Magazine - Year 1956 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
श्रद्धा का मर्म
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
[ ले॰-कुमारी भारती ]
श्रद्धा का शब्दार्थ है सत्य को धारण करना, सचाई को जीवन का अंग बनाना। भगवान कृष्ण ने कहा है कि अज्ञानी श्रद्धालु और संशयात्मक पुरुष का नाश होता है। श्रद्धा मानव के विकास का प्रमुख साधन है। सत्य ज्ञान कठोरता और तत्परता से करें। ज्ञान होने पर उस सत्य को धारण करने का दृढ़ संकल्प करके आगे बढ़ें।
विश्वास करें, आपके आध्यात्मिक और लौकिक विकास में श्रद्धा का प्रधान स्थान है। इसके बिना आप बहुत दूर तक न चल सकेंगे।
परम सत्य प्रभु ही है। वह सदा आपके संग है। वह आपको नहीं छोड़ता। वह तो आपके सोते रहते भी जागता है। आप उसे नहीं जानते, किन्तु वह आपको जानता है। इतना नहीं, प्यार भी करता है। क्या आप उस प्यार को नहीं चाहते? भूल न करें, जीवन का एक -एक क्षण बहुमूल्य है। अनन्त कालचक्र में आपकी आयु के कुछ वर्ष हैं ही कितने? इसलिए इस शरीर और दूसरे साधनों से पूरा-पूरा लाभ उठावें। जीवन का परम लाभ है अनन्त सत्य और प्रेम-रूप प्रभु को समझना और धारण करना।
आप इसे कठिन समझते हैं। वास्तव में वह कठिन नहीं। कभी यह है कि आप इसकी आवश्यकता नहीं समझते।
श्रद्धा के बिना आपका जीवन वैसे ही नीरस होगा, जैसे पानी के बिना नदी और सुगन्ध के बिना पुष्प। आपको श्रद्धा माता की गोद में अनिर्वचनीय आनन्द मिलेगा।
श्रद्धा को अपने हृदय-आसन पर बैठने के लिए बुलावें। प्रातः मध्याह्न, सोते-जागते श्रद्धा का आह्वान करें। श्रद्धा को हाथ से न जाने दें। जब आप अश्रद्धा के गहरे गर्त में पड़कर निराश्रय हो जायेंगे, तब यह श्रद्धा माता ही आपको आशावान् बना सकेगी। श्रद्धा का पाथेय लेकर यदि आप बीहड़ जीवन-जंगल में निकल आवेंगे तब भी आप निर्भय रहेंगे।
श्रद्धा आपको सदा युवा बनाये रखेगी। सब कार्य प्रभु कर रहा है। वह आपके प्रत्येक शुभ कार्य में सहायक है। प्रत्येक कठिनाई को सरल करने वाला वह सर्वत्र सदा विद्यमान है। आप उस पर अटल विश्वास और श्रद्धा रखें। प्राचीन और वर्तमान आप्त पुरुष आपकी भलाई के लिए जो कुछ कहते हैं, उसका आचरण करें। जो सत्य आचरण के बाद ही प्रतीत होगा, उसे बिना आचरण के असत्य कहकर न टालें। पूर्ण यौवन और पूरी शक्तियों और श्रद्धा के साथ इस सत्य को प्राप्त करने का प्रयास करें।