विचारों का अवतार
इस वक्त लोगों की इच्छा हो रही है कि भगवान अवतार लें जिसे मैं पुरानी भाषा में अवतार प्रेरणा कहता हूँ। तुलसीदास ने वर्णन किया है कि पृथ्वी संत्रस्त होकर गोरूप धारण कर भगवान से प्रार्थना करती है कि हे भगवन् आइये, हमें बचाइये। भारत को आज मैं उस मनःस्थिति में देख रहा हूँ। जिस मनःस्थिति में अवतार की आकाँक्षा होती है। यह जरूरी नहीं है कि मनुष्य का अवतार होगा । विचार का भी अवतार होता है, बल्कि विचार का ही अवतार होता है। लोग समझते हैं कि रामचन्द्र एक अवतार थे, कृष्ण,बुद्ध, अवतार थे। लेकिन उन्हें हमने अवतार बनाया है। वे आपके और मेरे जैसे मनुष्य थे ।
लेकिन उन्होंने एक विचार संचार सृष्टि में किया और वे उस विचार के मूर्ति रूप बन गए, इसलिए लोगों ने उन्हें अवतार माना। हम अपनी प्रार्थना के समय लोगों से सत्य प्रेम, करुणा का चिन्तन करने के लिए कहते हैं। भारत की तरफ ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो जहाँ सत्य शब्द का उच्चारण होता है वहाँ असंख्य लोगों को प्रभु राम का स्मरण होता है। जहाँ प्रेम शब्द का उच्चारण होता है वहाँ करोड़ों को कृष्ण भगवान की याद आती है और जहाँ करुणा शब्द का उच्चारण होता है वहाँ गौतम बुद्ध का स्मरण होता है। राम, कृष्ण और बुद्ध ये ही तीन अवतार हिन्दुस्तान में माने गए हैं लेकिन वे तो निमित्तमात्र हैं। दरअसल भगवान ने सत्य, प्रेम, करुणा के रूप में अवतार लिया था।
भगवान किसी न किसी गुण या विचार के रूप में अवतार लेता है और उन गुणों या विचार को मूर्त रूप देने में, जिनका अधिक से अधिक परिश्रम लगता है उन्हें जनता अवतार मान लेती है। यह अवतार मीमाँसा है। अवतार व्यक्ति का नहीं विचार का होता है और विचार के वाहन के तोर पर मनुष्य काम करते हैं। किसी युग में सत्य की महिमा प्रकट हुई, किसी में प्रेम की, किसी में करुणा की तो किसी में व्यवस्था की। इस तरह भिन्न भिन्न गुणों की महिमा प्रकट हुई है।
सन्त बिनोवा
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1963 पृष्ठ 1
Recent Post
प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्नता का राजमार्ग (भाग 4)
बुराई की शक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रबलता के साथ टक्कर लेती है। इसमें सन्देह नहीं है। ऐसे भी व्यक्ति संसार में हैं जिनसे ‘‘कुशल क्षेम तो है’’ पूछने पर ‘‘आपको क्...
घृणा का स्थान
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा का ही भय है, जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है। यह क्रोध ही है,...
अनेकता में एकता-देव - संस्कृति की विशेषता
यहाँ एक बात याद रखनी चाहिए कि संस्कृति का माता की तरह अत्यंत विशाल हृदय है। धर्म सम्प्रदाय उसके छोटे-छोटे बाल-बच्चों की तरह हैं, जो आकृति-प्रकृति में एक-दूसरे से अनमेल होते हुए भी माता की गोद में स...
प्रगति के पाँच आधार
अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई।
(1) अपना दायरा बढ़ाओ, संकीर्ण स्वार्थ परता से आगे बढ़कर सामाजिक बनो।
(...
कुसंगत में मत बैठो!
पानी जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे बुरे लोगों के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैं, लेकिन अच्छे व्यक्ति बुरे आ...
अहिंसा और हिंसा
अहिंसा को शास्त्रों में परम धर्म कहा गया है, क्योंकि यह मनुष्यता का प्रथम चिन्ह है। दूसरों को कष्ट, पीड़ा या दुःख देना निःसंदेह बुरी बात है, इस बुराई के करने पर हमें भयंकर पातक लगता है। और उस पातक ...
अहिंसा और हिंसा (भाग 2)
बड़े बुद्धिमान, ज्ञानवान, शरीरधारी प्राणियों को दुख देने, दण्ड देने या मार डालने या हिंसा करने के समय यह विचारना आवश्यक है। कि यह दुख किस लिए दिया जा रहा है। सब प्रकार के दुख को पाप और सब प्रकार के...
अहिंसा और हिंसा (अंतिम भाग)
यह सोचना गलती है कि दुख देना हिंसा और आराम देना अहिंसा है। तत्वतः काम के परिणाम और करने वाले की नियत के अनुसार हिंसा अहिंसा का निर्णय होना चाहिये। तात्कालिक और क्षणिक दुख-सुख में दृष्टि को अटकाकर उ...
विचार एक मजबूत ताकत
शुभ सात्विक और आशापूर्ण विचार एक वस्तु है। यह एक ऐसा किला है, जिसमें मनुष्य हर प्रकार के आवेगों और आघातों से सुरक्षित रह सकता है। लेकिन मनुष्य को उत्तम विचार ही रखने और अपनी आदत में डालने अभ्यास नि...
प्रेम या अपनत्व
अपनों के लिए स्वभावत: उनके दोषों को छिपाने और गुणों को प्रकट करने की आदत होती है। कोई भी पिता अपने प्यारे पुत्र के दोषों को नहीं प्रकट करता है। वह तो उसकी प्रशंसा के पुल ही बाँधता रहता है। दुर्गुणी...