विचारों का केन्द्र बिंदु- ’क्यों’?
जीवन एक विकट समस्या है इसमें न जाने कितने उतार- चढ़ाव आते हैं और स्मृति में विलीन हो जाते हैं। इनमें से कुछ ही विचार थोड़े समय के लिए हमारी स्मृति में रह पाते हैं पर उन पर भी हम सरसरी नजर भर डाल लेते हैं, गहराई से नहीं सोच पाते अन्यथा जीवन सबसे अधिक अध्ययन का विषय एवं ज्ञान का भंडार है। जीवन की प्रत्येक घटना के पीछे कार्यकारण परम्परा का अद्भुत रहस्य छिपा है। विचार करने पर छोटी से छोटी साधारण घटना जीवन का काया पलट कर देती है और विचार नहीं करने पर बड़ी से बड़ी घटनाओं का भी कोई असर नहीं हो पाता।
कथाओं में हम प्रायः पढ़ते हैं कि अमुक व्यक्ति को बादलों के रंग देखकर वैराग्य हो गया। अमुक को रोगी, दीन, वृद्ध एवं मृतक को देखकर संसार से उदासीनता हो गई, पर हम इनको रात दिन देखते है। फिर भी हम पर इनका असर नहीं होता, आखिर ऐसा क्यों? इस पर विचार करना आवश्यक है। एक घोर पापी किसी महात्मा के एक उपदेश वाक्य से सजग हो उठा पर हमने उनके वाक्यों को अनेक बार पढ़ा और मनन किया फिर भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। एक ही बात एक को भोग की ओर आकर्षित करने वाली होती है और दूसरे को त्याग की ओर। इससे स्पष्ट है कि वह शक्ति घटनाओं में नहीं, हमारे विचारों में ही है।
विचारों से ही मनुष्य बनता है और उन्हीं से बिगड़ता भी है। अतः जीवन की हर एक समस्या- हर एक घटना पर, चाहे वह कितनी ही तुच्छ और साधारण क्यों न जान पड़े मनन करना आवश्यक है। उसका महत्त्व समझना आवश्यक है। प्रत्येक कार्य के कारण पर विचार किया जाय कि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? और ऐसा नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ?
अमुक मनुष्य कार्य कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता? उसमें और मुझमें किन- किन बातों का क्या अन्तर है? मेरी और उसकी कार्य प्रणाली में कहाँ सामंजस्य हैं? कहाँ विषमता है? मेरी त्रुटि कहाँ है? मैं कैसे वैसा कर सकता हूँ या बन सकता हूँ? मैंने अमुक समय में वह कार्य किया तो क्यों किया? मुझे अमुक विचार आया तो क्यों आया? और अमुक कार्य या विचार नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ? इस प्रकार “क्यों” की विचारधारा को आगे बढ़ाते जाने पर नया प्रकाश मिलता जायगा। नई समस्याओं के नये हल मिलेंगे और नए हलों के लिये नई समस्याएँ। क्यों एवं कैसे- विचारों के विकास का मूल मंत्र है उसे अपना कर आप लाभ उठाइये, विचारक बनिए।
अखण्ड ज्योति-अप्रैल 1949 पृष्ठ 12
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