आज का समाज अनेक प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है—मानव मूल्य क्षीण हो रहे हैं, रिश्तों की आत्मीयता कम हो रही है, और जीवन की दिशा कहीं खो-सी गई है। इन परिस्थितियों में एक गहन पुनर्विचार की आवश्यकता है—ऐसी विचारधारा की, जो समाज को उसकी आत्मा से जोड़ सके; ऐसे प्रयासों की, जो जीवन को पुनः संतुलन, संवेदना और सद्भाव के मार्ग पर ला सकें।
गायत्री परिवार का कार्य इसी चेतना को केंद्र में रखकर विकसित हुआ है। यह कोई आंदोलन मात्र नहीं, अपितु एक ऐसी आध्यात्मिक-सांस्कृतिक पहल है, जो समाज के भीतरी ताने-बाने को सुधारने की दिशा में कार्य करती है। इसके मूल में यह विचार है कि समाज की समस्याओं का स्थायी समाधान तब सम्भव है जब व्यक्ति स्वयं सुधरे, और अपने जीवन मूल्यों को ऊँचा उठाए।
इस विचारधारा की जड़ें भारतीय संस्कृति के उस आध्यात्मिक तात्त्विक दृष्टिकोण में हैं, जिसमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” और “आत्मवत् सर्वभूतेषु” जैसे सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने का आग्रह है। समाज को एक परिवार मानते हुए समता, सह-अस्तित्व और सहयोग की भावना को जीवन के हर क्षेत्र में स्थापित करना इस कार्य का मूल लक्ष्य है।
सामाजिक सुधार की दिशा में किए गए प्रयासों में व्यसनमुक्ति, अंधविश्वास उन्मूलन, नारी जागरण, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम विकास, संस्कार अभियान, शिक्षा विस्तार, तथा आत्मनिर्भरता को विशेष प्राथमिकता दी गई है। इन प्रयासों का उद्देश्य केवल सेवा नहीं, बल्कि स्वाभिमान के साथ समाज को अपने पैरों पर खड़ा करना रहा है।
विशेष रूप से नारी जागरण को इस दृष्टि से देखा गया है कि समाज की आधी आबादी यदि शिक्षित, जागरूक और समर्थ बनती है, तो परिवर्तन की गति स्वतः तीव्र हो जाती है। इसी सोच के अंतर्गत नारी को पूज्या नहीं, बल्कि भागीदार और सृजन-शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
इन सबके मूल में विचार-क्रांति है—वह क्रांति जो किसी बाहरी संघर्ष से नहीं, बल्कि आंतरिक जागरण से उपजती है। पुस्तकें, साहित्य, संस्कार केंद्र, युवा प्रकल्प, सेवा गतिविधियाँ—ये सब माध्यम हैं उस चेतना को फैलाने के, जो व्यक्ति को अपने कर्तव्य, दायित्व और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराती है।
गायत्री परिवार का यह प्रयास किसी विशेष वर्ग, संप्रदाय या मत के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए है। उद्देश्य यह है कि मनुष्य अपने भीतर के देवत्व को पहचाने और उस आलोक से समाज को आलोकित करे। यही वह राह है जिससे भविष्य का उज्ज्वल और सुसंस्कृत समाज आकार ले सकता है।
समाज के समग्र विकास की कल्पना तब साकार हो सकती है जब जीवन के सभी पहलुओं—व्यक्ति, परिवार और समाज—का संतुलित रूप से विकास हो। गायत्री परिवार का दृष्टिकोण सदैव से ही समग्र और सर्वांगीण रहा है। यह मान्यता रही है कि शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, नारी सशक्तिकरण, ग्राम विकास जैसे क्षेत्रों में जब चेतना जागेगी, तभी नवयुग का आधार बन पाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए कई रचनात्मक योजनाएँ गत दशकों से संचालित की गई हैं।
शिक्षा की दिशा में प्रयास
शिक्षा केवल डिग्री अर्जित करने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए। इसी दृष्टिकोण के साथ हमने नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों से युक्त संस्कारयुक्त शिक्षा पर बल दिया है। शांतिकुंज, हरिद्वार से संचालित हो रही विभिन्न शिक्षण योजनाएँ—जैसे देव संस्कृति विश्वविद्यालय, बाल संस्कार शालाएँ, प्रशिक्षण शिविर—इस सोच को साकार रूप दे रही हैं। यहाँ शिक्षा को जीवनोपयोगी, सृजनात्मक और आत्मनिर्भरता की दिशा में उन्मुख किया गया है।
नारी सशक्तिकरण
भारतीय संस्कृति में नारी को ‘शक्ति’ कहा गया है, लेकिन समाज ने उसे लम्बे समय तक दबाया और सीमित किया। गायत्री परिवार इस स्थिति को बदलने के लिए नारी जागरण को एक विशेष अभियान के रूप में चलाता रहा है। महिलाओं के लिए शिक्षा, आत्मनिर्भरता, नेतृत्व और सांस्कृतिक चेतना को बढ़ावा देने हेतु संगठित प्रयास किए गए हैं। “युग निर्माण में नारी की भूमिका” जैसी योजनाएँ नारी को समाज में सक्रिय भागीदार बनाने का कार्य कर रही हैं।
युवा जागरण
युवा शक्ति राष्ट्र और संस्कृति का भविष्य है। यदि युवाओं को सही दिशा मिल जाए, तो वे समाज की सबसे बड़ी परिवर्तनकारी शक्ति बन सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रज्ञायुग युवाशक्ति अभियान के अंतर्गत अनेक प्रशिक्षण शिविर, युवा जागरण यात्रा, तथा सेवा-प्रकल्पों का संचालन किया जा रहा है। यह प्रयास उन्हें राष्ट्र-निर्माण के कार्यों में संलग्न करने और उच्च चरित्र के निर्माण की प्रेरणा देता है।
संस्कार परंपरा
संस्कार भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा हैं। आज जब पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों में क्षरण देखा जा रहा है, तब संस्कार-आंदोलन समय की महती आवश्यकता बन गया है। बाल संस्कार शिविर, गृह संस्कार, यज्ञोपवीत, नामकरण, विद्यारंभ, विवाह संस्कार जैसे वैदिक परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में पुनः जीवंत किया गया है। इन आयोजनों के माध्यम से व्यक्ति और परिवार के भीतर एक नैतिक अनुशासन और आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है।
स्वास्थ्य संरक्षण
स्वास्थ्य का अर्थ केवल रोग न होना नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा का सम्यक संतुलन है। गायत्री परिवार ने प्राचीन आयुर्वेद, योग, प्राणायाम और सात्विक जीवन शैली को पुनः जाग्रत करते हुए जनमानस को स्वस्थ जीवन के सूत्र सिखाए हैं। नियमित योग शिविर, जल चिकित्सा, आयुर्वेदिक परामर्श, तथा स्वच्छता अभियान के द्वारा स्वास्थ्य चेतना को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया गया है।
ग्राम प्रबंधन
भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। यदि गाँव सशक्त होंगे तो देश स्वयं ही मजबूत होगा। इस विश्वास के साथ ग्राम प्रबंधन एवं विकास की दिशा में व्यावहारिक योजनाएँ बनाई गई हैं—जैसे कि नशा मुक्ति, स्वच्छता अभियान, कुपोषण हटाओ, सौर ऊर्जा और प्राकृतिक खेती का प्रोत्साहन। साथ ही स्थानीय नेतृत्व को सशक्त कर आत्मनिर्भर ग्राम निर्माण की ओर कदम बढ़ाए गए हैं।
स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज
हमारा समग्र उद्देश्य है—स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज की स्थापना। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने जीवन को तप, त्याग, सेवा और सद्भाव से जोड़ सके। यही सच्चा आध्यात्म है, यही युगधर्म है। गायत्री परिवार का संपूर्ण प्रयास इसी दिशा में केंद्रित रहा है—कि व्यक्ति अपने भीतर जागे, परिवार में सामंजस्य लाए, और समाज को सुसंस्कृत दिशा में ले जाने का माध्यम बने।
यह सारे प्रयत्न किसी संस्था के प्रचार नहीं, बल्कि एक युगबोध के विस्तार हैं। उद्देश्य है कि समाज अपने मूल स्वरूप को पहचाने, और नवसृजन के लिए स्वयं को तैयार करे। युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित यह चेतना अभियान निरंतर उस लक्ष्य की ओर अग्रसर है जहाँ मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो सके।