बाड़मेर में दीपयज्ञ की अलौकिक आभा: डॉ. चिन्मय पंड्या जी की प्रेरणादायी उपस्थिति।
बाड़मेर में 22 से 25 दिसंबर 2024 तक आयोजित 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ में अपने चौथे दिन एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत किया, जब 11,000 दीपों से जगमगाते दीपयज्ञ का आयोजन हुआ।
दीपयज्ञ की इस विशिष्ट घड़ी में देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज के प्रतिकुलपति, आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को और भी विशेष बना दिया। सबसे पहले डॉ. पंड्या जी गायत्री शक्ति पीठ बाड़मेर पहुंचे और माँ गायत्री का पूजन किया। तत्पश्चात् उन्होंने 108 कुंडीय महायज्ञ के दीपमहायज्ञ के अवसर पहुंचकर क्षेत्र के गणमान्य अतिथियों, प्रबुद्ध जनों और गायत्री परिजनों को संबोधित किया।
इस आयोजन के माध्यम से डॉ. पंड्या जी ने समाज में सकारात्मकता, सेवा, और सद्भाव का संदेश दिया। उन्होंने उपस्थित जनसमूह को प्रेरित करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति दीपयज्ञ के भाव को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाए। उन्होंने कहा, “मनुष्य का जीवन ऐसा है जिसमें सौभाग्य अनेकों रूपों में आता है, और इनमें से कुछ सौभाग्य ऐसे होते हैं जो लौकिक, भौतिक और सांसारिक दृष्टि से हमारे लिए मूल्यवान होते हैं। उदाहरण स्वरूप, जब किसी व्यक्ति की नौकरी लग जाती है, पदोन्नति होती है, या घर में किसी की शादी हो जाती है, तो यह सब सौभाग्य माने जाते हैं। लेकिन, एक और प्रकार का सौभाग्य होता है, जो समष्टि और समाज के लिए लाभकारी होता है। वह सौभाग्य, जो जीवन के उद्देश्य और समाज के कल्याण के लिए है, अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।”
डॉ. पंड्या जी ने अंत में संत कबीर के उद्धरण के माध्यम से गुरु की महिमा को समझाया और कहा, हम सौभाग्यशाली हैं कि ऐसे गुरु से जुड़े हैं जिनका आगमन स्वयं धरती पर एक विशिष्ट कारण से हुआ। आज हम गुरु से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं, और यह संयोग नहीं, बल्कि अनगिनत पुण्यों का परिणाम है। सदगुरु हमारे जीवन को परिमार्जित करते हैं और हमें जीवन के उच्चतम उद्देश्य की ओर प्रेरित करते हैं”
11,000 दीपों से प्रज्वलित इस यज्ञ ने बाड़मेर की पवित्र भूमि पर मानो एक स्वर्गिक आभा बिखेर दी।
यह आयोजन समाज सेवा, आस्था और आध्यात्मिकता के समन्वय का एक अद्वितीय उदाहरण बना, जहां डॉ. चिन्मय पंड्या जी के विचारों और उनके मार्गदर्शन ने इसे एक ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान किया। इससे पूर्व उन्होंने मार्ग में कपूरड़ी स्थित पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य स्मृति उपवन का अवलोकन किया और परिजनों से भेंट की।