दिल्ली में आयोजित विराट 251 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में शान्तिकुञ्ज प्रतिनिधि आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने दिया संदेश
अखण्ड दीप की दिव्य ज्योति को घर-घर पहुँचाना है, हमें हर मनुज को देव बनाना है
द्वारका सेक्टर 8, दिल्ली में 20 से 24 नवंबर 2024 में आयोजित 251 कुण्डीय श्री गायत्री महायज्ञ, ज्योति अब ज्वाला बनेगी के संकल्प और संदेश के साथ सम्पन्न हुआ। नवयुग की गंगोत्री की ऊर्जा और युग संदेश लेकर पहुँचे युवा युगनायक आदरणीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने इस कार्यक्रम को जन्मशताब्दी की वेला में आयोजित हुआ विशिष्ट कार्यक्रम बताया। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य अखंड दीप की दिव्य ज्योति को हर घर तक पहुँचाना है, हर मनुष्य को देवता बनाना है, ताकि वह समाज के नवनिर्माण में योगदान दे सके। शान्तिकुञ्ज प्रतिनिधि ने गायत्री और यज्ञ को जीवन और जगत की हर समस्या का समाधान बताया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2026 से 2050 तक की विशेष साधनात्मक वेला मिशन के वैश्विक विस्तार की दृष्टि से स्वर्णिम अवसर है। इस दिनों असुरता के बढ़ते आतंक को निरस्त करने के लिए करोड़ों साधकों को अपने तप से युगशक्ति को प्रखर और प्राणवान बनाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर डॉ. नरेश त्रेहन-चेयरमैन, मेदांता हॉस्पिटल और डॉ. अरविंद कुमार चेयरमैन, इंस्टीट्यूट अॉफ चेस्ट सर्जरी, मेदांता हॉस्पिटल भी उपस्थित थे। उन्होंने गायत्री परिवार के इस प्रयास को सराहते हुए कहा कि यह आयोजन निश्चित ही उज्ज्वल भविष्य का संकेत है
कलश यात्रा से हुआ शुभारंभ
महायज्ञ का शुभारंभ 20 नवंबर को भव्य कलश यात्रा के साथ हुआ। दो स्थानों से कलश यात्रा आरंभ हुई। पहली यात्रा पालम के शिव मंदिर से एवं दूसरी द्वारका सेक्टर 7 से आरंभ होकर यज्ञ स्थल के निकट समाहित हो गई। दो कि.मी. लम्बी इस यात्रा की अगुवानी धवल घोड़े पर विराजमान हाथ में तिरंगा लिए भारत माता एवं हाथ में तलवार लिए झाँसी की रानी के रूप में मातृशक्ति कर रही थी। यज्ञ स्थल पर भव्य आरती के साथ कलश यात्रा का स्वागत हुआ।
आकर्षण का केन्द्र रही प्रदर्शनी
यज्ञ स्थल पर विराट प्रदर्शनी लगाई गई थी। इसमें परम पूज्य गुरूदेव का जीवन दर्शन, गायत्री परिवार का देव संस्कृति दिग्विजय अभियान, गायत्री और यज्ञ का दर्शन आदि बड़ी कलात्मकता के साथ दर्शाया गया था, जो सभी के आकर्षण का केन्द्र बना। प्रतिदिन हजारों लोगों ने इसे देखा।
एक विशिष्ट प्रयोग
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का यह विशिष्ट महायज्ञ परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए विशिष्ट प्रयोग के साथ सम्पन्न हुआ। उन दिनों राजधानी क्षेत्र में हो रहे अत्यधिक प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यज्ञकुण्डों पर दीप प्रज्वलित कर देवताओं का आह्वान किया गया, आहुतियाँ दी गइर्ं। इस महायज्ञ में परम पूज्य गुरूदेव की उक्ति ‘कुण्डीय यज्ञ नहीं, मुण्डी यज्ञ’ चरितार्थ हो रही थी। परिस्थितियों से तालमेल बिठाते हुए भावयज्ञ सम्पन्न हुआ। यज्ञ के सूक्ष्म स्वरूप के साथ जुड़ी उदात्त भावनाओंने इसे अभूतपूर्व बना दिया था। देश-विदेश के अनेक शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ एवं विशिष्ट गणमान्यों ने इस यज्ञ में भाग लिया।