Magazine - Year 1940 - Version 2
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शिथिलासन
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(ले0-श्री जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, नरायना)
राज योग और हठ योग से संबंधित सैंकड़ों प्रकार के आसन आजकल प्रचलित हैं। इनका अभ्यास करने और सिद्धि प्राप्त करने में काफी समय भी लग जाता है तब इनका लाभ प्रतीत होता है। कोई आसन किसी प्रकार की प्रकृति के व्यक्ति के लिए अनुपयुक्त भी हो सकता है और यदि ऐसे ही अनुपयुक्त आसन का चुनाव किसी ने अपने लिए कर लिया है तो वह हानिकारक ही होगा। शीर्षासन करके मस्तिष्क सम्बन्धी रोग मोल ले लेने वाले कई व्यक्ति देखे गये हैं। मेरा तात्पर्य यहाँ किसी आसन के मूल सिद्धान्त का विरोध करना नहीं है। वे सभी अपने अद्भुत गुण रखते हैं परन्तु उनका लाभ उसी दशा में होता है, जब अपनी प्रकृति और आसन के गुण दोष का विचार करते हुए आसन का चुनाव किया जाय।
मैं यहाँ एक अनुभूत और प्रत्येक फलदायक आसन का उल्लेख करता हूँ पाठक इसका उपयोग करके लाभ उठा सकते है।
शिथिलासन का अर्थ है जिसमें आदमी शिथिल हो जाय वह आसन। मन और शरीर को पूरी तरह से शिथिल कर देने पर शरीर को अपूर्व शान्ति मिलती है। जितना विश्राम कई घंटे की नींद में नहीं मिलता उतना कुछ मिनट के शिथिलासन में मिल जाता है। राबर्ट क्लाइव और नेपोलियन बोनापार्ट के संबंध में यह प्रसिद्ध है कि वे युद्ध क्षेत्र में बिना सोये हफ्तों बिता देते थे। आश्चर्य होता है कि इस प्रकार के व्यक्ति किस प्रकार अपने जीवन क्रम चला सकने में समर्थ होते हैं और स्वस्थ बने रहते हैं? उपरोक्त दानों उदाहरणों के प्रत्यक्षदर्शी साथियों ने अपनी पुस्तकों में इस विषय पर कुछ प्रकाश डाला है। नेपोलियन के एक मित्र का कहना है कि युद्ध के कार्य में दिन-रात व्यस्त रहते हुए भी नेपोलियन घोड़े की पीठ पर हो कुछ मिनट सो लेता था। एक अंग्रेज इतिहासकार का कहना है कि राबर्ट क्लाइव मार्च करते हुए घुड़सवारों की बन्दूकों का सहारा लेकर चलते चलते अपनी नींद पूरी कर लेता था। अकबर के बारे में कहा जाता है कि वह केवल तीन घंटे सोता था। कई योगी महात्मा बहुत दिनों तक बिना सोये अपना काम चलाते देखे जाते हैं। इन सब निद्राजितों को किसी न किसी प्रकार शिथिलासन का ही सहारा लेना पड़ता है।
आप एक आराम कुर्सी पर हाथ पैर पसार कर लेट जाइये। शरीर के सब अंग स्वेच्छापूर्वक इस प्रकार रखे गये होंगे कि किसी पर कुछ दबाव न पड़ रहा हो और उसी तरह अधिक देर रखे रहने पर कोई कष्ट न हो। इस कार्य के लिए मन्द प्रकाश का स्थान ठीक रहता है तेज प्रकाश, चित्त पर कुछ ऐसा प्रभाव डालता है कि मन को ठीक प्रकार स्थिर नहीं होने देता। कमरे के दरवाजे बन्द कर के मन्द प्रकाश किया जा सकता है। रात हो तो बत्ती को धुँधली कर देना चाहिए अब ऐसी भावना करनी चाहिए कि “मैं अपने शरीर और मन को बिल्कुल शिथिल कर रहा हूँ। संपूर्ण अंग निश्चेष्ट हुए जा रहे हैं। शरीर निर्जीव हो गया है। मन की सारी चिन्ता और शंकायें शान्त हो गई हैं। मैं एक अनन्त नील सागर के ऊपर बड़े आनन्दपूर्वक तैर रहा हूँ और चारों ओर व्याप्त शान्तिदायी नीली किरण को अपने में स्वयमेव प्रवेश करता हुई देख कर पूर्ण विश्राम और संतोष उपलब्ध कर रहा हूँ” इस भावना को दृढ़तापूर्वक करना चाहिए और साथ ही यह भी अनुभव करते जाना चाहिए कि भावना के अनुरूप शरीर और मन बिल्कुल शिथिल हो गये हैं।
यह अभ्यास नित्य आधे घंटे जारी रखा जा सकता है। एक दो सप्ताह के प्रयत्न से ही शिथिलासन सिद्ध हो जाता है। आरंभ के दिनों में शरीर पूरी तरह ढीला नहीं होता सूक्ष्म रूप से परीक्षण करने पर कुछ कुछ कड़ापन रहता है। किन्तु कुछ दिनों के बाद शिथिलता में सफलता मिल जाती है। उस समय शरीर इतना ढीला हो जाता है कि जो अंग किसी के सहारे नहीं रखे गए वे इधर उधर को लुढ़क पाते हैं। हाथ और सिर उसी प्रकार नीचे गिरने लगते हैं जैसे सोते हुए आदमी के। यह दशा जाग्रत निद्रा है, योगियों की भाषा में इसे अमृत तंद्रा या शिथिलासन कहा जाता है। काम काजी लोगों के लिए आध घण्टा ही काफी है। इससे अधिक काल का जिन्हें अभ्यास होने लगे समझना चाहिए कि अब इसकी गति समाधि की ओर हो गई है। कई गुरु समाधि का आरंभ शिथिलासन से ही कराते हैं।
गहन योग विषय की बात छोड़िये। साधारण काम-काजी लोगों के लिए यह आसन कई दृष्टियों से लाभदायक है। आधे घंटे की साधना में इतनी थकान उतर जाती है जितनी चार घण्टे की गहरी नींद में उतरती है। इससे नवीन चेतना और स्फूर्ति मिलती है एवं शरीर सतेज होकर फिर से कठिन कार्यों को करने योग्य हो जाता है।
जब आपका शरीर काम से थक गया हो, देह टूट रही हो मन हार गया हो, दिमाग ठीक काम न करता हो तो थोड़ी देर शिथिलासन में पड़ जाइये आप देखेंगे कि सारा श्रम चला गया हैं और नवीन चेतना प्राप्त हो गई है। इसका नित्य का अभ्यास, एक पौष्टिक भोजन की तरह बलदायक सिद्ध होता है। जिन्हें आराम कुर्सी न मिल सके वे मसनद के सहारे या अन्य किसी आराम देने वाले उपकरण के सहारे अभ्यास कर सकते हैं। पर यह उपकरण कोमल और सुखकर होना चाहिए।