गायत्री परिवार न केवल एक संगठन है, बल्कि एक चेतना है – एक ऐसा आंदोलन जो मनुष्य को उसकी दिव्यता का बोध कराता है और समाज को श्रेष्ठता की दिशा में अग्रसर करता है। इसका आरंभ किसी राजनीतिक या बाहरी प्रेरणा से नहीं, अपितु एक तपस्वी महापुरुष के आत्मबोध और युगदृष्टि से हुआ – जो था युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का संकल्प।
एक साधक की एकांत साधना से आंदोलन तक
गायत्री परिवार की नींव का इतिहास साधना, तप, आत्मपरिष्कार और युगबोध की कथा है। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने महज 15 वर्ष की आयु में गायत्री मंत्र की 24 लाख मंत्र जपों से पहला महापुरश्चरण प्रारंभ करके अपने संकल्प की शुरुआत की। इसके पश्चात् आपने पूरे 24 वर्षों में 24 महापुरश्चरणों (प्रत्येक में 24 लाख जप) के माध्यम से एक ऐसा तेजस्वी और तपस्वी व्यक्तित्व निर्मित किया, जो आगे चलकर युग परिवर्तन का आधार बना।
1943: युग निर्माण का संकल्प और "अखण्ड ज्योति" का प्रकाशन
सन 1943 में आपने अपने जीवन का प्रथम सार्वजनिक क्रांतिकारी कदम उठाया — मासिक पत्रिका “अखण्ड ज्योति” का प्रकाशन। यह न केवल आध्यात्मिक लेखों की पत्रिका थी, बल्कि विचार क्रांति का सशक्त माध्यम बन गई। इसी के माध्यम से आपने जीवन साधना, व्यक्तित्व निर्माण, समाज सेवा और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण जैसे विचारों को जनमानस तक पहुँचाया।
1953: गायत्री तपोभूमि, मथुरा की स्थापना
सन् 1953 में आपने अपने तप और साधना की स्थली के रूप में गायत्री तपोभूमि, मथुरा की स्थापना की। यहाँ से युग निर्माण योजना का विधिवत आरंभ हुआ। आपने स्पष्ट कहा –
"हम केवल उपासना नहीं, साधना और आराधना के भी पक्षधर हैं।"
यहाँ से हजारों साधकों को तप, साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा के द्वारा जीवन का कायाकल्प करने की शिक्षा मिली।
1971: शांतिकुंज की स्थापना – एक नये चरण की शुरुआत
सन् 1971 में हरिद्वार के पावन तीर्थ पर “शांतिकुंज” की स्थापना हुई, जो आज गायत्री परिवार का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय है। यहीं से युग निर्माण योजना को संगठित रूप मिला और एक चेतना परिवार का जन्म हुआ — जिसे आज "अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP)" कहा जाता है।
आरंभिक उद्देश्य और दर्शन
गायत्री परिवार का आरंभ केवल धार्मिक साधना या व्यक्तिगत मोक्ष की साधना हेतु नहीं हुआ था। इसके पीछे गहरा सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय उद्देश्य था। पं. श्रीराम शर्मा जी ने कहा —
"हमारी साधना का उद्देश्य आत्मोन्नति के साथ समाज का जागरण है।"
इसका मूल आधार बना –
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गायत्री उपासना – आत्मशुद्धि के लिए,
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यज्ञ साधना – वातावरण की शुद्धि के लिए,
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स्वाध्याय और सेवा – समाज के उत्थान के लिए।
एक व्यक्ति से परिवार तक – और फिर जनआंदोलन
एक व्यक्ति द्वारा प्रारंभ यह संकल्प धीरे-धीरे “गायत्री परिवार” का रूप लेने लगा। साधकों का एक समर्पित समूह इस कार्य से जुड़ता गया, और फिर यह परिवार बन गया – एक भावनात्मक, वैचारिक और आध्यात्मिक परिवार, जिसकी बुनियाद जाति, पंथ या भाषा पर नहीं, बल्कि समान लक्ष्य, समान मूल्य और समान भावना पर टिकी थी।
नवयुग की चेतना का प्रसार
आज गायत्री परिवार देश-विदेश में लाखों साधकों, कार्यकर्ताओं और सेवकों के रूप में कार्य कर रहा है। इसके द्वारा चलाए जा रहे प्रमुख कार्य हैं:
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युग साहित्य का प्रचार-प्रसार,
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बाल संस्कार शालाएँ,
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व्यक्तित्व एवं नेतृत्व निर्माण शिविर,
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पर्यावरण संरक्षण हेतु यज्ञ अभियान,
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नारी जागरण, नशा मुक्ति और ग्राम विकास।
गायत्री परिवार का आरंभ किसी औपचारिक उद्घाटन या प्रचार से नहीं, बल्कि तप, त्याग, साधना और युगदृष्टि से हुआ। यह उस युगऋषि की तपश्चर्या का प्रतिफल है, जिन्होंने स्वयं को ईश्वर के युगधर्म में समर्पित कर दिया। आज यह परिवार मानवता की सेवा, संस्कृति की पुनर्स्थापना और श्रेष्ठ समाज के निर्माण हेतु कार्यरत है।
गायत्री परिवार का आरंभ एक विचार था,
फिर एक साधना बना,
फिर एक परिवार बना,
और आज – एक युग परिवर्तन का महासंगठन बन चुका है।