श्रद्धेया शैल जीजी
श्रद्धा के आरोपण का दिन है गुरू पूर्णिमा
गुरू पूर्णिमा श्रद्धा के आरोपण का दिन, ज्ञान के पूजन का दिन, आत्म विश्लेषण का दिन है। माँ बच्चे को जन्म देती है, लेकिन जीवन जीना गुरू ही सिखाते हैं। गुरू अपने शिष्य के गुण और दोषों को अच्छी तरह समझते हैं, वह दोषों को दूर करते हैं और गुणों का अभिवर्धन करते हैं। वे अपने शिष्य की श्रद्धा की परीक्षा भी लेते हैं और उसी आधार पर शिष्यों को गुरू के अनुदान भी मिलते हैं। समर्थ गुरू रामदास ने शिवाजी को सिंहनी का दूध लाने के लिए कहा, राजा दिलीप को एक गाय की जान बचाने के लिए सिंह के समक्ष स्वयं को प्रस्तुत करना पड़ा, यह उनकी श्रद्धा की परीक्षा ही थी।
पूज्य गुरूदेव की चाह है कि हम हीरे बनें
जिनका जीवन अपने गुरू के आदेशों के पालन के लिए समर्पित हो जाता है, वह गुरू के अनुदानों को पाने का हकदार हो जाता है। परम पूज्य गुरू देव ने समाज के लिए समर्पित 10,000 हीरों के हार की चाह रखी थी। आज मैं अपने भाइयों और बहिनों से यह प्रार्थना करूँगी कि उनके मन में यह संकल्प उभरे कि परम पूज्य गुरूदेव और परम वंदनीया माताजी ने जिन हीरकों के हार की कामना की थी, उस हीरक हार के लिए पहले हीरे हम बनेंगे, उनके संकल्पों को पूरा करने के लिए हर पल लगे रहेंगे।