रक्षाबंधन : नारी सुरक्षा और नारी सशक्कतीकरण के प्रति निष्ठावान रहने के संकल्प का पर्व
सत्संग भवन में श्रावणी उपाकर्म में यज्ञोपवीत परिवर्तन करते साधकगण तथा श्रद्धेय डॉ. साहब को राखी बाँधती बहिनें
‘‘श्रावणी ज्ञानपर्व है, ऋषि परंपरा के उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा जगाने का पर्व है। यह जीवन में ब्राह्मणत्व के अभिवर्धन का पर्व है। श्रावणी देश, धर्म, समाज के प्रति समर्पण भाव के पोषण एवं अभिव्यक्ति का पर्व है।’’ अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी ने उपरोक्त संदेश के साथ गायत्री परिवार और समस्त देशवासियों को श्रावणी-रक्षाबंधन पर्व की शुभकामनाएँ दीं। इस अवसर पर उन्होंने आत्मीय परिजनों को परम पूज्य गुरूदेव एवं परम वंदनीया माताजी के जीवन-आदर्शों का अनुसरण करते हुए समाज के लिए प्रकाश स्तंभ बनने की प्रेरणा दी। श्रद्धेय ने सभी परिजनों को नारी सुरक्षा और नारी सशक्कतीकरण के प्रति जागरूक और निष्ठावान रहने के संकल्प दिलाए।
समाज में पारिवारिक भावनाएँ जगाएँ
श्रद्धेया शैल जीजी ने कहा कि रक्षाबंधन विमल प्रेम का प्रतीक है। जिस तरह इस दिन बहिनें अपनी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले अपने भाइयों को राखी बाँध कर नि:स्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति करती हैं, उसी तरह देश और समाज की रक्षा करने वाले सैनिकों, सुरक्षा बलों, अस्पतालों में सेवाएँ प्रदान करने वाले चिकित्सा कर्मियों जैसे अनेक वर्गों को भी स्नेह-सूत्र के माध्यम से आत्मीयता और कृतज्ञता का अहसास कराया जाना चाहिए।
श्रावणी : ब्राह्मणत्व के अभिवर्धन का संकल्प
इससे पूर्व शान्तिकुञ्ज में प्रात:काल श्रावणी उपाकर्म सम्पन्न हुआ। दश स्नान, यज्ञोपवीत परिवर्तन, हेमाद्रि संकल्प आदि कर्मकाण्डों के माध्यम से व्यक्तित्व में पवित्रता, प्रखरता बढ़ाने, ज्ञान- धना करने की प्रेरणाएँ दी गइर्ं। मंचासीन पुरोहितों ने परम पूज्य गुरूदेव के नैष्ठिक शिष्य के रूप में ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ के सूत्र को अपनाते हुए जीवन में ब्राह्मणत्व को निरंतर बढ़ाते रहने और वृक्षारोपण के संकल्प कराए। इस अवसर पर सभी साधकों को भारत को अखण्ड और विकसित भारत के निर्माण में अधिक से अधिक योगदान देने के लिए संकल्प दिलाए गए।
यज्ञ :
श्रावणी उपाकर्म के पश्चात् शान्तिकुञ्ज की 27 कुण्डीय यज्ञशाला में हजारों कार्यकर्त्ता, शिविरार्थी साधक भाई-बहिनों ने यज्ञ किया। अखण्ड दीप के निकट गुरू चरण पादुकाओं पर और गुरू स्मारक ‘प्रखर प्रज्ञा-सजल श्रद्धा’ पर रक्षा सूत्र अर्पित करते हुए सभी ने परम पूज्य गुरूदेव एवं परम वंदनीया माताजी के आशीर्वाद की कामना की।
रक्षाबंधन :
प्रणाम के क्रम में बहिनेें श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या जी को राखी बाँधते हुए और भाई श्रद्धेया शैल जीजी से रक्षासूत्र प्राप्त करते हुए स्वयं को धन्य अनुभव करते रहे। रक्षासूत्र बंधन का यह क्रम अपराह्नकाल तक चलता रहा। दिनभर रक्षाबंधन के पावन गीतों से सभी के मन में पर्व का उल्लास छाया रहा।
दीपयज्ञ :
सायंकाल ब्रह्मवादिनी बहिनों द्वारा विशेष दीपयज्ञ का आयोजन किया गया।
वृक्षारोपण :
श्रावणी पर्व के पावन अवसर पर शान्तिकुञ्ज आए साधकों ने उद्यान विभाग से तरू प्रसाद ग्रहण किया। एक हजार से अधिक पौधे नि:शुल्क वितरित किए गए।