लोकसंस्कृति के पुनर्जीवन की दिशा में एक ऐतिहासिक कार्यक्रम
देसंविवि में आयोजित हुआ देव डोली समागम
देव संस्कृति विश्वविद्यालय ने उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। देसंविवि में 20 नवम्बर को पहली बार देवभूमि की परंपराओं में चले आ रहे डोली समागम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय जी ने इस समागम पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि अध्यात्म के अंतिम शिखर की स्मृति दिलाने के लिए आज देवी-देवता स्वयं हमारे बीच पधारे हैं। यही गायत्री परिवार का परम लक्ष्य है—मनुष्य के भीतर देवत्व का उदय करना और उसे उसकी सर्वोच्च चेतना से जोड़ना। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का पुनर्निर्माण और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सेतु है। मृत्युंजय सभागार में आयोजित इस भव्य समागम में मुख्य अतिथि श्रीमती ऋतु खंडूरी, विधानसभा अध्यक्ष उत्तराखंड और आध्यात्मिक गुरू स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज ने भी अपने प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किए। समारोह में उत्तराखंड की अनमोल संस्कृति को सजीव रूप से प्रस्तुत किया गया, जिसमें देव डोलियों का भव्य आगमन और पूजा अनुष्ठान मुख्य आकर्षण रहे। विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, संकाय सदस्यों और गणमान्य अतिथियों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया।
देव डोली समागम की पावन परम्परा
देव डोली समागम देवभूमि उत्तराखण्ड की अत्यंत प्राचीन परम्परा है। शरद काल में पर्वतीय अंचल में अत्यधिक शीत के कारण वहाँ के देवालयों में प्रतिष्ठित देवताओं के विग्रह समारोहपूर्वक निचले क्षेत्रों में लाये जाते हैं। उन्हें डोली (पालकी) में स्थापित कर यात्राएँ निकाली जाती हैं। इनके प्रति लोगों की अथाह आस्था है। अलग-अलग तीर्थाें, नगरों में इन डोलियों का समागम भी होता है, जो देवभूमि की सांस्कृतिक चेतना के उत्थान की दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता है।