Magazine - Year 1956 - Version 2
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Language: HINDI
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इन महान् कार्यों में भाग लीजिए
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सांस्कृतिक पुनरुत्थान आज विश्व मानव की सर्वोपरि आवश्यकता है उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपने आपको प्रस्तुत करना एक ऐसा महान् कार्य है, जिसे देश और काल की दृष्टि से एक अत्यन्त उत्कर्ष परमार्थ कह सकते हैं। हम चाहते हैं कि अखण्ड ज्योति और गायत्री परिवार के सदस्य इस महान् कार्य में अपने समय और श्रम का समुचित योग दान करें।
महायज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर अनेक महानुभावों ने अपना पूरा या आँशिक समय इस पुनीत कार्य के लिए देने का वचन दिया है और आत्मदानी, व्रतधारी एवं कर्मयोगी के प्रतिज्ञा- पत्रों पर हस्ताक्षर भी किये थे। ऐसे कार्यकर्ताओं की सचमुच भारी आवश्यकता अनुभव की जा रही है। तीन श्रेणी की अपेक्षा अब दो ही श्रेणी बना दी गई हैं। (1) जिनके ऊपर कमाने का कोई पारिवारिक उत्तरदायित्व नहीं है, और समीपवर्ती या दूरवर्ती क्षेत्र में सांस्कृतिक सेवा के लिए कहीं भी जा सकते हैं इनकी ‘आत्मदानी’ श्रेणी होगी। (2) जो पारिवारिक जिम्मेदारियों से बँधे हैं और अपने नियत कार्य करते हुए सांस्कृतिक सेवा के लिए थोड़ा बहुत समय दे सकते हैं, उन्हें ‘व्रतधारी’ कहा जायगा।
सांस्कृतिक सेवा शृंखला
यह संगठन विशुद्ध धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परिवार है, जिसमें पूरा समय देने वाले आत्मदानी और यथासंभव समय देने वाले व्रतधारी दोनों ही प्रकार के वे परमार्थ प्रेमी व्यक्ति सम्मिलित होंगे जो निर्धारित 12 प्रतिज्ञाओं को व्रत रूप में स्वीकार करेंगे और उन आदर्शों एवं सिद्धान्तों पर स्वयं चलने तथा अपने प्रभाव क्षेत्र में दूसरी को चलाने का प्रयत्न करेंगे। (1) आत्म बल बढ़ाने के लिए ईश्वर उपासना (2) अपने व्यक्ति गत जीवन को दिन-दिन अधिक उत्कृष्ट एवं आदर्श बनाते चलना (3) सांस्कृतिक एवं नैतिक भावनाओं को फैलाने के लिए एक प्रकार के धर्म शिक्षण का कार्य करते रहना। इन तीन कार्यक्रमों के लिए अपनी भावना तथा क्रिया को लगाने के लिए प्रत्येक सदस्य अपनी परिस्थिति के अनुसार अधिकतम प्रयत्न करता रहेगा।
शृंखला के सदस्य अपने आपको एक प्रकार से लोक शिक्षक, धर्म प्रचार के अध्यापक मानेंगे और निरन्तर यह सोचते रहेंगे कि धर्म भावनाओं के फैलाने के लिए हम क्या कर सकते हैं जो करना सम्भव हो सो पूरी तत्परता से करना चाहिए। अध्यापक ही क्यों, एक स्कूल या पुस्तकालय के रूप में अपने आपको बना लेना चाहिये। जब भी समय बचे तभी प्रभाव क्षेत्र के लोगों को समझाने, कथाएं सुनाने, अपने पास अच्छी पुस्तकें संग्रह करके लोगों को पढ़ाते रहने, धार्मिक प्रकृति के लोगों को संगठित करते रहने,कोई सामूहिक यज्ञानुष्ठान आदि आयोजन कराके ऐसे अवसर उत्पन्न करते रहना चाहिए जिससे सांस्कृतिक भावनाओं का अधिक व्यापक क्षेत्र में प्रसार हो सके।
साँस्कृतिक विद्यालय
गायत्री तपोभूमि में साँस्कृतिक विद्यालय की स्थापना इस उद्देश्य से की गई है कि भारतीय संस्कृति के तत्वज्ञान को इस विषय के जिज्ञासु भली प्रकार समझ सकें अपने जीवन में इस शिक्षा को धारण करके स्वयं सुख शान्ति का जीवन व्यतीत कर सकें और दूसरों की अधिक सेवा करने की योग्यता प्राप्त कर सकें।
विद्यालय का पाठ्यक्रम 3 महीने का रखा गया है। आषाढ़ सुदी पूर्णिमा से आश्विन सुदी पूर्णिमा तक प्रथम सत्र, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष दूसरा सत्र, माघ, फाल्गुन, चैत्र तीसरा सत्र, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ चौथा सत्र होगा। समर्थ छात्र भोजन भार जो लगभग 15) मासिक होता है, स्वयं उठाने, असमर्थ छात्रों को इसमें आधी छूट दी जा सकती है, विशेष परिस्थिति में यह पूरा खर्च भी छोड़ा जा सकता है।
तीन मास में निम्न शिक्षाएं दी जाएंगी (1) भारतीय संस्कृति की तात्विक विशेषताओं का परिचय (2) जीवन को सुख शान्तिमय बनाने वाली विचारधारा का दिग्दर्शन (3) भारतीय शिष्टाचार और समाज विज्ञान (4) शारीरिक, मानसिक, सामाजिक समस्याएं और उनका हल (5) शरीर रचना और स्वस्थ रहने की विद्या की समुचित जानकारी (6) रोगों का निदान, परिचर्या और सरल रामबाण औषधियों द्वारा चिकित्सा ज्ञान (7) रामायण की कथा, भजन कीर्तन आदि के योग्य संगीत तथा अनेक वाद्य बजाना (8) लाठी, तलवार आदि कई हथियार चलाना तथा आसन प्राणायाम आदि व्यायाम (9) भाषण देने का अभ्यास (10) शुद्ध यज्ञोपवीत बनाकर अपने गुजारे लायक कमा लेने की शिक्षा।
उपरोक्त दस शिक्षाएं सर्व साधारण के लिए हैं, जिन्हें उपासना, कर्मकाण्ड आदि विषयों में अभिरुचि हो, वे चाहें ते तीन मास में ही पौरोहित्य कोर्स भी पूरा कर सकते हैं, इसमें निम्न विषय होंगे- (1) विवाह प्रयोजनों और कामनाओं को पूर्ण करने वाले 20 प्रकार के यज्ञों की क्रियात्मक, शिक्षा, (2) नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, अंत्येष्टि आदि षोडश संस्कार कराने का क्रियात्मक विधान, (3) शिक्षात्मक वेदमन्त्रों का स्वाध्याय, (4) गायत्री गीता, (5) रामायण, गीता आदि की धार्मिक कथाएँ कहने का रोचक अभ्यास।
16 वर्ष से अधिक आयु के अच्छी हिन्दी जानने वाले, अनुशासन और शिष्टाचार पालन करने वाले, सत्स्वभाव के छात्र इन सत्रों में लिये जावेंगे। अच्छे प्रतिभाशाली और उत्साही छात्र इस विद्यालय के जुटाने रहने के लिए प्रत्येक प्रेमी को प्रयत्न करना चाहिए। इस शिक्षा क्रय को उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को साँस्कृतिक प्रचार की कुछ अच्छी आशा की जा सकती है।
रचनात्मक कार्य-
तपोभूमि में तथा देश के कोने-कोने में कुछ रचनात्मक कार्य आरम्भ किये जाते हैं, इनमें मुख्य यह हैं—(1) भारतीय संस्कृति के अंग-प्रत्यंगों पर वैज्ञानिक ऐतिहासिक और तथ्यपूर्ण खोज करके उनकी जानकारी सर्व साधारण को कराने के लिए अत्यन्त सस्ती पुस्तिकाएं प्रकाशित करना,(2) संस्कारों और त्यौहारों को प्रेरणात्मक ढंग से करा सकने की व्यापक व्यवस्था,(3) विभिन्न स्थानों पर साँस्कृतिक शिक्षा-शिविरों का आयोजन,(4) गोष्ठियों सम्मेलन, प्रवचनों और विचार - विनिमय मन्त्रों की स्थान-स्थान पर व्यवस्था, (5) साँस्कृतिक विद्यालय का निर्माण,(6) प्रदर्शिनी, अभिनय, संगीत, कवि-सम्मेलन, प्रतियोगिता, चित्रपट आदि मनोरंजनों द्वारा साँस्कृतिक भावनाओं का प्रचार, (7) देव मंदिरों में पूजा-सेवा के अतिरिक्त देव धन में पुस्तकालय, विद्यालय, प्रवचन व्यवस्था आदि शिक्षात्मक आदि कार्य भी आरम्भ करना,(8) साधु-संन्यासी,पंडा-पुरोहित, पुजारी आदि धर्मजीवी लोगों को सार्व-सेवा कार्यों की ओर झुकाना, (9) लुप्त प्रायः यज्ञ विद्या की खोज, (10) गायत्री में सन्निहित सद्वृद्धि और यज्ञ में ओत-प्रोत त्याग भावनाओं का व्यापक प्रचार।
108 यज्ञ
सांस्कृतिक सेवा शृंखला के संगठन और व्रत- धारी व्यक्तियों के प्रारम्भिक परिश्रम के रूप में आषाढ़ सुदी 15 गुरुपूर्णिमा तद्नुसार ता॰ 22 जुलाई को सर्वत्र सामूहिक गायत्री यज्ञ कराने का एक कार्यक्रम सौंपा गया है। गायत्री महायज्ञ चल रहा था, उसी आधार पर अब से गुरुपूर्णिमा तक तक अपने आस-पास के क्षेत्र में घूम-घूमकर अधिक से अधिक लोगों द्वारा गायत्री जप करायें जायं और अन्त में गुरुपूर्णिमा के दिन उन सब को एकत्रित करके सामूहिक गायत्री हवन कराये जायं। इन जप और हवन करने वालों के जप हवन का हिसाब तथा पूरे पते भेजने से उनकी साधना के प्रमाण-पत्र भेजे जायेंगे और वहाँ गायत्री तपोभूमि की एक शाखा मान ली जायगी।
साधना और तपश्चर्या
गायत्री तपोभूमि में नैष्ठिक साधना, तपश्चर्या, पुरश्चरण आदि करने में अनुभवी संरक्षण तथा सिद्ध भूमि की विशेषता का लाभ भी मिलता है। यह स्थान आत्म-बल की साधना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए अद्वितीय क्षेत्र है। साधकों के लिए यहाँ समुचित सुविधा रहती है। जो लोग घर से निवृत्त होकर साधन रत जीवन व्यतीत करना चाहते हैं,उनके लिए असाधारण शान्तिदायक स्थान है।
महिला विद्यालय
अभी तो नहीं पर निकट भविष्य में ही आचार्य जी की धर्मपत्नी भगवती देवी शर्मा के ‘संचालकत्व एक महिला विद्या मन्दिर अलग से चलेगा, जिसमें पुरुषों के संस्कृति विद्यालय के समान ही तीन महीने के शिक्षण क्रम रहेंगे। उनमें महिला जीवन की अनेक समस्याओं को हल करने वाले परामर्श एवं शिक्षण की ऐसी अतिरिक्त व्यवस्था भी रहेगी, जिसे प्राप्त करके महिलाएं अपने स्वास्थ्य स्वभाव ज्ञान एवं व्यवहार को अधिक विकसित करके अपने परिवार के लिए अधिक आदारास्पद एवं उपयोगी बन सकें। जो सुनिश्चित महिलाएं इस विद्यालय को चलाने तथा महिला जगत की साँस्कृतिक सेवा के लिए अपना समय और श्रम दे सकेंगी उनका सादर स्वागत किया जायगा।
भारत की अन्तरात्मा जाग रही है। हमारा साँस्कृतिक पुनरुत्थान होना सुनिश्चित है। इस जाग- रण वेला में हम सभी धर्म-प्रेमियों को विशेषतया अपने परिजनों को कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए सादर आमन्त्रित करते हैं! आइए, कुछ करने के लिए आगे बढ़ें। प्रभु-प्रेरणा से सम्पन्न हो रहें, एक महान् कार्य में भागीदार बनने का श्रेय प्राप्त करना हम लोगों के लिए निश्चय ही एक दूरदर्शिता एवं बुद्धिमत्ता की बात होगी।