज्यपाल और निहंग समाज के प्रतिनिधियों का भावभरा स्वागत किया। उन्होंने अपने स्वागत उद्बोधन में सिक्ख और सनातन के मिलन को साहस, शौर्य, पराक्रम और पवित्रता, प्रखरता, संवेदना का मिलन बताया। आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने भारत को अक्षुण्ण बनाये रखने में सिक्ख समाज के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने राष्ट्र के निर्माण में गुरूओं की भूमिका का दिया, वह एक समान है। इस समागम से राष्ट्र निर्माण की एक नई धारा बहेगी। समागम का शुभारंभ माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) श्री गुरमीत सिंह, देसंविवि के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या एवं फकीर सिंह खालसा के आठवें वंशज निहंग समाज के प्रतिनिधि, अयोध्या राम मंदिर लंगर वाले के प्रमुख जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने किया। इस समागम में बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर के साथ आए निहंग समाज के लगभग 45 प्रतिनिधि, देव संस्कृति विवि. और विभिन्न राज्यों से आये गायत्री साधक उपस्थित रहे। आरंभ में माननीय प्रति कुलपति जी ने माननीय राज्यपाल और निहंग समाज के प्रतिनिधियों का भावभरा स्वागत किया। उन्होंने अपने स्वागत उद्बोधन में सिक्ख और सनातन के मिलन को साहस, शौर्य, पराक्रम और पवित्रता, प्रखरता, संवेदना का मिलन बताया। आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने भारत को अक्षुण्ण बनाये रखने में सिक्ख समाज के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने राष्ट्र के निर्माण में गुरूओं की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि यह समय सावधान होने का है। कबीर, गुरू गोविन्द सिंह, पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, स्वामी विवेकानंद जैसे गुरूओं ने इंसान को इंसान बनाने के लिए ज्ञान की गंगा बहाई है। सद्गुरू की कृपा से जन्म-जन्मांतरों के कुकर्मों का नाश होता है। बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि आज जो संबंध स्थापित हुए हैं, यह हम दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। सिक्ख और सनातन के संबंध अटूट हैं। उन्होंने कहा कि गायत्री परिवार की सहजता, पवित्रता और उसका अनुशासन नये युग के आगमन का शुभ संकेत है। समापन से पूर्व राज्यपाल जी ने प्रज्ञागीतों का (कुमांउनी), ई न्यूज लेटर रिनांसा, धन्वंतरी पत्रिका, संस्कृति संचार आदि का विमोचन किया। प्रति कुलपति जी ने माननीय राज्यपाल को स्मृति चिह्न भेंटकर सम्मानित किया। देसंविवि. में माननीय राज्यपाल श्री गुरमीत सिंह ने देश की सुरक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सैनिकों की याद में बनी शौर्य दीवार पर पुष्पांजलि अर्पित की।