Magazine - Year 1940 - Version 2
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Language: HINDI
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मन अन्नमय है। जैसा हम भोजन खायेंगे वैसा ही अपने मन को बना लेंगे। इसीलिये भोजन के विषय में बहुत सावधान रहना चाहिए।
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आँखों से न देखने के कारण यह न कहो कि ईश्वर नहीं है। वह हर समय तुम्हारे पास है ईश्वर के वही काम है जो तुम्हें वैभव की ओर लेजा कर आनंदित कर देते हैं और तुम्हारी प्रत्येक ग्रंथि सुलझ जाती है। तुम उस ईश्वर को अपने साथ अनुभव करने लगेंगे तो फिर किसी पाप में नहीं लग सकते और उसी के सहारे काम करते-करते अपनी अमरता को प्राप्त कर लोगे।
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स्वप्नों को कोरा दिमागी काम न समझो ये तुम्हारे अच्छे या बुरे विचारों के सूचक हैं इनमें तुम्हारा भविष्य भरा हुआ है।
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इन मौनावस्था में बीते हुए विचारों का मनन किया करते हैं और अच्छे बुरे की पहचान भी होती रहती हैं क्योंकि जब बाहर से विचारों का आगमन बन्द हो जाता है।