आस्तिकता
मित्रो ! आस्तिकता सच्ची शक्ति, सच्चा जीवन तथा सच्चा धर्म है। रामायण में श्रद्घा को भवानी और शिव को विश्वास की उपमा दी है और कहा है कि इन दोनों के बिना हृदय में विराजमान होते हुए भी इष्ट देव का दर्शन, अनुग्रह नहीं होता। इससे प्रकट है कि जितनी किसी देवता या मंत्र में शक्ति है उसकी तुलना में सघन श्रद्घा किसी प्रकार कम नहीं पड़ती। किसी कार्य की गरिमा के प्रति श्रद्घा रखते हुए सच्चे मन और पूरे परिश्रम के साथ जुट जाना सफलता का सुनिश्चित पथ प्रशस्त करना है।
शरीर में सत्कर्म, मन में सद्विचार और अन्त:करण में सदभाव की प्रेरक शक्ति को गायत्री कह सकते हैं। कुंडलिनी आद्यशक्ति है। कुशल गुरु के मार्गदर्शन में संभव हुए उसके उत्थान से ईश्वर दर्शन, आत्मबल जैसी जिज्ञासाएँ तो शांत होती ही हैं; शरीर, मन, प्राण और भावनाओं में ऐसे उच्चस्तरीय परिवर्तन होते हैं कि व्यक्ति साधारण न रहकर असाधारण स्तर का बन जाता है। वह नाना प्रकार की सिद्घियों और विभूतियों का स्वामी हो जाता है। उसकी बात लोग ध्यान से सुनते हैं। उसकी वाड़ी में ओज और चेहरे पर तेज आ जाता है। उसके हर कार्य में सुन्दरता और सुव्यवस्था झलकने लगती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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